संकलन - आदित्य गोस्वामी मोरवन नीमच म.प्र.
आज दशनाम गोस्वामी समाज संकट के दौर से गुजर रहा है । समाज के सामने अनेक यक्ष और ज्वलंत प्रश्न मुंह खोले खड़े हैं जिनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं । सब अपनी-अपनी दुनिया में खोये हुए हैं । किसी को भी समाज की चिन्ता नहीं है । समाज से सम्बंधित प्रश्न मन और शरीर को झकझोरने वाले हैं । आओ, ऐसे ही कुछ प्रश्नों पर आज दृष्टिपात करें और इनके समाधान खोजें :-----
पहला प्रश्न है कि "गोस्वामी कौन ? " कई लोग गोस्वामियों को ब्राह्मण बताते हैं तो कुछ कहते हैं कि ये तो ब्राह्मणों से बहुत ऊपर होते हैं लेकिन जब हम सरकारी नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो हम ओ.बी.सी. ( अन्य पिछड़ा वर्ग ) बन जाते हैं । यहीं से पहला प्रश्न शुरू हो जाता है कि क्या हम ब्राह्मण हैं या ब्राह्मणों के समकक्ष हैं या ब्राह्मणों से उच्चतर हैं ? हम अपने को क्या मानते हैं यह एक प्रश्न है और दूसरे हमें क्या मानते हैं यह दूसरा प्रश्र है । क्या दूसरे लोग भी हमें वही मानते हैं जो हम अपने को मानते हैं ?
लोग जब हमसे पूछते हैं कि " गोस्वामी कौन ?" तो हम बगलें झांकने लगते हैं । जब हम स्वयं ही गोस्वामी का अर्थ नहीं जानते हैं तो दूसरों को क्या बतायेंगे ? हमारा पहनावा , आचारण और ज्ञान भी ऐसा होना चाहिए कि लोग दूर से ही हमें पहचान लें और हमारा सम्मान करें । गोस्वामी शब्द का अर्थ बहुत उच्च एवं सम्मानीय है । यह हमारे व्यवहार से परिलक्षित होना चाहिए । लोग अपने बच्चों को आई .ए .एस. , आई. पी. एस. , डाॅक्टर , इंजीनियर, वैज्ञानिक बनने का ज्ञान तो दे रहे हैं या दिलवा रहे हैं लेकिन कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को इस बात का ज्ञान नहीं करवा रहा है कि गोस्वामी कौन होते हैं । पहले अपने को जानो ( Know thyself ) फिर दुनिया को जानो । पुरानी पुस्तकों में गोस्वामियों के बारे में ज्यादा कुछ लिखा हुआ मिलता नहीं है क्योंकि प्राचीन काल में दशनाम गोस्वामियों को शैव संन्यासी कहा जाता था जिन्होंने कभी भी अपना इतिहास नहीं लिखा और न ही किसी ने उनके बारे में लिखा । धार्मिक पुस्तकों में कहीं - कहीं गोस्वामियों का जिक्र अवश्य आया है लेकिन उसको समेटकर एक पुस्तक में समाहित करना एक टेढ़ी खीर रहा है । इस मुश्किल काम को यवतमाल निवासी स्व. श्री पृथ्वी गिरि हरि गिरि गोसावी ने अपने मराठी ग्रंथ -- "गोसावी व त्यांचा सम्प्रदाय" लिखकर प्रकाशित कर दिया था ( पहला भाग सन् 1929 ई० एवं दूसरा भाग सन् 1931 ई० में ) । इसी श्रृंखला में दूसरा नाम इलाहाबाद ( प्रयागराज ) निवासी श्री महादेव गिरि 'शम्भू' का आता है जिन्होंने अपनी पत्रिका -"गोस्वामी" में गोस्वामियों के बारे में लगातार कुछ न कुछ अवश्य लिखा । इसी कड़ी में अब मेरा नाम जुड़ गया है । अपना सुख - चैन भूलकर और 40 साल की मेहनत के बाद मैंने अपना महाग्रंथ - "गोस्वामीनामा" प्रकाशित किया है जिसमें 42 अध्याय हैं , वजन दो किलोग्राम है , जिसपर मेरे 10 लाख रुपए खर्च आये हैं और जिसकी कीमत पंद्रह सौ रुपए है । यह ग्रंथ देश- विदेश में जा रहा है और इसे पढ़कर गोस्वामी लोग लाभान्वित हो रहे हैं । इस ग्रंथ के प्रकाशित होने से गोस्वामी समाज को एक लाभ और हुआ है कि बहुत से लोग अब गोस्वामियों पर पी-एच. डी. कर रहे हैं अर्थात गोस्वामियों पर शोध कर रहे हैं । शोधकर्ता मेरे ग्रंथ से सहायता प्राप्त कर रहे हैं । जब उनके शोध पूरे हो जायेंगे तो विद्यालयों , महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में गोस्वामियों के बारे में पढ़ाया जायेगा । इससे गोस्वामियों की कीर्ति सर्वत्र फैलेगी । जो लोग गोस्वामियों को कुछ महत्व नहीं देते थे वे गोस्वामियों का लोहा मानेंगे ।
दशनाम गोस्वामियों को अपने ऋषि गोत्रों का ज्ञान नहीं है । ज्यादातर गोस्वामी अपने ऋषि गोत्र शांडिल्य , भारद्वाज , वत्स , कात्यायन , वशिष्ठ , कौशिक इत्यादि लिख रहे हैं जो कि गोस्वामियों के नहीं , ब्राह्मणों के ऋषि गोत्र हैं । दशनाम गोस्वामियों के तो केवल चार ऋषि गोत्र हैं --- वन और अरण्य का ऋषि गोत्र कश्यप है । तीर्थ और आश्रम का ऋषि गोत्र अविगत ( अधिगत ) है । गिरि , पर्वत और सागर का ऋषि गोत्र भृगु है । सरस्वती , भारती और पुरी का ऋषि गोत्र भूर्भुवः है। गोस्वामियों को चाहिए कि वे गोस्वामियों के गोत्रों को अपने लिए प्रयोग करें , ब्राह्मणों के गोत्रों को नहीं । कृपया अपने बाप को बाप कहें , दूसरे के बाप को अपना बाप न बनायें ।
दशनाम समाज में मढ़ियों का बड़ा महत्त्व है जिन्हें कुलगोत्र भी कहते हैं । दशनाम गोस्वामियों की 52 मढ़ियां हैं लेकिन अनेक गोस्वामी ऐसे हैं जिन्हें अपनी मढ़ी का ज्ञान नहीं है । जैसा कि सर्वविदित है एक मढ़ी ( कुलगोत्र ) में विवाह करना वर्जित है क्योंकि एक मढ़ी के लड़का - लड़की को भाई- बहन माना जाता है , पति-पत्नी नहीं । ध्यान रहे कि दशनाम गोस्वामियों के वैवाहिक रिश्ते एक ऋषि गोत्र में हो सकते हैं लेकिन एक ही मढ़ी में कदापि नहीं । और भी मज़े की बात यह है कि गिरि के वैवाहिक रिश्ते गिरि में , पुरी के वैवाहिक रिश्ते पुरी में , वन के वैवाहिक रिश्ते वन में और भारती के वैवाहिक रिश्ते भारती में हो सकते हैं लेकिन एक ही मढ़ी में नहीं हो सकते । इसलिए मढ़ी का स्थान गोस्वामियों में सर्वोपरि है । प्राचीन काल से ही मढ़ियों की जानकारी गुप्त रखी जाती थी ताकि अन्य सम्प्रदाय का व्यक्ति गोस्वामी समाज में घुसपैठ न कर जाये लेकिन अब तो प्रचार - प्रसार का ज़माना है , इसीलिए मढ़ियों की जानकारी को उजागर किया है । कुछ लोग मुझसे अक्सर पूछते रहते हैं -- "सर, हमारी मढ़ी कौनसी है ?" ऐसे लोगों के लिए मेरे पास एक ही उत्तर है -- "मढ़ी की जानकारी तो केवल खानदान के लोग ही बता सकते हैं , अतः अपने दादा , पिता , ताऊ , चाचा से पता कीजिए । बाहर का कोई आदमी इस बारे में नहीं बता पायेगा ।"
