Hot Posts

6/recent/ticker-posts

मानवी सृष्टि और गोस्वामी....



प्रस्तुतिकरण :- आदित्य रमेश भारती नीमच

सृष्टि का सृजन कैसे हुआ , इसके ऊपर अनेक मत हैं ।वैज्ञानिक लोग इसका कारण बिंदु विस्फोट ( Big Bang ) मानते हैं । ब्रह्मांड या महदाण्य या शून्य का आरम्भ आणविक विस्फोट से हुआ जिसके कारण पदार्थ के छिटकने से अनेक तारों,ग्रहों ,नक्षत्रों का निर्माण हुआ ।

वैज्ञानिक सोच को धर्म स्वीकार नहीं करता है । धर्म की अपनी थ्योरी अलग है । धार्मिक धारणा के अनुसार ब्रह्मांड के साथ तीन देवी शक्तियों का निर्माण हुआ ।ऊर्जा देवी तीन भागों में विभाजित हो गई - सृजन ( Creation ) , संरक्षण ( Preservation ) तथा संहार (Destruction ) । ये तीनों गुण सत्व,रजस् एवं तमस कहलाते हैं जिन्हें क्रमशः ब्रह्मा , विष्णु और महेश का नाम दिया गया ।श्रीमद्भागवत के अनुसार विष्णु की नाभि से कमल पर विराजित ब्रह्मा ने सृष्टि का सृजन किया ।सबसे पहले चार मानस पुत्रों - सनक , सनत , सनातन , सनंदन - को पैदा किया लेकिन नैष्ठिक ब्रह्मचारी होने के कारण उन्होंने मैथुनी सृष्टि करने से इंकार कर दिया । तब ब्रह्मा ने अपने ललाट से रोते हुए देव को पैदा किया जिसे "रूद्र" कहा गया । रुद्र ने ग्यारह रुद्रों और ग्यारह रुद्राणियों को पैदा किया और उनसे ही सृष्टि आगे बढ़ी । इस थ्योरी में विष्णु को सर्वोपरि बताया गया है और रुद्र ( शिव ) की उत्पत्ति भी विष्णु से बतायी गई है । यह थ्योरी वैष्णवों ( ब्राह्मणों ) की है । इस थ्योरी को शैव ,शाक्त , गणापत्य , चर्वाक , जैन , बौद्ध कोई नहीं मानता और मैं भी नहीं मानता हूँ । 

गोस्वामी विभूतियाँ

                         गोस्वामी लोग मूलतः शैव हैं । हम शिव के अलावा किसी को नहीं मानते हैं । हमारे लिए शिव सबसे पहले हैं और बाकी देवी - देवता बाद में हैं ।  शिव ही हमारे इष्टदेव हैं , आराध्य देव हैं । गोस्वामी लोग यह मानते हैं कि शिव से ही ब्रह्मा और विष्णु उत्पन्न हुए हैं ।  शिवपुराण और लिंगपुराण इसके जीते-जागते उदाहरण हैं ।  ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह सिद्ध हो चुका है । आर्य सभ्यता से भी पूर्व भारत में सिंधु नदी घाटी की सभ्यता थी जिसमें शिव का अस्तित्व तो स्वीकारा है लेकिन ब्रह्मा , विष्णु , लक्ष्मी का जिक्र कतई नहीं है । आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद है जिसमें शिव का जिक्र तक नहीं है । बाद के वेदों में रुद्र के रूप में शिव का वर्णन आता है । यह तो सभी जानते हैं कि कोई किसी दूसरे का अस्तित्व आसानी से तो स्वीकार नहीं करता है । यही बात शिव पर लागू होती है । रुद्र की शक्ति ने ही उसे उसकी पहचान दी । यह शिव का दबदबा ही था कि शिव के विवाह आर्य कन्याओं (सती , पार्वती ) से हुए जबकि शिव को अनार्य देव माना जाता है ।अनार्य लोग यज्ञों में विश्वास नहीं करते थे । इसीलिए राजा दक्ष ने यज्ञ में अपने जमाता शिव को आमंत्रित नहीं किया था जिसका परिणाम यह निकला कि सती को हवनकुंड में कूदकर आत्महत्या करनी पड़ी । आज भी बहुत से वैष्णव ( ब्राह्मण ) भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव रखते हैं । वे शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद अथवा चढ़ावे को ग्रहण नहीं करते । यदि वह प्रसाद या चढ़ावा उनको मिल जाये तो वह उसको किसी पीपल के पास रख देते हैं अलावा गुप्त रूप से किसी और व्यक्ति को चेप देते हैं । 

गोस्वामियों का यह मानना है कि शिव प्रागैतिहासिक , सर्वश्रेष्ठ , सर्वोपरि , अनार्य और आदिवासी देव हैं । सृजन , संरक्षण और संहार -- तीनों शक्तियां इनमें वास करती हैं ।  मठों और शिवालयों पर महंत और पुजारी बनने का एकमात्र अधिकार केवल गोस्वामियों को है । भारत में जितने भी मठ और शिवालय हैं उनपर केवल गोस्वामी लोग ही काबिज रहे हैं लेकिन कई जगह ब्राह्मणों तथा दबंग जातियों के लोगों ने गोस्वामियों को हटाकर अपना कब्जा जमा लिया और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भी अन्य जातियों के लोगों को महंत और पुजारी बना दिया गया है जिसके कारण गोस्वामियों के सामने रोज़ी - रोटी का संकट उठ खड़ा हुआ है ।


©महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से। लेखक - गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही, नयी दिल्ली, 9818461932

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