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मठों - मंदिरों पर सरकार का कब्जा अर्थात गोस्वामियों की रोज़ी - रोटी पर संकट

 

हमारा देश इंग्लैंड या अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया या यूरोप  नहीं है । वहाँ के रहन - सहन , खानपान , व्यवसाय ,  व्यवस्था , व्यवहार , सोच , आचरण हमसे एकदम भिन्न हैं । वहाँ कोई भी आदमी कोई भी व्यवसाय या व्यापार  कर सकता है परंतु हमारे देश में  तो व्यवसायों पर जातियों का एकाधिकार या वर्चस्व रहा है । भारत में जातियों के आधार पर व्यवसाय बने हैं या इस बात को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि व्यवसायों के आधार पर जातियां बनी हैं । उदाहरण के लिए ब्राह्मण का काम  कथा - यज्ञ करना  , सुनार का काम  सोने - चांदी के गहने बनाना   , लोहार का काम  लोहे के उपकरण बनाना  , चर्मकार का काम  चमड़े से जूते - चप्पलें बनाना  , नाई का काम बाल काटना  , कहार का काम विवाहों में डोली उठाना   , धोबी का काम  कपड़े धोना  , धींवर का काम तालाब या कुएं से पानी ढोकर लाना  , बढ़ई का काम लकड़ी से इमारती चीजें बनाना , माली का का बाग से फूल उपलब्ध कराना , अहीर का काम  गाय - भैंस पालना एवं घी - दूध बेचना  , गड़रिया का काम  भेड़ - बकरी पालना एवं ऊन बेचना , कुम्हार का काम  मिट्टी के बरतन बनाना , कन्नोजिया का काम पान बेचना , तेली का तेल बेचना , भड़भड़ा का काम भाड़ पर चना - गेहूं - चावल को भूनना । ये इनके पैतृक व्यवसाय हैं हालांकि  इस नये ज़माने में अन्य लोग भी इन व्यवसायों में घुसपैठ कर गए हैं । फिर भी मूल भावना बदली नहीं है ।

                        गोस्वामियों को प्राचीन काल में शैव संन्यासी कहा जाता था जोकि परिवार और समाज को छोड़कर बीहड़ जंगलों में या पहाड़ों पर कंदराओं में रहते थे ।  वहां वे भगवान  शिव की आराधना करते थे और मोक्ष के रास्ते पर चलते थे । वहाँ उन्होंने बड़े - बड़े शिवालय बना लिये थे ।

                            कालांतर में उनकी जीवनशैली में बदलाव आया । वे वनों और पहाड़ों को छोड़कर गांवों या शहरों के बाहर कुटिया बनाकर रहने लगे । वे भगवान शिव को अपना इष्टदेव मानते थे । भगवान शिव को पूजने के लिए कुटिया के पास ही मठ या शिवालय स्थापित कर लिये । लोग उनके पास आने लगे । देवी - देवताओं  पर चढ़ावा आने लगा । वे लोगों को पूजा -पाठ ,  योग , समाधि  प्राणायाम सिखाने लगे । वे मोक्ष का मार्ग बताने  लगे  । वे मठों और शिवालयों के पुजारी या महंत या पीठाधीश्वर  कहलाये । उन पर उनका एकाधिकार हो गया । कोई और जाति का व्यक्ति उस कार्य को नहीं कर सकता था । वह कार्य ही उनकी पहचान बना ।  मठ ओर  शिवालय उनकी आस्था के केंद्र थे और साथ ही पेट पालने के साधन भी ।

इतिहास में एक ऐसा भी समय आया कि बौद्ध धर्म सनातन धर्म ( हिंदू धर्म )  को नष्ट करने पर आमादा हो गया । सनातनधर्म को बचाने के लिए शैव संन्यासियों ( गोस्वामियों ) ने अखाड़े स्थापित कर लिए और अपने आपको धर्मसैनिक बना लिया । वे शस्त्र धारण करके  धार्मिक युद्धों में  उतर गये । उन्होंने विधर्मियों के सिर काटे और अपने सिर कटवाये । यदि वे उस समय ऐसा न करते तो सनातन धर्म ( अर्थात हिंदू धर्म ) कभी का मर गया होता ।