जैसा कि सब लोग जानते हैं कि दशनाम गोस्वामी समाज में कुल 52 मढ़ियां ( कुलगोत्र ) हैं। ना इनसे ज्यादा हैं और ना इनसे कम। लेकिन लोग अपनी अपनी - अपनी मढ़ियों के अजीब-अजीब नाम लिखकर मेरे पास भेज रहे हैं । यदि इस लिहाज से देखें तो मढ़ियों ( कुलगोत्रों ) की संख्या एक शतक से ज्यादा बैठती है । मेरे ख्याल से तत्सम और तद्भव शब्दों के कारण ऐसा हुआ है । क्षेत्रीय उच्चारणों के कारण एक ही मढ़ी के कई - कई नाम हो गये हैं । उदाहरण के लिए "ऋद्धिनाथी" एक मढ़ी है । क्षेत्रीय उच्चारणों के कारण इसे कहीं पर इसे "रिजनाथी" , कहीं पर "रिजनाथी" और कहीं पर इसे "रिद्थनाथी" बोला जाता है । हमें चाहिए कि गोस्वामी विद्वानों की एक बड़ी सभा आयोजित करें जहां बैठकर दशनाम गोस्वामियों के ऋषि गोत्रों और मढ़ियों ( कुलगोत्रों ) का निर्धारण हो सके।
पुराने ज़माने से यह परम्परा चली आ रही है कि शैव मठों , शिवालयों और हनुमान मंदिरों के पुजारी या महंत केवल दशनाम गोस्वामी ही हो सकते हैं । वोट पाने के चक्कर में सरकार और दलों ने अब अन्य जातियों के लोगों को इनका पुजारी या महंत बनाना शुरू कर दिया है जिससे दशनाम गोस्वामियों के सम्मुख रोज़ी - रोटी का भयंकर संकट पैदा हो गया है । जब सुनारों का व्यवसाय सरकार ने हस्तगत किया था तो सरकार ने सुनारों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी लेकिन गोस्वामियों के बारे में ऐसा कुछ नहीं हुआ है । समाज और सरकार ने गोस्वामियों का रोज़गार छीन लिया है लेकिन इसके बदले में गोस्वामियों को कुछ भी दिया नहीं है ।
स्वतंत्रता संग्राम में लड़नेवाले लोगों को सरकार ने विशेष रियायतें दी हैं । उनका मान- सम्मान भी किया है । अन्य जातियों के तो दो- दो ,चार - चार लोग ही स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं लेकिन दशनाम गोस्वामी जाति तो पूरी की पूरी स्वतंत्रता सेनानी है क्योंकि ब्रिटिश शासन के दौरान शैव संन्यासियों ( अर्थात दशनाम गोस्वामियों ) को "राजविद्रोही " ( State Rebels ) घोषित करके सेना में इनकी भर्ती पर रोक लगा दी थी । बंगाल का संन्यासी विद्रोह ( सन् 1769- 70 ) इसका जीताजागता उदाहरण है । उसी विद्रोह से "वंदे मातरम्" का नारा निकला था जिसे गाते- गाते खुश होकर लोग फांसी के फंदों पर झूल गये । इस बारे में देश की आज़ादी के बाद सरकार ने दशनाम गोस्वामियों को शहीद या स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं दिया। यदि यह दर्जा मिल गया होता तो दशनाम गोस्वामियों का रुतबा कुछ और ही होता।
