दिल्ली भारत का अति प्राचीन शहर है । दिल्ली को चार हिस्सों में बांटा जा सकता है
पुरानी दिल्ली | नयी दिल्ली | छावनी दिल्ली और | बाहरी दिल्ली |
आप देख रहे हे गोस्वामी चेतना समाचार |
---|
दिल्ली देहात जिसमें दिल्ली के गांव हैं । वर्तमान में दिल्ली की जनसंख्या लगभग अढ़ाई करोड़ है । समय - समय पर इसके अनेक नाम रहे हैं । महाभारत काल में इसे इंद्रप्रस्थ कहते थे । यह सदैव से ही विदेशी हमलावरों के निशाने पर रही है । कहते हैं कि दिल्ली सात बार उजड़ी है और सात बार बसी है । जिसने दिल्ली पर कब्जा किया वह हिन्दुस्तान पर भी कब्जा कर लेता था । अनेक बाहरी लोग यहाँ आकर बसे और फिर वे सदा के लिए दिल्ली के बनकर रह गए। इस लिए दिल्ली में खिचड़ी संस्कृति है । भारत के सभी प्रदेशों की झलक यहां देखने को मिल जाती है । दिल्ली का अपना कोई निजी मौसम ( क्लाइमेट ) नहीं है । शिमला , श्रीनगर , नैनीताल में यदि बर्फबारी हो जाये तो दिल्ली ठंड से थर - थर कांपने लगती है । राजस्थान , हरियाणा और उत्तर प्रदेश में आंधी चल पड़े तो दिल्ली के लोगों की आंखें धुंधिया जाती हैं । हिमाचल , पंजाब और हरियाणा में ज़ोरदार बारिश हो जाये तो दिल्ली बाढ़ की चपेट में आ जाती है । दिल्ली में कृषि से इतनी पैदावार नहीं होती कि सभी दिल्लीवासियों का पेट भरा जा सके । पंजाब , हरियाणा , राजस्थान और उत्तर प्रदेश इसकी इस ज़रूरत को पूरा करते हैं । दिल्ली में अशोक होटल , मौर्य होटल , ओबेरॉय होटल जैसी शानदार बिल्डिंगें हैं वहीं दूसरी ओर 50 लाख लोग ऐसे हैं जो अनधिकृत कॉलोनियों में रह रहे हैं जहाँ मूलभूत सुविधाओं का अभाव है । इससे भी बुरी बात यह है कि दिल्ली में लाखों लोग खुले आसमान के नीचे सोते हैं । उनके सिर पर कोई आशियाना नहीं है । तभी तो मैंने अपने एक गीत में लिखा है :- "लाखों - लाखों भवन बने हैं वाह री दिल्ली ! फुटपाथों पे सोती फिर भी आधी दिल्ली !!" जाड़े में हर साल अनेक लोग ठिठुरकर मर जाते हैं । यह दिल्ली की नंगी सच्चाई है । वहीं दूसरी ओर मरे हुए राष्ट्रपतियों , प्रधानमंत्रियों, राजनीतिक दलों के नेताओं और जातीय नेताओं की समाधियों , मजारों और दरगाहों के लिए हज़ारों एकड़ भूमि आवंटित है या जबरन घेर रखी है । वहाँ लम्बे - चौड़े स्टाफ काम कर रहे हैं । रिसर्च सेंटर खुले हुए हैं। पुस्तकों के अनुवाद और प्रकाशन जारी हैं । बिल पर बिल बनाये जा रहे हैं । उन रिसर्च का आम आदमी को कोई फायदा नहीं है । रिसर्च भी करनी है तो एक - दो कमरों में कर लो लेकिन वहाँ तो बिल्डिंगों के साथ सैंकड़ों बीघाओं में खाली ग्राउण्ड पड़े हैं जिनका कोई रिहायशी उपयोग नहीं है । जीवन एक बार ही मिलता है , बार - बार नहीं । एक जीवन मिला और वह भी रोने- धोने में चला गया और एक मकान तक भी उपलब्ध नहीं हो सका तो फिर इस दुनिया में आने का फायदा ही क्या ? इससे तो अच्छा होता कि पैदा ही नहीं होते । ज़िंदगी मिली है तो एक घर भी मिलना चाहिए । सभी को घर - परिवार सहित जीने का हक़ होना चाहिये । आखिर इस समस्या का समाधान क्या है ? समाधान सीधा - सच्चा है कि शासकीय और राजनीतिक नेताओं की समाधियां , मजारों और दरगाहों को दिल्ली में न बनाकर उनके जन्मस्थानों में बननी चाहिए। मान लो कोई यदि नेता तमिलनाडु या अरूणाचल या उत्तर प्रदेश के किसी गांव का है तो उसके जन्मस्थान पर उसकी समाधि बने ताकि वहाँ के लोग उसे देख सकें और उस पर गर्व कर सकें । हर प्रदेश के लिए यही कसौटी होनी चाहिए । दिल्ली में उसकी समाधि या मजार बनाने से कोई फायदा नहीं है । दूसरा बिंदु यह है कि समाधियों , मजारों और दरगाहों को हटाकर उन ज़मीनों पर छोटे - छोटे बहुमंजिला रिहायशी फ्लैट बनाये जायें । आज़ादी के 70 - 72 सालों में यह हाल है और आगे तो बड़ा लम्बा समय पड़ा है , सैंकड़ों, हज़ारों , लाखों लोग मरते रहेंगे और हम उनके लिए समाधियाँ या कब्रें बनाते रहेंगे तो फिर एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि दिल्ली के किसी जीवित व्यक्ति को रहने के लिए घर ही न मिले। इस गम्भीर समस्या पर सरकार और समाज को गम्भीरतापूर्वक विचार करके समाधान खोजा जाना चाहिए ताकि दिल्ली में कोई व्यक्ति बेघर न रहे। हर हाथ के लिए काम , हर पेट के लिए रोटी और हर सिर के लिए एक छत का होना अत्यंत आवश्यक है। पुरानी दिल्ली में ऐसी - ऐसी पतली गलियां और ऐसे - ऐसे सटे हुए घर भी हैं जहां ठीक से सूर्य की रौशनी पहुंचने नहीं पाती है । सरकार को चाहिए कि ऐसे निवासियों को वहां से हटाकर नई काॅलोनियों में बसाना चाहिए । दिल्ली में रहने की ऐसी जगह भी हैं जहां आदमी ठीक से पैर भी नहीं फैला सकता है और वहीं ऐसे - ऐसे प्लाॅट या बिल्डिंगें हैं जो कई बीघाओं में हैं । इतना अंतर सरासर ग़लत है । सभी परिवारों को निश्चित माप के एक जैसे घर या फ्लैट दिये जायें जहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हों । दिल्ली को नये ढंग से बसाने की ज़रूरत है । वैसे अब दिल्ली में जो नई काॅलोनियों बसाई जा रही हैं उनमें इन सभी बातों का ध्यान रखा जा रहा है । प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत जो मकान बनाए जा रहे हैं उनमें से हर मकान में शौचालय अवश्य बनाया जा रहा है क्योंकि यह मूलभूत ज़रूरत है। |
0 टिप्पणियाँ