संकलनकर्ता:- आदित्य रमेश भारती मोरवन
शैवधर्म दशनाम गोस्वामियों का पिता है और वैष्णवधर्म माता है । शैवधर्म और वैष्णवधर्म दोनों के तत्त्व दशनाम गोस्वामियों में विद्यमान हैं हालांकि उनमें शैवधर्म की अधिकता है । दशनाम गोस्वामी शैवधर्म का और ब्राह्मण वैष्णवधर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं । दशनाम गोस्वामियों और ब्राह्मणों के कार्यों में भी कुछ हद तक समानताएं रहीं । दोनों वर्गों को भारतीय समाज से खूब सम्मान मिला बल्कि संन्यासियों ( गोस्वामियों ) को ब्राह्मणों से भी अधिक सम्मान मिला क्योंकि ब्राह्मणों ने संन्यासियों के पैर छुए हैं लेकिन यह आज तक का रिकॉर्ड है कि किसी भी संन्यासी ने किसी भी ब्राह्मण के पैर कभी भी नहीं छुए हैं । विष्णु - लक्ष्मी मंदिरों पर ब्राह्मणों का आधिपत्य रहा तो मठों , शिवालयों और हनुमान मंदिरों के पीठाधीश या पुजारी सदैव दशनाम गोस्वामी रहे । ब्राह्मणों ने अपनी आजीविका को सदैव संस्कारों और अनुष्ठानों से जोड़े रखा जो कि जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त चलते हैं । ब्राह्मण लोग मृत्यु संस्कार भी कराते रहे और महाराज बनकर छात्रावासों और सम्पन्न घरों मे रसोइए भी बने रहे लेकिन संन्यासियों ( गोस्वामियों ) ने न तो किसी का मृत्यु संस्कार कराया और न ही कभी किसी के रसोइए बने । गोस्वामियों ने आध्यात्म , धर्म , अपरिग्रह , वैराग्य , तप , त्याग , संतोष को सदैव मान्यता दी । धर्म पर संकट आने पर हथियार भी उठाये । अत्याचारों के विरुद्ध सदैव आवाज़ बुलंद की । बंगाल का "संन्यासी विद्रोह "( 1769 - 70 ) इसका जीता जागता उदाहरण है ।
गोस्वामियों की दो धाराएँ बहीं -- विरक्त और गृहस्थ । विरक्त तो दशनाम गोस्वामियों की मिलीट्री शाखा है जबकि गृहस्थ तो दशनाम गोस्वामियों की सिविलियन शाखा है । विरक्त गोस्वामियों ने समाज में नये एवं श्रेष्ठ कीर्तिमान स्थापित किये लेकिन गृहस्थ गोस्वामी भी इस मामले में पीछे नहीं रहे ।
दशनाम गोस्वामियों का अतीत श्रेष्ठ एवं गौरवशाली रहा है लेकिन पिछले सौ साल दशनाम गोस्वामियों के लिए अच्छे नहीं रहे हैं ।
दशनाम गोस्वामियों द्वारा प्राचीन आदर्शों और मान्यताओं को भुला दिया गया है । जब से मठों और शिवालयों पर अन्य जातियों के लोग महंत एवं पुजारी बनने लगे तब से गोस्वामियों के आगे रोज़ी-रोटी का संकट आकर खड़ा हो गया । अब समय के अनुसार अपने को ढालें । प्राचीन आदर्शों का सहारा लें किंतु नयी तकनीकों को अपनायें । हमारे पूर्वज अपने भरे- पूरे परिवारों को छोड़कर संन्यासी बन गये थे , परिव्राजक बन गये थे । लंगोटी पहनकर धर्म का प्रचार - प्रसार करते थे । अब लंगोटी पहनने का ज़माना चला गया है । अब हम कुर्ता-पाजामा या सूट- टाई कुछ भी पहन सकते हैं लेकिन हमें संस्कारों एवं व्यवहारों से गोस्वामी होना चाहिए । हमें नये तौर - तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि जो वक्त के साथ सही कदम ताल नहीं करता वह मिट जाता है । अतः समय के अनुसार अपने आप को बदलिये । सबसे अधिक ज़ोर शिक्षा पर दिया जाना चाहिए