प्रस्तुतिकरण - आदित्य रमेश भारती नीमच
करे क्या 'मेरा-मेरा', नहीं यहाँ कुछ है तेरा।
पंछी उड़ेगा अकेला, है एक रैन बसेरा ।।
पाप-कपटकर माया जोड़ी, साथ न तेरे जाये,
आये काल का साया जब शब्द न मुंह से आये।
काबू करना चाहे बहुतेरा, पेश न तेरी जाये,
टप-टप तेरे आंसू टपकें, फिर पाछे पछताये।
यम ने कंठ आये घेरा, है एक रैन बसेरा ।।
जिस काया को मल-मल धोया, साफ़ रखी बहुतेरी,
उड़ा हंस अकेला यहां से, कहाँ रही फिर तेरी ?
दारा, सुत और कुटुम्ब, कबीला समझे था तू अपना,
मूरख तूने कभी ना सोचा 'ये जीवन एक सपना'।
किया पाप बहुतेरा, है एक रैन बसेरा ।।
घर के कहें बाहर काढ़ो, भूत बने खा जायैगौ,
कहाँ महल गये अब वो तेरे जहां पहले तू रहियौ।
फूलों की सेजों पर सोया, पांव ना नीचे दिया,
अब घास-फूंस में तुझको बांधा, विरोध ना तूने किया ।
तेरा उठ गया डेरा, है एक रैन बसेरा ।।
तीन दिन तेरी तिरिया रोवै, समय पड़े पर भाई,
तीज - त्यौहार बहन तेरी रौवै, रोज़-रोज़ तेरी माई।
अंतकाल देखकर तेरा नारी ने आंख चुराई,
बहुतेरा समझाया सभी ने लेकिन हुई पराई।
जिसमें प्रेम था घनेरा, है एक रैन बसेरा ।।
बुराई,भलाई रहे यहाँ पर,साथ ना कुछ जायेगा,
मुट्ठी बांधे आया था तू , हाथ पसारे जायेगा।
क्या पाप है , क्या पुण्य है , सब आगे आयेगा,
जैसा तूने किया "निर्मोही", वैसा ही पायेगा ।
नाम नहीं रहे तेरा, है एक रैन बसेरा ।।
प्राचीन आदर्शों ओर नई सोच के साथ गोस्वामी आगे बढ़े
© "निर्मोही गीतमाला" से उद्धृत । गीतकार :- गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही, नयी दिल्ली, 9818461932
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