नाग पंचमी सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दन मनायी जाती है। नाग पंचमी से जुड़ कई मान्यताएं भी है। नाग पंचमी पूरे देश में मनाई जाती है। नाग पंचमी देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनायी जाती है। नाग जहां भगवान शिव के गले के हार हैं, वहीं भगवान विष्णु की शैया भी। लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। इन्हीं कारणों से नाग की देवता के रूप में पूजा की जाती है। सावन मास के आराध्य देव भगवान शिव माने जाते हैं, साथ ही यह समय वर्षा ऋतु का भी होता है जिसमें माना जाता है कि भूगर्भ से नाग निकलकर भूतल पर आ जाते हैं। वे किसी अहित का कारण न बने, इसके लिए भी नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी की पूजा की जाती है।
नागपंचमी, सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व आज शनिवार को हस्त नक्षत्र के प्रथम चरण के दुर्लभ योग में है। इस योग में कालसर्प योग की शांति के लिए पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है। नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है।
अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों ने जब समुद्र मंथन किया था, तो जगत कल्याण के लिए वासुकि नाग ने मथानी की रस्सी के रूप में काम किया था। हिन्दू धर्म में नागदेव का अपना विशेष स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी। महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जन्मेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जन्मेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया।
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