क्योंकि शिक्षा ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है । बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाइये । जो बच्चे अच्छे पढ़ - लिख गये हैं उन्हें सरकारी या प्राइवेट नौकरियों में लगायें । जो ज्यादा पढ़- लिख नहीं पाये हैं उन्हें ज्योतिष या पुरोहिताई का कार्य सिखलायें । जिन बच्चों की अच्छी आवाज है और गाने में रूचि है उन्हें कथाकार या कथावाचक बनाइये । गुजरात में यह फार्मूला लागू हो चुका है । वहाँ गोस्वामी लड़के ही नहीं बल्कि गोस्वामी लड़कियाँ भी मंच पर उतर चुकी हैं और अच्छा परफोरमेंस दे रही हैं । ऐसा करने से गोस्वामी नाम का प्रचार- प्रसार तो हो ही रहा है और साथ ही घर की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है ।
यदि आपके पास बंजर खेत हैं और उनमें कोई फसल नहीं उगती तो उसमें मंदिर बनाकर आमदनी का रास्ता बनाओ । नकली बाबा बनकर कुछ लोग समाज को लूट रहे हैं लेकिन आप सच्चे बाबा बनकर लोगों का कल्याण करो और अन्ततः अपना भी ।
यदि कोई गोस्वामी अपने किसी व्यापार या दुकान का उद्घाटन कर रहा है तो वहां सिर्फ खाने के उद्देश्य से मत जाओ बल्कि लिफाफे में कुछ धनराशि रखकर अवश्य दो । यदि आपका बिजनेस ज्यादा फैल गया है और उसमें कारीगरों या अधिकारियों की आवश्यकता है तो पहले गोस्वामियों को रोज़गार प्रदान कराओ । जिस दिन तेरहवीं हो तो श्रद्धांजलि देने अवश्य जाओ लेकिन मृत्यु भोज से बचो । ऐसा कठोर नियम बना दो कि पगड़ी की रस्म में किसी की भी ओर से एक रुपया से ज्यादा स्वीकार नहीं किया जायेगा । उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में ऐसा हो भी रहा है । सामूहिक विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए । ऐसा करने से धन कम खर्च होता है और आशीर्वाद थोक में मिलता है । संगठनों के उच्च पदाधिकारियों को अपने बच्चों की शादियाँ सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में करनी चाहिए । उन्हें देखकर छोटे एवं निर्धन लोग प्रेरणा लेंगे । राजा का अनुसरण प्रजा करती है । मैंनै टीवी पर देखा है कि एक गैर गोस्वामी मंत्री ने अपने पौत्र की शादी सामूहिक विवाह सम्मेलन में कराई है ।
स्वजातीय बंधु की तरक्की पर खुश होना सीखिए । अभी हाल ही मैंने दिल्ली के अंदर पदस्थ गोस्वामी डिप्टी कमिश्नर आफ पुलिस , अस्सिटेंट कमीश्नर आफ पुलिस की सूची फोटो सहित प्रकाशित की थी जिसे देखकर कुछ लोग जल - भुन गये और फेसबुक पर नकारात्मक कमेंट्स भेजने लगे , जैसे -- "इन लोगों ने समाज के लिए क्या किया है ? हमें इनसे क्या फायदा ? ये बिरादरी की मदद नहीं करते" इत्यादि । मेरा यह कहना है कि आप तो कुछ बने नहीं लेकिन दूसरे की तरक्की देख नहीं सकते । क्या जब तक वह हमें फायदा नहीं पहुंचायेगा तो हमारा बंधु नहीं हो पायेगा ? सरकारी अधिकारी की भी कुछ सीमाएं हैं । क्या आपको फायदा पहुंचाने के चक्कर में वह अपनी नौकरी दाव पर लगा दे ? आजकल सरकारी नौकरी मिलना बड़ा मुश्किल है लेकिन नौकरी छूटना बहुत आसान है । आज हर आदमी के हाथ में मोबाइल है जिससे वह वीडियो बनाकर वायरल कर सकता है और फिर नौकरी हाथ से फिसल सकती है । वह अधिकारी छिपकर या गोपनीय तरीके से आपकी सहायता कर सकता है लेकिन सरेआम कभी नहीं । गोस्वामी तुलसीदास और वी. वी. गिरि पर भी लोग उंगली उठाते हैं कि "उन्होंने हमें क्या दिया ?" मैं कहता हूँ कि उनसे हमें अनजाने में बहुत कुछ मिला है । तुलसीदास की वजह से ही "गोस्वामी" शब्द संसार में अत्यंत लोकप्रिय हुआ है और सम्मान मिला है । वी.