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वैवाहिक रिश्तों की अड़चनें एवं शिकायतें

 


आप देख रहे हे गोस्वामी चेतना समाचार
गिरिवर गिरी की कलम से
मैं नयी दिल्ली में नि:शुल्क वैवाहिक सेवा केंद्र चला रहा हूँ । यह मेरी सामाजिक सेवा है , पेशा नहीं । अब तक सैंकड़ों रिश्ते मेरे विज्ञापनों के द्वारा हो चुके हैं । ऐसा करने से मुझे बहुत खुशी होती है ।
ऐसा कार्य करते हुए मुझे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । आओ , उन पर विचार करें ।
जो प्रोफार्मा मैंने बनाकर दे रखा है लोग उसके अनुसार विवरण नहीं भेजते हैं जिससे मुझे विवरण अपने हाथ से टाइप करना पड़ता है । रजिस्टर में अलग से प्रविष्टि करनी होती है । ऐसा करने से मैं थक जाता हूँ क्योंकि मेरे पास तो रोज़ पचासों केस आते हैं ।
कुछों की शिकायत है कि विज्ञापन के साथ मैं कन्या के फोटो क्यों नहीं डालता । ऐसे लोगों से मुझे इतना ही कहना है कि मुझे अपनी सीमाओं का आभास है । लड़की के फोटो का दुरूपयोग हो सकता है । हां, यदि रिश्ता कारगर होने के कगार पर हो तो फोटो भी भेजा जा सकता है और ऐसा मैं कर भी रहा हूँ।
कई बच्चों के रिश्ते मेरे विज्ञापन से हुए हैं लेकिन उनके अभिभावक मेरे पास ऐसी सूचना को भेजने की जहमत नहीं उठाते हैं ।
कई अभिभावक कुण्डली के चक्कर में पड़े रहते हैं । सब कुछ मिल रहा है लेकिन कुण्डली नहीं मिल रही । बस , इसी वजह से रिश्ता नहीं हो पाता है और उम्र का मीटर दिल्ली के बिजली के मीटर से भी ज्यादा तेज़ दौड़ लगाता है । त्रेतायुग में वशिष्ठ मुनि से बड़ा कोई ज्योतिषी नहीं था । उन्होंने ही राम - सीता के विवाह के लिए योग मिलाया था । 36 से 36 के गुण मिले थे लेकिन परिणाम क्या हुआ ? राम को राजगद्दी मिलने की जगह वनवास मिला , राजा दशरथ की वियोग में मृत्यु हुई , सीता का अपहरण हुआ , सोने की लंका जली, सीता का परित्याग हुआ , सीता को जंगल में रहना पड़ा , सीता ने फिर कभी राम का मुंह नहीं देखा और सीता धरती में समा गईं । दूसरी बात , दुनिया में 200 से अधिक देश हैं जहाँ यह कुण्डली का झंझट ही नहीं है । तो क्या वहाँ के व्यक्तियों के सारे वैवाहिक रिश्ते फेल हो रहे हैं ? यह सब कमाने - खाने के धंधे हैं । लोगों के दिलों में भय पैदा कर दिया गया है । कुण्डली दोष के निवारण के नाम पर लोगों से लाखों रूपए ऐंठे जा रहे हैं । अत: कुण्डली नहीं , योग्यता और संस्कार को मान्यता दीजिए ।
जब मैं विज्ञापन प्रकाशित करता हूँ तो लोगों के कमेंट्स आते हैं कि "दहेज कितना लोगे ?" पढ़ते ही मेरे तन - मन में आग लग जाती है । मेरा तो इतना ही कहना है कि मैं दहेज के रिश्ते नहीं कराता । हां, कोई अपनी बेटी को अपनी खुशी से कुछ देना चाहे तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है । मैंने अपनी एक बेटी और दो बेटों की शादियां की हैं । ना दहेज दिया है और ना दहेज लिया है । मेरे पड़ोसियों से आकर पता कर सकते हो । इस बात से मेरी दोनों पुत्रवधुएं बहुत खुश हैं और मेरा बहुत सम्मान करती हैं । वे अक्सर मुझसे कहती रहती हैं - "पापा जी ! लोग बिना दहेज के विवाह की बातें करते हैं लेकिन बातें हैं बातों का क्या ? आपने जो कहा वह करके दिखा दिया है ।" कुछ लोग मेरे इस बयान को मेरी आत्मप्रशंसा कह सकते हैं लेकिन यह एक सच्चाई है । दहेज के नाम पर किसी की आत्मा को दुखाना क्या न्यायसंगत है ? जो मेरी हैसियत है यदि मैं उसके अनुसार दहेज की मांग करता तो बेटीवाले के मकान , दुकान --- सब बिक जाते और वे सड़क पर आ जाते।
विज्ञापन के अंत में मैं लिख देता हूँ -- "हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है ।" कुछ लोगों को इस बात पर ऐतराज है । कइयों ने मुझे लिखा भी है --"जब गारंटी नहीं ले सकते तो रिश्ता क्यों कराते हो ?" मैं लेखक एवं पत्रकार रहा हूँ । मैं जानता हूँ कि ऐसे मामलों में किस प्रकार की भाषा होनी चाहिये ।
कुछ लोग "गोस्वामी" लिखकर गोस्वामी ग्रुपों में घुस गये हैं जबकि वे गोस्वामी नहीं हैं । तो क्या मैं ऐसे सभी लोगों की उनके घर जाकर छानबीन करूँ ? दूसरी बात , क्या सब काम मैं ही करता रहूंगा ? आप भी तो कुछ कीजिए । रिश्ता मैंने करा दिया , गारंटी आप ले लीजिए । सब आटे - दाल का भाव पता हो जायेगा । तीसरी बात , मैं रिश्ते करा रहा हूँ , प्रोपर्टी डीलिंग का धंधा नहीं चला रहा हूँ जो गारंटी देता फिरूं । मेरा कोई पर्सनल लाभ नहीं है , बस मन की संतुष्टि है कि मैं कुछ अच्छा कर रहा हूँ ।
