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गोस्वामी गौरव दानवीर राय बहादुर गोपाल अनन्त गिरि


संकलन- आदित्य भारती मोरवन म.प्र. 

मुम्बई क्षेत्र में जिला हल्याल ( हलियाल ) में "गिरि गोस्वामी" नाम से एक प्राचीन मठ था । उस मठ परम्परा में अनंत  लक्ष्मण गिरि बाबा थे । उनका घराना घरबारी गोस्वामी का था । अनंत गिरि बड़ी गरीब हालत में वहाँ पहुंचे थे । उनकी पत्नी का नाम लक्ष्मीबाई था जिसके उदर से 11 पुत्र  पैदा हुए थे । उसी श्रृंखला में गोविंद गिरि , गोपाल गिरि , मुकुंद गिरि थे । गरीब अवस्था में विद्याभ्यास करना आसान नहीं था । अतः बड़े लड़कों ने  शेतकी काम में सहायता करनी शुरू कर दी । छोटी - मोटी नौकरी , थोड़ा सा व्यापार 25 वर्ष बीत गए । फिर तीनों भाई अलग - अलग हो गए । तीनों का व्यापार - धंधा चल पड़ा । 

चार वर्ष बाद मुकुंद गिरि की मृत्यु हो गई । उनके तीन पुत्र थे एक पुत्री थी । वे चारों बच्चे गोपाल गिरि की देखभाल में आ गये । स्थावर इस्टेट शेती एवं घरों को मिलाकर दोनों ( गोविंद गिरि और गोपाल गिरि ) के हिस्सों में लाखों रुपये आये । 

                  गोविंद गिरि की भी मृत्यु हो गई । उनके उत्साही  पुत्र का नाम अनंत गिरि था । पूरी इस्टेट उन्हीं की थी । बाद में वे म्युनिसिपैलिटी के सदस्य बने ।

                         गोपाल गिरि का जन्म सन् 1859 ई. में हुआ था । उनकी पढ़ाई - लिखाई चार - पांच कक्षा तक ही रही । उन्होंने अंग्रेजी सीखी । 14 - 15 वर्ष की आयु में हल्याल के प्रसिद्ध साहूकार देशपांडे के यहां कारिंदा का काम किया और अपने भाई गोविंद गिरि की मदद करते थे जो कि एक कॉन्ट्रैक्टर थे । सन् 1894 ई. में नौकरी छोड़कर कपड़े और सर्राफा की दुकानें खोल लीं । उन्होंने पब्लिक वर्क्स के खातों , रसीदों इत्यादि का कॉन्ट्रैक्ट लिया और अपने भाई गोविंद गिरि की फॉरेस्ट कॉन्ट्रैक्ट में मदद की । सन् 1900 ई. में तीनों भाई ( गोविंद गिरि , गोपाल गिरि , मुकुंद गिरि ) अलग - अलग हो गये अर्थात न्यारे हो गए । प्रत्येक के हिस्से में 15 - 15 हज़ार की जायदाद आई ।

तीनों भाई स्वतंत्र रूप से फॉरेस्ट कॉन्ट्रैक्ट इत्यादि के काम करते रहे । उनके सहारे से हज़ारों लोगों का पेट भरता था । वे लगन से लगातार काम करते चले गए । उन धंधों से उन्हें लाखों रुपये मिले । उनके पुत्रों की कीर्ति सरकारी कामदार एवं गृहस्थों के मध्य बढ़ती चली गई । 

गोपाल गिरि  लोकल बोर्ड , म्युनिसिपैलिटी , देवस्थान कमेटी इत्यादि संस्थाओं के मेम्बर , कॉंसि्लेटर एवं विलेज मंसफ और ऑनरेरी मजिस्ट्रेट इत्यादि पदों पर रहे । अपने नाम पर एक पुस्तकालय खोला जिसमें  अखबारों के लिए धन की शुद्ध व्यवस्था की । उस पुस्तकालय को म्युनिसिपैलिटी ने उनके नाम से अधिकृत किया । सरकारी अस्पताल में रोगियों के लिए वार्ड की व्यवस्था नहीं थी । उन्होंने महिलाओं और पुरूषों के लिए ऐसी अलग - अलग व्यवस्था की ।

तिकड़े गुरू के दवाखाने के लिए उन्होंने सरकार से पत्र व्यवहार करके अपने नाम से एक दवाखाना खोला और सरकार से मान्यता दिलाई ।

गांव में दो - चार देवस्थानों का जीर्णोद्धार कराया । 

लोगों की आस्था देखकर एक देवस्थान के लिए पांच हज़ार रुपयों में ज़मीन खरीदी और दस हज़ार रुपए खर्च करके सदावर्त की व्यवस्था की ।

 उन्होंने चैत्र प्रतिपदा का त्यौहार उत्सव के रूप में मनाने की शुरूआत की और उन्होंने रथोत्सव मनाने की परम्परा डाली । 