वी. गिरि से "गिरि" शब्द की लोकप्रियता मिली है वरना इससे पहले तो अधिकांश गोस्वामी अपना उपनाम "गिर" लिखते थे ।
कुछ गोस्वामियों का आरोप है कि -"फलां गोस्वामी जज / डी. एम. / एस. पी. है लेकिन वह मिलता नहीं है ।" मैं ऐसे लोगों की बात को समझ गया हूँ । ऐसे लोग ऐसी कल्पना में विश्वास करते हैं कि जैसे ही वे उच्च अधिकारी के दफ्तर के द्वार पर पहुंचें वह उच्च अधिकारी अपना सारा काम छोड़कर हाथ जोड़कर आपके सामने आकार खड़ा हो जाये और कहे --"मेरे आका ! बोलो क्या हुक्म है ?" मेरा यह कहना है कि उच्च अधिकारी को सरकारी प्रोटोकॉल में बंधकर रहना पड़ता है । दूसरी बात, आप अपने को इतना काबिल क्यों नहीं बनाते हो कि वह उच्च अधिकारी आपसे मिलकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करे ।
किसी गोस्वामी पर अत्याचार होता है तो सब उसके साथ खड़े हो जाओ । उच्च अधिकारियों , मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचाओ । यदि कोई गोस्वामी कहीं फंस गया है तो उसको निकासी का रास्ता दिखलाओ ।
किसी के आगे हाथ मत फैलाओ । इससे स्वाभिमान नष्ट होता है । लेने के स्थान पर देने की भावना अपनाओ ।
अपने बच्चों को अपनी जाति के इतिहास एवं दर्शन को अवश्य बताइये अन्यथा यह जाति 60- 70 सालों में गायब हो जायेगी । शहरों में कुछ ऐसा तेज़ी से होता जा रहा है । पंजाब से इसकी शुरूआत हो भी चुकी है । वहां के असली निवासी गोस्वामी पंजाबी या सिक्ख बन चुके हैं।
आजकल एक प्रवृत्ति हावी हो गई है कि जो जिस व्यवसाय में है या पद पर है वह उसी व्यवसाय या पदवाली लड़की से शादी करना चाहता है । इंजीनियर इंजीनियर से , डॉक्टर डॉक्टर से , पायलट पायलट से शादी कर रहा है । अपनी बिरादरी में ऐसे सभी रिश्ते मिल नहीं पाते हैं तो गोस्वामी युवक - युवतियों की शादियाँ गैर गोस्वामी युवक - युवतियों से हो रही हैं । समाज की क्रीम गैर बिरादरियों में जा रही है । आजकल लड़के - लड़कियां एक ही कार्यालय में साथ - साथ कार्य करते हुए प्रेमपाश में बंध जाते हैं और फिर गैर बिरादरी के युवक या युवती से शादी कर बैठते हैं । पहले ऐसे लोगों को जाति से बाहर कर देते थे जोकि सबसे बड़ी सामाजिक सजा होती थी लेकिन अब ज़माना बदल गया है । किसी को बाधित या दंडित नहीं किया जा सकता है । किसी मजबूरी या प्रेम की वजह से यदि ऐसा हो गया है तो ऐसे युवक - युवतियों का तिरस्कार मत कीजिए । उन्हें अपने साथ मिलाकर रखिये अन्यथा वे कभी भी बिरादरी में लौटकर नहीं आयेंगे । यह भी ध्यान रखिये कि अंतरजातीय विवाह केवल गोस्वामियों की ही समस्या नहीं है बल्कि सभी बिरादरियों की समस्या है । सभी जातियों में ऐसा हो रहा है ।