हर जाति , हर सम्प्रदाय , हर धर्म के महापुरुषों के बारे में विद्यालीय एवं महाविद्यालीय पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जा रहा है , जैसे महावीर स्वामी , महात्मा बुद्ध , ईसा मसीह , मोहम्मद साहब , संत रविदास , संत कबीर , डाॅ० बी ० आर० अम्बेडकर इत्यादि लेकिन दशनाम गोस्वामियों के प्रणेता एवं उजागरकर्ता आदि शंकराचार्य के बारे में विद्यालयों और महाविद्यालयों में कुछ भी नहीं पढ़ाया जा रहा है जबकि हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा स्थान आदि शंकराचार्य का ही है । आज जो हिन्दू धर्म दिखाई दे रहा है इसका श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है । यदि आदि शंकराचार्य नहीं होते तो हिन्दू धर्म ( सनातन धर्म ) तो कभी का समाप्त हो गया होता । आदि शंकराचार्य के अधूरे कार्य को ही दशनाम गोस्वामियों ने पूरा किया था । 23 सितम्बर 2018 ई. को इंदौर में जब युवक - युवती परिचय सम्मेलन हुआ था तब मंच पर मेरी मुलाकात श्री शंकर लालवानी ( तात्कालिक अध्यक्ष, इंदौर विकास प्राधिकरण ) से हुई थी जो कि आदि शंकराचार्य के प्रति विशेष आस्था रखते थे । मैंने उनको अपना महाग्रंथ -"गोस्वामीनामा" सौंपा जिसमें आदि शंकराचार्य के जीवन एवं कृत्यों का विशेष वर्णन है । अब वे इंदौर से बीजेपी के टिकट पर सांसद हैं । उन्होंने लोकसभा में यह मांग उठाई है कि "आदि शंकराचार्य के बारे में कक्षाओं में पढ़ाया जाये ।" उनकी मांग को भारत सरकार के शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी ने सम्बंधित कमेटी के पास भेज दिया है । अब वह दिन दूर नहीं जब आदि शंकराचार्य के बारे में कक्षाओं में पढ़ाया जायेगा और जब आदि शंकराचार्य के बारे में पढ़ाया जायेगा तो दशनाम गोस्वामियों के बारे में स्वत: पढ़ाया ही जायेगा । यदि ऐसा होता है तो हम दशनाम गोस्वामियों के लिए गर्व की बात होगी ।
वर्तमान में पूरे देश में दशनाम गोस्वामियों के लगभग 167 संगठन कार्य कर रहे हैं जिनमें से कई तो कागजों तक ही सीमित हैं । ना उनके चुनाव हुए और ना होंगे । कुछ लोगों के अंदर जाति के लिए दर्द है और वे जाति के लिए जी - जान से मेहनत करते हैं । चुनाव के दिन ऐसा आदमी पिछड़कर रह जाता है । एक दिन चुनाव का दिन आता है तो कुछ दबंग हाथों में मोटी - मोटी सोने की अंगुठियां पहनकर , गले में मोटी- मोटी सोने की चैनें डालकर और बड़ी- बड़ी कारों में बैठकर चुनाव स्थल पर आ धमकते हैं । लोग उनकी जय- जयकार कर उठते हैं और वे ही चुनाव जीत जाते हैं । वे आजीवन पदाधिकारी बनकर बैठ जाते हैं और फिर कभी भी समाज की ओर पलटकर नहीं देखते । समाज की समस्या से सरोकार नहीं रखते और किसी बड़े आंदोलन में भाग नहीं लेते । इसी का कारण है कि दिल्ली में जन्तर मन्तर और रामलीला मैदान में हरियाणा की पर्वतारोही कु० सीमा गोस्वामी , दिल्ली की स्व. कुलदीप गिरि की माता श्रीमती जयावती गोस्वामी और लातूर की कल्पना गोस्वामी को सफलता नहीं मिली । कोई बडा़ पदाधिकारी वहां नहीं फटका । केवल 20- 25 आदमी वहां संघर्ष करते रह गए । रात को पुलिस ने मेरे साथ धक्का - मुक्की की जिससे मैं ज़मीन पर गिर पड़ा था ।
