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गोस्वामी गौरव महान स्वतंत्रता सेनानी दल बहादुर गिरि



दल बहादुर गिरि एक नेपाली दशनामी गृहस्थ गोसाईं  ( गोस्वामी ) थे । उनका जन्म 8 मार्च सन् 1886 ई० को दार्जिलिंग में हुआ था । उनके दो भाई थे -- आगम बहादुर गिरि तथा मन बहादुर गिरि । उनके बड़े भाई आगम बहादुर गिरि कलकत्ता में कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में कार्य करते थे । उन्होंने तरुण गोरखाओं का एक संघ बना रखा था जोकि मुसलमानों के अत्याचारों से हिंदुओं की रक्षा करता था । उनके दूसरे भाई मन बहादुर गिरि दार्जिलिंग जिला कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी थे ।

                दल बहादुर गिरि का राजनीतिक जीवन सिक्किम से शुरू हुआ जहां वे शाही महल में एक लिपिक थे । सन् 1916 ई० में वे दार्जिलिंग लौटे और कालिमपोंग ( Kalimpong ) में बस गये । बाद में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर गये । उन्होंने दिल्ली, मुम्बई, नागपुर एवं अन्य प्रांतों के सम्मेलनों में भाग लिया । उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में बढ़ - चढ़कर हिस्सा लिया । उन्होंने सन् 1920 ई० में स्वतंत्रता आंदोलन का पेडोंग ( Pedong ) और कालिमपोंग ( Kalimpong ) में नेतृत्व किया । उन्होंने गांधी जी की गिरफ्तारी का विरोध किया , अतः ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 26 जून 1921 को गिरफ्तार कर लिया और बाद में उनको रिहा कर दिया गया । नवम्बर 1921 को उन्हें पुनः गिरफ्तार किया गया । पहले उन्हें हुगली जेल में डाला गया और बाद में ब्रह्मपुत्र जेल में । सन् 1921 से लेकर 1924 तक वे तीन बार जेल गए । बार - बार जेल आने - जाने से  उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया  । उनको भयंकर गरीबी का सामना भी करना पड़ा लेकिन उन्होंने देशभक्ति को नहीं छोड़ा । 13 नवंबर 1924 ई० को वे स्वर्ग सिधार गये ।

उनकी मृत्यु पर 13 नवंबर 1924 ई० को गांधी जी ने उनके परिवार को एक सांत्वना पत्र भेजा जिसमें उनको "धरती पुत्र" बताया गया । 

दल बहादुर गिरि की मृत्यु पर गांधी जी ने अपने अखबार "यंग इंडिया" में 13 नवंबर 1924 को लिखा था --- " यंग इंडिया के  अनेक पाठक देशभक्त दल बहादुर गिरि को उनके नाम से जानते हैं । शायद कुछों ने उनका नाम जाना भी नहीं होगा । तो भी वे श्रेष्ठतम राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं में से एक थे । जैसा कि मैं यंग इंडिया के लिए लिख रहा हूँ कि मुझे उस अनजान देशभक्त की मृत्यु का समाचार कालिमपोंग से एक तार ( wire ) द्वारा प्राप्त हुआ है । मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि उनके परिवार को अर्पित करता हूँ । वे एक संस्कारी गोरखा थे और वे दार्जिलिंग के आस- पास गोरखाओं के मध्य अच्छा कार्य कर रहे थे । सन् 1921 ई० में असहयोग गतिविधियों के कारण हजारों लोगों की तरह वे जेल में डाले गए थे । कारावास के दौरान वे बुरी तरह से बीमार पड़ गए थे । वे अभी कुछ महिनों पहले ही रिहा हुए थे । जहाँ तक मुझे जानकारी है वे अपने पीछे एक बड़ा परिवार छोड़ गये हैं जिसकी आजीविका का कोई साधन नहीं है ।" 

दल बहादुर गिरि की प्रतिमा कालिमपोंग में किंग थाई होटल के सामने थाने दारा ( Thaney dara ) में स्थापित की गई जिस पर पचास हजार रुपयों का खर्च आया । प्रतिमा का अनावरण करते हुए फ्रीडम फाइटर्स फेडेरेशन के सचिव दलजीत सेन ने कहा था -- "आजादी के संग्राम में दल बहादुर गिरि का योगदान भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद से कम नहीं था ।"

कालांतर में गांधी जी ने स्वर्गीय दल बहादुर गिरि की पत्नी श्रीमती कृष्ण माया देवी को अपने साबरमती आश्रम में शरण दी थी । 