अपने-अपने क्षेत्रों की गोस्वामी डायरेक्टरी प्रकाशित कराओ । विज्ञापनों से ही उसका खर्च निकल आयेगा । ऐसा करने से पता चल जायेगा कि अमुक क्षेत्र में कितने गोस्वामी हैं , कितने पढ़े - लिखे हैं , किस - किस पद पर हैं , किस - किस - किस व्यवसाय में हैं और कितने बच्चे विवाहयोग्य हैं इत्यादि ।
मारधाड़ या आन्दोलनों की बात मत करो । हम जाटों , गूजरों , यादवों , मीणाओं , मराठों जैसे उग्र एवं शक्तिशाली नहीं हैं । अभी तक हम लातूर निवासी कल्पना गोस्वामी का केस ही नहीं सुलझा पाये हैं तो अन्य केसों मे क्या करेंगे ? ऐसे ही बहुत से केस लम्बित हैं । फेसबुक पर बड़ी -बड़ी बातें करते हैं लेकिन आंदोलन के लिए गोस्वामी लोग मैदान में उतरते नहीं हैं । इसी का परिणाम यह निकला था कि कुलदीप गिरि हत्याकांड और पर्वतारोही कु० सीमा गोस्वामी के आंदोलन करते हुए दिल्ली के रामलीला मैदान में हम 20-25 लोगों को दिल्ली पुलिस ने रात को हमें दबोच लिया था । इंस्पेक्टर ने धक्का देकर मुझे गिरा भी दिया था ।
आंदोलन के लिए आवाहन करना आसान है परंतु उसके लिए तैयारियां करना मुश्किल है और उससे भी मुश्किल है उसके परिणामों को झेलना । आन्दोलन के दौरान यदि कोई व्यक्ति विकलांग हो जाता है या शहीद हो जाता है तो उसके लिए क्या किया जायेगा ? क्या उसकी कोई भरपाई कर सकता है ?
भ्रूण हत्या , कन्या हत्या , दहेज , मृत्यु भोज , पर्दा प्रथा , नशा , पाखंड के खिलाफ सदैव आवाज़ उठाओ ।
शंकराचार्य जयंती , दत्तात्रेय जयंती , गोस्वामी तुलसीदास जयंती को धूमधाम से मनाओ । ऐसा करने से अन्य जातियों के लोगों को पता चलता है कि हम किस महान परम्परा से है । आजकल डिजिटल इंडिया का ज़माना है । प्रचार - प्रसार होना अति आवश्यक है ।
अपने ड्राइंग रूम में आदि शंकराचार्य या वी. वी. गिरि के बड़े - बड़े चित्र लगायें ताकि घर में प्रवेश करनेवाला बिना बताए ही जान ले कि आप किस परम्परा के हैं ।
किसी के शिष्य न बनो क्योंकि गोस्वामी गुरू होता है , शिष्य नहीं । केवल गोस्वामी संतों को मान्यता दो।
सत्य नारायण की कथा छोड़कर शिव कथा पर ज़ोर दीजिए ।
जो गोस्वामियों को बुरा बताये उसे शत्रु नम्बर एक मानिए ।
सत्ता के निकट रहने के उपाय खोजिये क्योंकि सत्ता और सम्पन्नता में गहरा नाता है।
सभी के प्रति अच्छे भाव रखो । निन्दा और आलोचना से बचो । आलोचना या निंदा से मनमुटाव होता है , वैमनस्य बढ़ता है और समाज में टूट - फूट होती है ।
अपने गोस्वामी बंधुओं के प्रति प्रेम और आदर का भाव रखिये । अपने घर पर आप धन्ना सेठ हो सकते हो लेकिन बिरादरी की जाजम ( दरी ) पर बैठकर सब बराबर हैं । आप में ऐंठ है और आप समाज की मीटिंग में भाग लेने जा रहे हो तो कृपया अपनी ऐंठ को अपने लॉकर में बंद करके आइये । तभी आपका स्वागत है , आपका अभिनंदन है।
जय गोस्वामी ! जय दशनाम !!
© गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही, लेखक - महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" , नयी दिल्ली, 9818461932
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