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दशनाम गोस्वामी परम्परा का संक्षिप्त सारांश


संकलन - आदित्य भारती मोरवन

प्राचीनतम सभ्यता से सम्बद्ध :- पहले आर्य सभ्यता को भारत की प्राचीनतम सभ्यता माना जाता था लेकिन सन् 1922 ई. में मोहनजोदड़ो , हड़प्पा , लोथल , कालीबंगा इत्यादि स्थानों की खुदाई से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि  सिंधु घाटी सभ्यता भारत की प्राचीनतम सभ्यता है  जिसमें शैव धर्म के साक्ष्य एवं अवशेष मिले हैं । 

दशनाम पंथ के इष्टदेव :-   शैव धर्म के इष्टदेव भगवान शिव हैं । शैवधर्म से ही संन्यासी संप्रदाय या परम्परा का आविर्भाव हुआ है । भगवान शिव को पहला संन्यासी माना जाता है । इसलिए शैवधर्म दशनाम पंथ का पिता है।

दशनाम पंथ के माता - पिता :-   प्राचीनकाल में केवल ब्राह्मणों को ही संन्यासी बनने का अधिकार था । बहुत से ब्राह्मण वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय को छोड़कर शैव धर्म में शामिल होकर संन्यासी बन गये । बस वहीं से ही दशनाम संन्यासियों ( अर्थात दशनाम गोस्वामियों ) की उत्पत्ति हुई । दशनाम गोस्वामियों में कुछ लक्षण शैवधर्म के हैं और कुछ लक्षण वैष्णव धर्म के हैं । अतः यह कहना न्यायोचित होगा कि दशनाम पंथ का पिता शैवधर्म है जबकि इसकी माता वैष्णव धर्म है । 

गोस्वामी और ब्राह्मण में अंतर :-  दशनाम गोस्वामियों के ऋषि गोत्र वही हैं जो ब्राह्मणों के हैं लेकिन दोनों के कुलगोत्रों में भारी अंतर है । ब्राह्मण और गोस्वामी दो अलग अलग जातियां हैं लेकिन इन दोनों का वर्ण एक ही है - ब्राह्मण वर्ण । ब्राह्मणों और गोस्वामियों कई फर्क हैं , जैसे - ब्राह्मण लोग कर्मकांडमार्गी हैं जबकि दशनाम गोस्वामी ज्ञानमार्गी हैं । ब्राह्मण लोग लौकिकता में लिप्त हैं जबकि गोस्वामी लोग पारलौकिकता में विश्वास करते हैं । ब्राह्मण लोग हवनादि से देवताओं को प्रसन्न करते हैं जबकि गोस्वामी लोग जल , फल , फूल चढ़ाकर इष्टदेव एवं देवताओं को प्रसन्न करते हैं । ब्राह्मण लोग पीत वस्त्र धारण करते हैं जबकि गोस्वामियों के वस्त्रों का रंग भगवा है । ब्राह्मण लोग यज्ञों में बलि चढ़ाते हैं जबकि गोस्वामी लोग हर प्रकार की हिंसा के विरोधी हैं । ब्राह्मण लोग ऋषि परम्परा में आते हैं जबकि गोस्वामी लोग मुनि परम्परा के वाहक हैं । ब्राह्मण लोग मूलतः प्रवृत्तिधर्मी और गृहस्थ हैं जबकि गोस्वामी लोग मूलतः निवृत्तिधर्मी हैं जो मोह , माया को छोड़कर तप , व्रत एवं वैराग्य में विश्वास करते हैं । ब्राह्मण लोग शुरू से समाज में घुले- मिले रहे हैं लेकिन गोस्वामी लोग ( संन्यासी लोग ) समाज से दूर निर्जन वनों और घनी - अंधेरी कंदराओं में रहते थे । बाद में उन्होंने  इंसानी बस्तियों के बाहर अपना डेरा जमाया । ब्राह्मण लोग रामकथा करते हैं जबकि गोस्वामी लोग शिवकथा करते हैं । विवाह में फेरों के समय वर - वधु को केवल शिव- पार्वती के उदाहरण देकर गृहस्थ जीवन के नियम सिखलाये जाते हैं , वहाँ राम - सीता के उदाहरण नहीं दिये जाते हैं । ब्राह्मण लोग शिवलिंग पर चढ़ी किसी चीज को नहीं लेते या नहीं खाते जबकि गोस्वामी शिवलिंग पर चढ़ी हर चीज को बड़ी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं और बड़े चाव से खाते हैं ।