कुछ गोस्वामी लोगों को शिकायत है कि राजनीतिक दल उन्हें टिकट नहीं दे रहे हैं , भाव नहीं दे रहे हैं । मेरा यह कहना है कि इसके लिए दल नहीं , हम स्वयं जिम्मेदार हैं । हम में इतनी एकता और शक्ति नहीं है कि हम किसी को अपने बारे में सोचने को मजबूर कर सकें । जाटों , गूजरों , यादवों , दलितों, पटेलों , मराठों ने बड़े- बड़े आंदोलन किये हैं और उन्होंने राजनीति में अपनी पैठ बनाई है और सत्ता का उपभोग किया है लेकिन गोस्वामियों ने ऐसा कुछ नहीं किया है । जाट , गूजर अपनी मांगों के लिए जब चाहे रेल की पटरियों पर जा बैठते हैं । क्या हम कभी पटरियों पर बैठे ? अपने खाने- कमाने में ही लगे रहे क्या समाज के लिए समय दिया ? राजस्थान में गूजर आंदोलन में 36 गूजर मारे गये । क्या हमारा कोई गोस्वामी मारा गया ? बलिदान करने को कोई तैयार नहीं। हां , घर बैठे सुविधाएं सबको चाहिए।
कुछ गोस्वामी गांवों को छोड़कर नौकरी या व्यवसाय के कारण शहरों में आ बसे हैं और अपने को सम्पन्न मानकर अपने को ओ.बी.सी. मानने से मना कर रहे हैं जबकि ओ. बी. सी. आरक्षण तो एक संवैधानिक अधिकार है , कोई भीख नहीं । जब बड़ी- बड़ी सम्पन्न और दबंग जातियाँ ( जैसे जाट, गूजर, यादव, मीणा ) आरक्षण की पक्षधर हैं तो गोस्वामी क्यों नहीं ? ब्राह्मण भी आरक्षण लेना चाहते हैं लेकिन उनको मिला नहीं है । अबसे 14 - 15 वर्ष पूर्व आरक्षण प्राप्त करने का आंदोलन ब्राह्मणों ने राजस्थान में चलाया था लेकिन उनको सफलता नहीं मिली थी ।
गोस्वामियों की आर्थिक हालत बहुत खराब है। किसी - किसी गाँव में तो गोस्वामी का अकेला घर होता है । उसकी हालत तो और भी शोचनीय है। गोस्वामियों के पास खेतीबाड़ी नहीं है , रोज़गार नहीं है । अपनी इज्ज़त को मुश्किल से बचाये पड़े हैं । हमें समग्र समाज की चिंता करनी चाहिए , न कि व्यक्ति विशेष की।
हमारे समाज में विवाह के लिए योग्य वर- कन्या नहीं मिल रहे हैं । कारण कई हैं । एक कारण यह भी है कि लड़के लाड़ - प्यार में निकम्मे , अनपढ़ और निठल्ले रह गये हैं जबकि लड़कियां ने पढ़- लिखकर कामयाबी का परचम फहरा दिया है । ऐसी काबिल कन्या का कोई भी पिता अयोग्य वर को अपनी कन्या को सौंपने को तैयार नहीं है । इसीलिए कुछ गोस्वामी अन्तर्जातीय विवाहों की ओर उन्मुख हुए हैं । इस समस्या पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने की ज़रूरत है वरना एक दिन यह समस्या सुरसा का मुंह बन जायेगी और हम कुछ नहीं कर पायेंगे । इसी बात को ध्यान में रखकर मैंने शादी कराने का नि:शुल्क एवं नि:स्वार्थ कार्य शुरू किया है । मैं सोचता था कि मैं अकेला ही इस काम को कर सकूंगा लेकिन काम इतना बढ़ गया है कि चार - पांच