यवतमाल ( महाराष्ट्र ) में पृथ्वी गिरि हरि गिरि गोस्वामी ( गोसावी ) एक पत्रकार थे जो कि एक अखबार "हरि किशोर" चलाते थे । वे दल बहादुर गिरि के बारे में जानकारी चाहते थे , अतः उन्होंने श्रीमती कृष्ण माया देवी के नाम एक पत्र साबरमती आश्रम भेजा । श्रीमती कृष्ण माया देवी को केवल नेपाली भाषा का ज्ञान था । हिंदी का उनको बिल्कुल ज्ञान नहीं था । अतः उन्होंने किसी और से हिंदी में पत्र भिजवाया जिसका नमूना नीचे दे रखा है :---

          सत्याग्रह आश्रम, साबरमती  

ता. 22 - 4- 26 भाई श्री पृथ्वीगिरि हरिगिरि जी,

                   आपका कृपापत्र मिला । समाचार ज्ञात हुए । आपकी सेवा में सादर निवेदन है कि स्वर्गीय श्री दल बहादुर गिरि जी के विषय में जो बातें आपको ज्ञात करनी हों उनके लिए नीचे लिखे पते से उनके भाई के पास पत्रव्यवहार कीजिए । मैं आपको नहीं बता सकती । इसके कई कारण हैं -- यानि हिंदी का ज्ञान न होना , दूसरे , मेरी निजी भाषा नेपाली को यहां कोई नहीं समझता है । इसलिए आपको कुछ नहीं बतला सकती । इसलिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।

पता : मन बहादुर गिर , कालीपुंग, दार्जिलिंग 

      निवेदिका - कृष्ण माया देवी


पत्रकार पृथ्वी गिरि हरि गिरि ने सन् 1926 ई० में कालिमपोंग को पत्र भेजा जिसका उत्तर दो वर्ष बाद आगम गिरि ने दिया जोकि निम्नलिखित था :-

  तिरपाई   पो.ऑ . कालिंपोंग  19 अगस्त 1928

प्रिय महाशय ,

                          मेरे बंधु  मन बहादुर गिरि के नाम से आपका पत्र मिला । वह यहाँ नहीं है । वह दूसरे गांव में है । आप मेरे दूसरे बंधु दल बहादुर गिरि के चरित्र के बारे में मालूम करना चाहते हैं । हम दशनामी गोस्वामी हैं और नेपाली क्षत्रिय हैं । हम गिरिनामा दशनामी गोस्वामी हैं । हमारी मढ़ी अपारनाथी है । हम नेपाली हैं । नेपाल में गिरिनामाशिवाय बन , अरण्य , सरस्वती, और पुरिनामा दशनामी गोस्वामी भी होते हैं । गृहस्थ व त्यागी ( निस्पृहि ) दोनों भेद होते हैं , परंतु घरबारी अधिक संख्या में हैं । इनमें शूद्र नहीं होते हैं । गिरिनामा में अनेक पंथ हैं ( अर्थात मढ़ियां हैं ) । मैंने बहुत से प्रश्नों का खुलासा किया है । अतः मेरे भाव को समझिये । नमोनारायण ।

                      आपका आगम गिरि 

सन् 1946 ई० में दल बहादुर गिरि की पत्नी का मुम्बई में निधन हो गया । 

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि दल बहादुर गिरि का पूरा परिवार ही कांग्रेस और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ा हुआ था । खान अब्दुल गफ्फार को पश्चिमोत्तर का "सीमांत गांधी" कहा जाता था , वहीं दल बहादुर गिरि को पूर्वोत्तर का "सीमांत गांधी" कहा जाता था ।  देश के लिए दल बहादुर गिरि ने अनेक कष्ट झेले और अंत में अपने प्राण दे दिये ।  लेकिन त्रासदी यह है कि इतने महान देशभक्त को वह सम्मान नहीं मिल पाया है जिसके वे हकदार थे । उनके बारे में इतिहास की पुस्तकों में जिक्र तक नहीं है । देश को आज़ादी मिलने के बाद जिनके उत्तराधिकारी सत्ता पर काबिज हो गए उनके पूर्वजों का गुणगान हो रहा है अथवा जिन  जातियों ने  राजनीति में अपनी पैठ बना ली है वे अपने पूर्वजों को महान बताने में लगे हुए हैं । दल बहादुर गिरि का कोई उत्तराधिकारी सिंहासन पर आसीन नहीं हुआ और उनकी जाति गोस्वामी  भी राजनीति में ज्यादा कुछ नहीं कर पाई , अतः दल बहादुर गिरि के बारे में कुछ नहीं बताया जाता है । कालिमपोंग में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं परन्तु वहाँ उस समय दल बहादुर गिरि को कोई याद नहीं करता है । दल बहादुर गिरि के योगदान को भुला दिया गया है । दल बहादुर गिरि की प्रतिमा पर अनेक क्षेत्रीय ध्वज हैं लेकिन कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं है । यहां तक कि पोस्टरों के कारण प्रतिमा भी ठीक से दिखाई नहीं पड़ती है । इतने महान देशभक्त को पता नहीं कब उचित सम्मान मिलेगा ? 

© महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से उद्धृत । लेखक : गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली , 9818461932

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