गोस्वामियों का मूल दर्शन :- गोस्वामियों का दर्शन अद्वैतवाद कहलाता है जिसके जिसके विरोध में अनेक दर्शन उभरे , जैसे -- द्वैतवाद , विशिष्टाद्वैतवाद इत्यादि ।

अद्वैतवाद के शैवाचार्य :- अद्वैतवाद के ग्यारह आचार्य हुए हैं जिनके नाम हैं  नारायण , ब्रह्मा , रुद्र , वशिष्ठ , शक्ति , पराशर , वेदव्यास , शुकदेव , गौड़पाद , गोविंदपाद , शंकरपाद (अर्थात आदि शंकराचार्य ) ।

दस नाम /उपनाम / पद :- तीर्थ , आश्रम , वन , अरण्य , गिरि , पर्वत , सागर , सरस्वती , भारती , पुरी ।

गोस्वामियों की महामठों से सम्बद्धता :- वन और अरण्य पूर्व में गोवर्धन महामठ से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र कश्यप है । तीर्थ और आश्रम पश्चिम में शारदा महामठ ( द्वारका ) से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र अधिगत ( अविगत ) है । गिरि , सागर , पर्वत  उत्तर में ज्योतिर्मठ से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र भृगु है । सरस्वती , भारती , पुरी दक्षिण में श्रृंगेरी महामठ से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र भूर्भुवः है।

चार महामठ :- पूर्व में गोवर्धन महामठ ( पुरी, उड़ीसा ) , पश्चिम में शारदा महामठ ( द्वारका, गुजरात ) , उत्तर में ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड ) , दक्षिण में श्रृंगेरी महामठ ( मैसूर , कर्नाटक ) ।

महामठों से सम्बंधित चार ऋषि :- कश्यप ( गोवर्धन मठ ) , दधीचि ( शारदा मठ ) , भृगु ( ज्योतिर्मठ ), श्रृंगी ( श्रृंगेरी मठ) ।

सात दशनाम अखाड़े :- महानिर्वाणी , निरंजनी , जूना ( भैरव ) , अटल , आनंद , अग्नि , आवाहन ।

चार महावाक्य :- प्रज्ञानं ब्रह्म , तत्त्वमसि , अयमात्मा ब्रह्म , अहम् ब्रह्मास्मि ।

भोगवार , कीटवार , आनंदवार , भूरिवार ।

चार भाले :- सूर्य प्रकाश , चन्द्र प्रकाश , दत्त प्रकाश , भैरव प्रकाश ।

चार धूनियां :- गोपाल ,अजयमेध , दह ( दत्त ) , सूर्यमुखी ।

चार संन्यासी भेद :- कुटीचक , बहुदक , हंस , परमहँस ।

चार अवस्थाएं :- जागृत , स्वप्न , सुषोपति , तुरिया ।

आदि शंकराचार्य दशनाम पंथ के जनक नहीं :- दशनाम गोस्वामी  पंथ या समाज संन्यास परम्परा से निकला है जोकि अनादि काल से चली आ रही है । आदि शंकराचार्य संन्यास परम्परा के अंतर्गत एक महान आत्मा थे । संन्यास परम्परा  तो आदिशंकराचार्य से पहले भी विद्यमान थी और आदिशंकराचार्य के बाद भी चलती रही है ।

शिखा-सूत्र :- शिखा-सूत्र को गृहस्थ गोस्वामी को धारण करना अनिवार्य लेकिन विरक्त गोस्वामी या संन्यासी के लिए नहीं क्योंकि शिखा - सूत्र को त्यागकर ही कोई व्यक्ति संन्यासी बन सकता है ।