उन्होंने हल्याल में म्युनिसिपल वाइस प्रेसिडेंट , स्कूल बोर्ड चेयरमैन एवं म्युनिसिपल प्रेसिडेंट व लोकल बोर्ड वाइस प्रेसिडेंट इत्यादि के पदों पर कार्य किया ।

उनके कार्यों से प्रभावित होकर सरकार ने उन्हें सन् 1910 ई. में "राय साहब" की उपाधि प्रदान की । 

सन् 1916 ई. में उनको "राय बहादुर" की पदवी मिली ।

वे सेकंड क्लास स्पेशल मजिस्ट्रेट एवं विलेज मुनसिफ भी रहे ।

वे भर्ती के काम सरकार की मदद करते थे जिसके लिए सरकार की ओर से  उन्हें एक मैडल दिया गया और एक मैडल उन्हें दिल्ली दरबार से भी दिया गया ।

राय बहादुर गोपाल गिरि हल्याल में स्थित इस्टेट के मालिक तो थे ही साथ ही उन्होंने धारवाड़ ( कर्नाटक ) में भी अपना स्थायी ठिकाना बना लिया था । धारवाड़ में उनकी कामदार मंडली रहती थी । उन्होंने  वहाँ बंगले बनवाये । उन चालों में 100 कुटुंब रहते थे जिनसे शुद्ध माफिक दर से किराया लिया जाता था । 

                     उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर "राय बहादुर गोपाल गिरि अन्नपूर्णा थियेटर" बनवाया । उन्होंने दया , धर्म का काम भी जारी रखा ।

                    दस हज़ार रुपये खर्च करके उन्होंने एक इमारत बनवाई जिसमें "राय बहादुर गोपाल गिरि फ्री लायब्रेरी" खोली  ।

एक कमेटी बनाकर उन्होंने दस हज़ार रुपयों का प्रामेसरी नोट चालू किया ।

उन्होंने एक टेनिस कोर्ट बनवाया । टेनिस कोर्ट का नाम रखा गया -- "राय बहादुर गोपाल गिरि टेनिस कोर्ट" । बिलियर्ड्स खेल के लिए उन्होंने एक स्पेशल इमारत बनवाई ।

उन्होंने एक मराठा बोर्डिंग भी खोला जिसमें चालीस छात्र रहते थे और जिसका किराया पचास रुपये की दर पर था । मराठा बोर्डिंग के पास ही "राय बहादुर गोपाल अनंत गिरि मराठा लायब्रेरी" थी । सभी इमारतों को "मराठा विद्याप्रसारक मंडली" के अधीन रखा गया था ।

उन्होंने कर्नाटक हाईस्कूल की देखभाल की । उन्होंने धारवाड़ में स्थित अस्पताल में मिडवाइफ और नर्सों  के लिए रकम की व्यवस्था की । 

उन्होंने कर्नाटक कॉलेज के लिए एक हज़ार रुपये दिये । उन्होंने दो - तीन हाईस्कूलों को मोटी रकम दी ।

डॉक्टर वानलेस के दवाखाने के लिए अपने नाम की एक इमारत धर्मार्थ बनवाई ।

मुम्बई के बाहरी गांवों में गृहों के लिए रकम दान में दी । 

मुम्बई की गलियों के रास्तों के लिए रकम दी ।

पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज , कर्वे अनाथ बालिकाश्रम एवं पंढरपुर के अनाथ बालिकाश्रम और अन्य अनेक पाठशालाओं की उन्होंने मदद की ।


उन्होंने दान - धर्म पर लाखों रुपए खर्च किये जिससे उनका नाम चिरकाल तक रहेगा ।

उन्होंने अपने दूसरे पुत्र रामनारायण को सारी इस्टेट की व्यवस्था मिली । रामनारायण  15 वर्ष की आयु में मैट्रिक परीक्षा में बैठा था ।

धारवाड़ शहर में बिजली की योजना सरकारी लाइसेंस पर उन्होंने शुरू की । 

ऐसे महान दानी , कर्मवीर , शिक्षा - स्वास्थ्य प्रेरक , अद्भुत प्रतिभा के धनी राय बहादुर गोपाल अनंत गिरि पर हम सब गोस्वामियों को गर्व है । उनका व्यक्तित्व भी बड़ा आलीशान और रौबदार था -- सिर पर पगड़ी , बड़ी - बड़ी आंखें , रौबदार मूंछें , प्रभावशाली  चेहरा , टाई - सूट की पोशाक  और कोट पर लटकते हुए कई मैडल । मेरा महाराष्ट्र और कर्नाटक  सरकारों  से विनम्र निवेदन है कि ऐसे गोस्वामी महापुरुष की प्रतिमाएं हल्याल ( मुम्बई ) और धारवाड़ में स्थापित की जानी चाहिए । 


महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" के पृष्ठ 378 - 379 से उद्धृत । लेखक - गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली , 9818461932


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