संकलन - आदित्य भारती मोरवन
पूर्वी दिल्ली में यमुना नदी के किनारे शात्री पार्क मैट्रो स्टेशन के निकट गोसाईं बाबा सवाई श्याम गिरि का मठ है जहां पर बाबा की समाधि भी है । अब इसको "बाबा श्याम गिरि मठ - मंदिर" बोला जाता है । कश्मीरी गेट से सीलमपुर जानेवाली मुख्य सड़क पर दिल्ली परिवहन निगम ने इस आशय का एक बस स्टोप बना रखा है ।
दिल्ली का यह लगभग 700 साल पुराना मठ है । इसकी बड़ी मान्यता है । शिवरात्रि पर यहां कांवड़ियों का बड़ा मेला लगता है । लम्बा- चौड़ा चढ़ावा आता है । हालांकि इस मठ के पुजारी को गोसाईं बाबा के नाम से जाना जाता है । गुर्जर समाज भी इस मठ को बहुत मानता है । शैव संन्यास परम्परा के अनुसार यहाँ गुरू के बाद शिष्य मठ का उत्तराधिकारी बनता है । मठाधीश को विवाह करने और बच्चे उत्पन्न करने की आज्ञा नहीं होती है । वर्तमान में इस मठ - मंदिर के महंत हैं श्री रमन गिरि जी महाराज जो कि गोस्वामी समाज दिल्ली ( रजिस्टर्ड ) के कार्यक्रमों में आते रहते हैं ।
जब से इस मठ के पास से मैट्रो ट्रेन गुजरने लगी है तब से यहां बहुत रौनक बहुत बढ़ गई है वरना यह इलाका बड़ा सुनसान और एकांत हुआ करता था। यहाँ तक पहुंचने के लिए यातायात के साधन नहीं होते थे । यमुना नदी के लोहे के पुल से नीचे उतरकर झाड़ियों को पार करके पैदल यहां तक पहुंचना पड़ता था । मुझे अच्छी तरह से याद है कि अब से लगभग 35 साल पहले संस्था - "गोस्वामी समाज दिल्ली ( रजिस्टर्ड )" के स्व. श्री बांके गिरि ( भगतपुर वाले ) अध्यक्ष थे और मैं सचिव था उस समय दिल्ली गोस्वामी समाज की एक मीटिंग यहां हुई थी । मैं और स्व. श्री रूप चंद भारती ( हैप्पी इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ स्कूल्स के संस्थापक ) बड़ी मुश्किल से पैदल चलकर यहां पहुंचे थे । मीटिंग के बीच में चाय पीने की बात आई तो यहाँ क्रोकरी का अभाव था । हम सभी ने मिलकर क्रोकरी को खरीदने के लिए रुपये दिये । मठ में बिजली का कनेक्शन तो था लेकिन बिजली का भुगतान नहीं कर रखा था । हम लोगों ने मिलकर बिजली के भुगतान के लिए धनराशि भी दी । लेकिन अब तो यहां बिल्कुल नयी दुनिया बस गई है और चढ़ावे में लाखों रुपये आते हैं ।
जिस प्रकार दिल्ली में बाबा सवाई श्याम गिरि का मठ है इन्हीं के नाम से राजस्थान में भी दो मठ हैं । वहाँ के मठाधीशों से मेरा कुछ सालों तक फोन पर सम्पर्क बना हुआ था लेकिन अब कई सालों से सम्पर्क टूट गया है ।
बाबा श्याम गिरि मठ का दिल्ली में इतिहास बहुत पुराना है । कहा जाता है कि उस समय दिल्ली पर खिलजी वंश का राज था और अलाउद्दीन खिलजी यहाँ का शासक था जो कि बहुत ही कट्टर मुसलमान था । वह हिन्दुओं ( काफिरों ) से बहुत नफरत करता था । उसके समय में नागा साधुओं को दिल्ली में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं थी क्योंकि नाना साधु तो नंगे रहते थे । जो नागा साधु दिल्ली में घुसने की कोशिश करते थे उन्हें पकड़कर जेलों में डाल दिया जाता था । ऐसे लगभग 700 नागा साधु दिल्ली की जेलों में सजा काट रहे थे । युवा श्याम गिरि उस समय नये - नये साधु बने थे । वे जंगल छोड़कर जैसे ही दिल्ली में घुसे मुस्लिम सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया । उन्होंने वहां देखा कि सब साधुओं से चक्कियाँ चलवाई जा रही थीं और जो साधु चक्की चलाने से इंकार करता था उस पर हंटर और डंडों की बौछार होती थी । बाबा श्याम गिरि ने चक्की चलाने से मना कर दिया और एक रूमाल सिपाही को दिया और उसे बादशाह तक पहुंचाने को कहा । सिपाही ने वह रूमाल बादशाह को सौंप दिया । रूमाल को देखकर बादशाह हक्का बक्का रह गया क्योंकि ऐसा रूमाल उसने अपनी जिन्दगी में कभी देखा ही नहीं था । साधु से मिलने की उसकी इच्छा बहुत तीव्र हो गई । वह हाथी पर चढ़कर जेल के लिए रवाना हुआ । बादशाह को हाथी पर चढ़ा देखकर श्याम गिरि को क्रोध आ गया । उन्होंने हवा में छलांग लगाई और अगले ही पल वे पास स्थित मस्जिद की दीवार पर बैठे दिखाई दिये । बादशाह ने कहा-- " यह मस्जिद की दीवार है । यह हमारे इबादतखाने का अंश है।" बाबा श्याम बोले --" नहीं, यह मस्जिद की दीवार नहीं है बल्कि यह मेरा हाथी है।" ऐसा कहकर बाबा श्याम गिरि ने दीवार पर एक थपकी मारकर दीवार को आगे बढ़ने कीआज्ञा दी । दीवार आगे सरक गई । बादशाह की आंखें फटी की फटी रह गईं । वह अंदर से हिलकर रह गया । वह समझ गया कि युवा संन्यासी कोई चमत्कारिक साधु था । बादशाह ने समझदारी से काम लिया । बादशाह बोला --"महाराज ! नीचे उतरिये । यह हमारी इबादतगाह है । इसकी बेइज़्ज़ती नहीं कीजिए । जो आप कहेंगे मैं उसे पूरा करूंगा।" श्याम गिरि बोले -- " सभी साधुओं को कोपिन ( लंगोट ) प्रदान करके जेलों से मुक्त करो।" बादशाह ने बाबा की शर्त मानकर सभी 700 नागा साधुओं को मुक्त कर दिया ।
मुक्त होकर नागा साधु हलवाइयों की दुकानों पर टूट पड़े क्योंकि वे बहुत भूखे थे । कुछ जलेबियाँ उन्होंने खाईं और कुछों को मुट्ठी में दबाकर वे दिल्ली से बाहर चले गये । संन्यासी श्याम गिरि ने दिल्ली से बाहर जंगल में यमुना नदी के किनारे अपनी एक कुटिया बना ली । वह कुटिया ही आज दिल्ली में "बाबा सवाई श्याम गिरि का मठ - मंदिर" है । कहा जाता है कि बाबा मूलरूप से राजस्थान के वासी थे। राजस्थान में भी उनके दो मठ हैं । एक सज्जन का दावा है कि बाबा उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के मवाना के रहनेवाले थे जहाँ उनकी समाधि बनी हुई है । इस दावे के बारे में कुछ कहना मुश्किल है कि इसमें कितनी सच्चाई है क्योंकि इस बात को अब सैंकड़ों साल हो गए हैं । दावेदार के पास कोई लिखित और प्रामाणिक साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं हैं ।
© महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से। लेखक एवं शोधकर्ता :- गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही, नयी दिल्ली, 9818461932
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