पहले ज़माने में नाई - ब्राह्मण कन्या के लिए वर ढूंढ़ने जाते थे । फिर ऐसा समय आया कि चाचा , मामा , फूफा की जुबान पर रिश्ते होने लगे । समय फिर बदला मां - बाप रिश्ते तय करने लगे । अब समय यह आ गया है कि वर - कन्या स्वयं अपना जीवनसाथी चुन रहे हैं । कुछ अभिभावक तो गहन छानबीन करते हैं । पहले खानदान को मान्यता दी जाती थी लेकिन अब लड़की की योग्यता, सुंदरता, ऊंचाई को तवज्जो दे रहे हैं । कुछ अभिभावक तो इस मामले में बहुत आगे निकल गए हैं । वे लडकी को नापने के लिए जेब में इंचटेप और बैग में वेट मशीन लेकर घूम रहे हैं । ऐसे लोगों का क्या किया जाये ?
पहले ज़माने में उम्र और कद - काठी में कन्या से सवाया वर ढूंढ़ा जाता था । मान लो कन्या सोलह वर्ष की तो वर बीस वर्ष का , कन्या बीस की तो वर पच्चीस वर्ष का । इसका कारण था कि औरत जल्दी बूढ़ी लगने लगती है और मर्द देर में । तो बुढ़ापे में उन दोनों में ज्यादा अंतर दिखाई नहीं देता था । अब समय बदल गया है । कन्याएं अपनी उम्र से कम के वरों से शादियां कर रही हैं । बहुत सारे उदाहरण भरे पड़े हैं । सचिन तेंदुलकर की पत्नी उससे सात साल बड़ी है । अमृता सिंह तो शैफ अली खान से बारह वर्ष बड़ी थी और करीना कपूर उससे बाहर साल छोटी । प्रियंका चोपड़ा अपने पति निक से बड़ी है । क्या यह सही हो रहा है ?
हम इतने एडवांस हो गए हैं कि शिक्षा दिलाने की होड़ में हम यह भूल जाते हैं कि बच्चों की उम्र क्या हो गई है । तीस या पैंतीस या चालीस साल के बच्चे हो जाते हैं । फिर उनके लिए योग्य जीवनसाथी मिलना मुश्किल हो जाता है । पैंतीस साल के बाद तो महिला के गर्भवती होने के चांस भी क्षीण हो जाते हैं । चेहरे की चमक ( ग्लो ) जाती रहती है । अतः बच्चों की शादियां समय पर करें ।
कुछ ऐसे लोग भी हैं जो शादी के मामले में दूसरे पक्ष के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं लेकिन अपनी जानकारी छिपाते हैं । मुझे ऐसे लोग भी मिले हैं जो मेरे द्वारा वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित कराते हैं । फिर कुछ दिनों बाद फोन आता है कि विज्ञापन को फौरन हटाइए -- "लड़की बुरा मान रही है / लड़की की मां बुरा मान रही है।" मेरा यह मानना है कि विज्ञापन देने से पूर्व लड़का या लड़की से पूछ लेना चाहिए था ‌।
सदैव अपने जैसे स्तरवालों से वैवाहिक रिश्ते कीजिए । ज्यादा आर्थिक अंतर दुखदायी होगा ।
कुछ लोग बहुत ऊंची उड़ान पर हैं । बच्चों को खूब पढ़ा दिया , उच्च पद पर भी पहुंचा दिया लेकिन उनकी सोच सातवें आसमान पर चली जाती है । वे अपने बच्चों की शादियां आईएएस या आईपीएस से कम के साथ नहीं करना चाहते हैं जबकि यह सर्वविदित है कि हमारी बिरादरी में ऐसे लोग ज्यादा नहीं हैं और हैं भी तो वे पहले ही शादी के बंधन में बंधे होते हैं । परिणाम यह होता है कि ऐसे बच्चों की शादियाँ नहीं होती हैं या फिर उन्हें अंतरजातीय विवाह करने पड़ते हैं । ऐसा करने से समाज की क्रीम गैर बिरादरी में चली जाती है और उनका बिरादरी से सम्बंध खत्म हो जाता है ।
कुछ लोग सरकारी वर ढूंढ़ते - ढूंढ़ते कन्या को बूढ़ी बना देते हैं । अरे , सरकारी नौकरी के पीछे क्यों पड़े हुए हो । सरकारी नौकरियां सीमित हैं । प्राइवेट सेक्टर में काम करनेवाले अपनी योग्यता के बल पर सरकारी कर्मचारी से अधिक वेतन एवं सुविधाएं पा रहे हैं । वैसे भी देश अब रूस की राह पर नहीं अमेरिका की राह पर चल रहा है । हर सेक्टर प्राइवेट होगा।
कुछ लोग विज्ञापन तो निकलवा देते हैं लेकिन इंक्वायरी का जवाब तक नहीं देते । फोन को बंद कर देते हैं या फोन का नम्बर ही बदल देते हैं । ऐसे लोगों का क्या किया जाये ?
कई बच्चों के तलाक के केस चल रहे हैं । वे इस बात को छिपाकर दूसरों से शादी कर लेते हैं । ऐसे लोग कानूनी दांव पेंच के शिकार हो जाते हैं और दूसरों को भी भीषण संकट में डाल देते हैं । अतः भलाई इसी में है कि ऐसे भ्रमजाल से बचें और दूसरों को भी बचायें ।

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