आदमी मेरे नीचे काम करने को होने चाहिए । फिर उनका वेतन कौन दे ? जोड़ों को मिलवाने का स्थान भी होना चाहिये और खानपान की व्यवस्था भी । उसका खर्च कौन वहन करे ? बहुत सारे वैवाहिक रिश्ते मैंने करा दिए हैं और यह कार्य अभी भी जारी है । इस मामले में भी कई समस्याएं हैं । कुछ अभिवावक मेरे पास अपने बच्चों का रिकॉर्ड लिखवा तो देते हैं लेकिन पलटकर नहीं देखते । वे कभी फिर उस बारे में जिक्र तक नहीं करते । हां, मैं ही कभी - कभार उनसे पूछ लेता हूं कि "अभी रिश्ता हुआ कि नहीं ?" कुछ अभिवावक दूसरों के बच्चों के बारे में जानने के लिए उतावले रहते हैं लेकिन अपने बच्चों की जानकारी छिपाने में विश्वास रखते हैं । वे नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चों की जानकारी फेसबुक या वाट्सएप पर प्रसारित हो । मेरा यह मानना है कि जानकारी छिपाकर या धोखेबाजी से रिश्ता करना आगे चलकर घातक होता है । ऐसे कई वैवाहिक रिश्ते टूटते हुए मैंने देखे हैं । कमजोर नींव पर बने भवन जल्दी ही धराशायी हो जाते हैं । कुछ अभिभावक अपने बच्चों का विवरण मुझसे फेसबुक पर प्रकाशित करवा देते हैं और मैं ऐसा कर देता हूँ । कुछ समयों या दिनों के बाद अभिभावक का मेरे पास फोन आता है -- " आप फेसबुक पर से मेरी बेटी का विज्ञापन हटाइए । मेरी बेटी को बहुत बुरा लग रहा है । बड़े फोन आ रहे हैं ।" मेरा इतना ही कहना है कि - "विज्ञापन देने से पूर्व बेटी से तो पूछ लेते ।" कहने का मतलब यह है कि ऐसे रिश्ते अटक जाते हैं या फिर कभी होने ही नहीं हो पाते हैं । अरे , आज ज़माना बहुत एडवांस है । ऐसी पुरानी सोच नुकसान ही करेगी ।
पहले जैसा ज़माना अब नहीं रहा है । बच्चे बड़े काबिल निकल रहे हैं विशेषकर लड़कियां । कोई पी-एच . डी. करने या डॉक्टरी करने के बाद शादी के लिए मैदान में उतर रही है जिसकी उम्र तीस या उससे ऊपर निकल जाती है । कुछ लोग उनकी उम्रों को देखकर ही आगबबूला हो जाते हैं और फेसबुक पर गंदे- गंदे कमेंट्स पास करने लगते हैं । मैंने ऐसे लोगों की प्रोफाइल्स को खंगाला है । ये वे निकम्मे लड़के हैं जिनका पढ़ाई से कोई वास्ता नहीं रहा है । जो दसवीं या बारहवीं से आगे नहीं पढ़ पाये हैं । अरे , यह तो समझने की बात है जिस लड़की ने डॉक्टरी में एम. डी. या एम. एस. या किसी विषय में पी-एच. डी. कर रखी है तो उसकी उम्र 30 या 35 वर्ष हो जाना स्वाभाविक है , इसमें अचरज की कौनसी बात है ? हमें किसी की खिल्ली उड़ाने का कोई अधिकार नहीं है । हमें बेटीवाले को सहयोग करना चाहिए । यदि आपकी जानकारी में विवाह योग्य कोई अच्छा लड़का है तो उसकी सूचना बेटीवाले को तुरंत बतायें । जो निठल्ले लड़के बिना सोचे - समझे ऐसे ऊलजलूल कमेंट्स पास करते रहते हैं उनको इस बारे में भी सोचना चाहिए कि यदि उनकी बहनों के बारे में कोई ऐसे ही कमेंट्स पास करे तो उन पर क्या बीतेगी ?
