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वसुधैव कुटुंबकम् कितना प्रासंगिक ?

 


आप देख रहे हो गोस्वामी चेतना समाचार
"अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्।।" ( महोपनिषद् , अध्याय 4 , श्लोक 71 ) हिंदी अनुवाद : यह अपना है और यह दूसरे का है , इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं । उदार हृदय वाले लोगों के लिए सम्पूर्ण धरती ( विश्व ) एक परिवार है । अंग्रेजी में सारांश : The whole world is a family . यह वाक्य संस्कृत भाषा में उस समय लिखा गया था जब सारे संसार में सनातन धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई धर्म नहीं था । उस समय जैन धर्म और बौद्ध धर्म भी पैदा नहीं हुए थे । ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म तो बहुत बाद में पैदा हुए थे। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सह-अस्तित्व के सिद्धांत --"जीयो और जीने दो" पर आधारित है । सनातनधर्मी लोग दूसरों के प्रति उदारता की भावना रखते थे । लेकिन कालांतर में यह भावना धरी की धरी ही रह गई । आओ, इसी बात को विस्तार से जानें :-- पहले भारत में केवल एक ही धर्म था , जिसका नाम था सनातन धर्म Eternal Religion ) अर्थात जो आदि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा । सनातन धर्म को बनाने में ऋषियों एवं मुनियों विशेषकर ब्राह्मणों का बड़ा योगदान रहा , इसलिए सनातन धर्म को ब्राह्मण धर्म भी कहा जाता है । समय - समय पर इसके नाम बदलते रहे हैं जैसे -- आर्य धर्म , भागवत धर्म इत्यादि । ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भारत में दो नए धर्म पैदा हो गए -- जैन धर्म और बौद्ध धर्म । उन दोनों धर्मों के प्रवर्तक क्षत्रिय थे । वे दोनों ही धर्म सनातन धर्म के कट्टर शत्रु थे । वे वर्णाश्रम व्यवस्था और वेदों को नहीं मानते थे । वे सनातन धर्म की खिल्ली उड़ाते थे । परिणामस्वरूप उनके बीच शताब्दियों तक संघर्ष रहा । जिसको जहां मौका मिलता था वह विरोधी धर्म के लोगों के प्राण ले लेता था । उस समय वसुधैव कुटुंबकम् की भावना कहीं भी दिखाई नहीं दी । हमारे देश में अनेक आक्रमणकारी जातियां आईं । वसुधैव कुटुंबकम् की भावना वहां भी नहीं मिली । अरब देश में इस्लाम धर्म का अभ्युदय हुआ । शुरू में इस्लाम धर्म का आधार प्रेम और भ्रातृत्व था जोकि वसुधैव कुटुंबकम् जैसा दिखाई पड़ता था लेकिन कालांतर में तलवार के बल पर इस्लाम धर्म को फैलाया गया । कुरान की आयतों में लिख दिया गया कि काफिरों की हत्या करना शवाब ( पुण्य ) का काम है । 712 ई. से इस्लाम धर्म भारत में प्रवेश कर गया । इस्लाम धर्म के प्रचार - प्रसार के लिए भारी मारकाट हुई । जिन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार नहीं किया उनकी गरदनें धड़ों से अलग कर दी गईं । जान बचाने के लिए लोग धर्म परिवर्तन कर बैठे । कुछ लालच के चक्कर में धर्म को बदल बैठे । अधिकतर मुसलमानों की यही कहानी है । धर्मांतरण का खेल आज भी चल रहा है । इस बारे में आजकल काफी पकड़ - धकड़ चल रही है। मुसलमानों के बाद भारत पर अंग्रेजों ने राज किया । वसुधैव कुटुंबकम् की उनकी भावना भी ढकोसला सिद्ध हुई । ईसाई मिशनरियों ने हिंदुओं विशेषकर निम्न जातियों के लोगों का धर्मान्तरण कराया । आज भी यह खेल चल रहा है । वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से हिंदुओं को नुकसान उठाना पड़ रहा है । दूसरे धर्म के लोग इस बात का गलत फायदा उठा रहे हैं । हिंदू कायर और दब्बू बनकर रह गया है । अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हिंदू यदि आवाज़ उठाते हैं तो उनकी तुलना तालीबान , बोको हरम और आईएसआईएस से की जा रही है । सलमान खुर्शीद द्वारा लिखित पुस्तक में इस बात को स्पष्ट रूप से लिख दिया है । राशिद अल्वी ने जय श्रीराम बोलने वालों को निशाचर बता दिया है । मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह मुगलों को महान बताने पर लगे हुए हैं । अहिंसा या वसुधैव कुटुंबकम् तभी तक कामयाब है जब सामने वाला भी उसे माने । सामने वाला हाथ में तलवार लेकर गरदन काटने को तैयार है तो वसुधैव कुटुंबकम् की भावना छूमंतर नज़र आयेगी । वसुधैव कुटुंबकम् की भावना तभी तक कारगर है जब तक देश , धर्म और संस्कृति पर आंच न आए । आज "जैसे को तैसा" ( Tit for Tat ) का ज़माना है । हिंदुत्व करवट ले रहा है । हाल ही के वर्षों में बहुत कुछ बदला है और बहुत कुछ बदलना बाकी है।

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