समाधि :- समाधि दो प्रकार की समाधि होती थी -- भूसमाधि और जलसमाधि । समाधि दो प्रकार से ली जाती थी --मृत समाधि और जीवित समाधि। प्राचीनकाल में विरक्तों और गृहस्थों - दोनों के लिए समाधि ही अंतिम क्रिया थी , परंतु कालांतर में विरक्त गोस्वामी समाधि लेते रहे और गृहस्थ गोस्वामियों ने दाहकर्म को अपना लिया। राजस्थान , गुजरात , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ ,  महाराष्ट्र में समाधि प्रथा चल रही है किंतु शहरों में गृहस्थ गोस्वामी लोग दाहकर्म कर रहे हैं ।

गोस्वामी लोग ज्ञानमार्गी हैं , कर्मकांडी नहीं :- प्राचीनकाल से ही गोस्वामी लोग ज्ञान , तप,वैराग्य और आध्यात्म को वरीयता देते रहे हैं और कर्मकाण्ड के विरोधी रहे हैं । गोस्वामियों ने यज्ञों में होनीवाली हिंसा का सदैव विरोध किया। ब्राह्मणों द्वारा कलावती की कथा को गोस्वामियों ने कभी स्वीकार नहीं किया जिसमें बताया जाता है कि ब्राह्मण को दान नहीं देने के कारण अमुक यजमानों का सर्वनाश हो गया । गोस्वामियों ने वेदों-पुराणों को तो माना लेकिन ब्राह्मणों ने जो उसमें अपने स्वार्थवश खाने-कमाने की जो सामग्री उनमें जोड़ दी तो गोस्वामियों ने उसे कभी नहीं माना।

दशनाम गोस्वामियों की दो प्रमुख धाराएँ हैं -- विरक्त और गृहस्थ । विरक्तों को धार्मिक सैनिक ( Religious military men ) और गृहस्थों को धार्मिक नागरिक ( Religious civil men ) कहा जाता है ।

दशनाम गोस्वामियों का व्यवसाय :- शैव मठों , शिवालयों और हनुमान मंदिरों पर महंत एवं पुजारी बनना । अब तो नौकरी , मजदूरी और व्यापार में भी लगे हुए हैं ।

सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति :- दशनाम गोस्वामियों की सामाजिक , धार्मिक एवं आध्यात्मिक  स्थिति शुरू से ही उच्च रही है । भारतीय समाज से गोस्वामियों को सदैव से मान- सम्मान मिलता रहा है । लोग इनके पैर छूते रहे हैं । सदैव से  प्राचीन परम्परा रही है कि भले ही हजारों ब्राह्मणों को भोज कराया जाये लेकिन उसका फल नहीं मिल सकता जब तक उसमें कम से एक संन्यासी ( अर्थात गोस्वामी ) न हो । शिवलिंग और हनुमान प्रतिमा पर चढ़े हुए चढ़ावे को लेने का एकमात्र अधिकार गोस्वामी को है । जो असल ब्राह्मण हैं वे इस सत्य को अंदरूनी रूप से जानते हैं । वे भूलकर भी उस चढ़ावे को ग्रहण नहीं करते । दशनाम गोस्वामी लोग सामाजिक , धार्मिक एवं आध्यात्मिक  दृष्टि से तो सम्पन्न हैं लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं । अतः कई प्रदेशों में इनको ओ. बी. सी. (  Other Backward Class ) में रखा है ।  

दशनाम गोस्वामियों की जनसंख्या :- किसी पर प्रामाणिक आंकड़े तो हैं नहीं लेकिन अंदाजे के आधार पर भारत में गोस्वामियों की जनसंख्या कोई तीन करोड़ बताता है तो कोई सात करोड़ । परंतु इतना निश्चित है कि भारत में दशनाम गोस्वामियों की संख्या हज़ारों या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है । दिल्ली की वर्तमान जनसंख्या लगभग पौने दो करोड़ है जिसमें से लाखों लोग गोस्वामी हैं । नेपाल की वर्तमान जनसंख्या तीन करोड़ है जिसमें से तीन लाख गोस्वामी हैं अर्थात कुल जनसंख्या का 1% । 


©महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से । लेखक - गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली

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