अपने गोस्वामी समाज में सदैव लेने की भावना रही है, देने की नहीं। अब इस सोच को बदलना होगा । किसी के आगे झुकने की ज़रूरत नहीं है । सदैव दाता बनो, याचक नहीं वरना नयी पीढ़ी आपसे कतराने लगेगी ।
शादी और मृत्युभोज पर अनापशनाप खर्च करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाइये । सामूहिक विवाहों को वरीयता और प्रोत्साहन दीजिए । पदाधिकारी पर शर्त लागू हो कि वह अपने बच्चे की शादी सामूहिक विवाह समारोह में करे । राजा जिस काम को करता है तो प्रजा उसका अनुसरण अवश्य करती है । मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र , गुजरात , राजस्थान में सामूहिक विवाहों का कार्यक्रम बहुत अच्छा चल रहा है । इससे धन, ऊर्जा और समय की बचत हो रही है और थोक में आशीर्वाद मिल रहा है । अन्य प्रदेशों के गोस्वामियों को इनसे सीखना चाहिए ।
पुरानी वैराग्य प्रवृत्ति को त्यागकर धनसंग्रह पर ध्यान लगाओ । जिनके पास धन होता है लोग स्वतः ही उनसे जुड़े चले जाते हैं भले ही टाटा हो या बिड़ला, अम्बानी हो या अडानी । मेरी मां कहा करती थी कि " जग में कमाओ परंतु बिरादरी को खिलाओ।" गैर - बिरादर तो खाकर , हाथ झाड़कर चला जायेगा लेकिन बिरादरी खाकर याद रखती है।
जाति में जागृति बनाये रखने के कोई न कोई समारोह करते रहिए जैसे -- सामूहिक विवाह समारोह , शंकराचार्य जयंती , हनुमान जयंती , शिवरात्रि, दत्तात्रेय जयंती , तुलसीदास जयंती इत्यादि । पैसों की चिंता न करिए । लोगों के पास बहुत पैसा है , बस आप में लोगों की जेबों से पैसा निकलवाने की योग्यता या कला होनी चाहिए।
दरियों पर बैठकर समारोह करने की प्रथा को बदलकर होटलों में हाईफाई कार्यक्रम करने की ओर अग्रसर होना चाहिए तभी नयी पीढ़ी आपसे जुड़ेगी । आपके टूटे - फूटे कार्यक्रम में नये लड़का - लड़की नहीं आयेंगे ।
कुछ लोग शिकायत करते रहते हैं कि राष्ट्रपति होकर भी स्व. श्री वी.वी. गिरि ने , उपराष्ट्रपति होकर भी स्व. श्री बी.डी.जत्ती ने , केन्द्रीय कानून मंत्री होकर स्व. श्री दिनेश गोस्वामी ने , यू.पी. के गृहमंत्री होकर स्व. श्री राधाकृष्ण गोस्वामी ने गोस्वामी जाति के लिए क्या किया ? मैं पूछता हूँ कि वे क्या कर सकते थे ? कुछ बिरादरी के लिए करते तो कानूनी शिकंजे में फंस जाते और उन्हें कोई छुड़ानेवाला नहीं होता । यादव लोग श्री मुलायम सिंह यादव के पीछे खड़े नज़र आते हैं और दलित कु. मायावती के पीछे तो क्या उनके पीछे खड़े नज़र आते हैं क्योंकि उनकी बिरादरियां उनके पीछे खड़ी हैं लेकिन अपनी बिरादरी किसी के पीछे खड़ी नज़र नहीं आती है । दूसरी बात वी. वी. गिरि इत्यादि लोग अपने बलबूते पर बने । बिरादरी की उसमें कोई भूमिका नहीं थी । हर चीज को स्वार्थ की तराजू पर न तोलिये । कुछ लोग परोक्ष रूप से बहुत कुछ दे जाते हैं , जैसे गोस्वामी तुलसीदास ने "गोस्वामी" शब्द को जन - जन तक पहुंचाया । वी. वी. गिरि से "गिरि" शब्द बहुत लोकप्रिय हुआ । इनसे गोस्वामियों की पहचान बनी ।
कुछ गोस्वामियों को शिकायत है कि दशनाम गोस्वामियों के गिरि, पुरी, भारती , सरस्वती टाइटल को लगाकर कुछ लोग राजनीति और धर्म के क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं । उनका कहना है कि केवल जन्मजात गोस्वामी को ऐसा हक मिलना चाहिए। जूना अखाड़े के महासचिव श्री हरि गिरि का कहना है ---'" संन्यासी बनने के लिए असली दशनाम गोस्वामी लोग अपने बच्चों को हमें सौंपते नहीं हैं तो हमें मजबूर होकर अन्य जाति के लोगों के बच्चों को संन्यासी , पुजारी , महंत , महामंडलेश्वर बनाना पड़ता है।"
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