                      मठों , शिवालयों और अखाड़ों को राजाओं , सेनापतियों , ज़मीनदारों , सेठों और  साहूकारों की ओर से धन , जायदाद , खेत , भूखंड और  गांव दान में मिलते थे जिन्हें वापस लेना पाप समझा जाता था । प्रमाण के लिए कर्नल जेम्स टॉड द्वारा लिखित "राजस्थान का इतिहास" या मेरे द्वारा लिखित महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" पढ़ें । 

                         मठों और शिवालयों में गुरू - शिष्य परम्परा का पालन किया जाता था अर्थात गुरू के मरने के बाद शिष्य ही उस गद्दी पर आसीन होता था । 

समय के बीतने के साथ उस परम्परा में बदलाव आया । दो प्रकार के संन्यासी हो गए --- ( 1 ) विरक्त संन्यासी जो विवाह नहीं कर सकते थे और उनकी विरासत को उनके शिष्य सम्भालते थे और  ( 2 ) गृहस्थ संन्यासी जो विवाह कर सकते थे और उनकी विरासत को उनकी संतानें सम्भालती थीं । वर्तमान में भी ऐसा ही है । अब दोनों प्रकार के संन्यासी ( अर्थात गोस्वामी ) उपलब्ध हैं । 

                           सदियों से गोस्वामी लोग मठों ,  शिवालयों और हनुमान मंदिरों के पुजारी या महंत  या पीठाधीश्वर बनते आ रहे हैं । यही कर्म इनकी रोज़ी - रोटी रहा है । ये मठ , शिवालय और हनुमान मंदिर गोस्वामियों के पर्सनल हैं । ये सब पर्सनल प्रोपर्टीज हैं जिन्हें लेने का अधिकार  किसी को  नहीं है । गोस्वामियों ने इन्हें अपने खून - पसीने से सींचा है । ये सार्वजनिक सम्पत्तियां नहीं हैं जिसका राष्ट्रीयकरण या अधिग्रहण कर दोगे ।  अब देखने में आ रहा है कि सरकार गोस्वामियों के मठों , शिवालयों और हनुमान मंदिरों को हस्तगत करने की फिराक में है । राजस्थान का पुष्कर मंदिर गोस्वामियों का है । वहाँ यह खेल हो चुका है और राजस्थान सरकार उसे अपने कब्जे में ले चुकी है । अब राजस्थान के मेंहदीपुर बालाजी मंदिर पर भी ऐसा ही होने जा रहा है । ऐसा मैंने फेसबुक और वाट्सएप पर पढ़ा और देखा है और लोगों से भी सुना है । 

किसी की रोज़ी - रोटी छीनना अच्छी बात नहीं है । किसी को रोज़ी - रोटी दे नहीं सकते तो छीनते क्यों हो ? यदि छीनते हो तो उसके बदले में कुछ दो अर्थात नुकसान की भरपाई करो । उदाहरण के लिए , जब सरकार ने सुनारों का व्यवसाय छीना था तो उनको विशेष आरक्षण दिया था । इसी प्रकार गोस्वामियों को भी विशेष आरक्षण दो या मुआवजा दो । 

                               राजस्थान सरकार से विनम्र निवेदन है कि वह अपने फैसले पर  पुनः विचार  करे और ऐसा कोई कार्य न करे कि गोस्वामी लोगों के आगे रोज़ी - रोटी का संकट खड़ा हो जाये । पूरे देश में गोस्वामियों की संख्या लगभग सात करोड़ है । यदि ऐसा होता है तो उनमें गलत संदेश जायेगा।


जय गोस्वामी ! जय दशनाम !!


गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली 

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