गोत्र क्या है ? जिस ऋषि के वंश में जो लोग उत्पन्न हुए हैं वही उनका ऋषि गोत्र है , जैसे जमदग्नि, वत्स , शौनक , भरद्वाज , गौतम , मुद्गल, अत्रि , कश्यप , शांडिल्य , वशिष्ठ, पराशर , कौशिक इत्यादि । प्रवर क्या है ? जिस ऋषि के गोत्र में श्रेष्ठ ऋषि हुए हैं उनकी श्रृंखला को प्रवर कहते हैं , जैसे जमदग्नि गोत्र का प्रवर है --- भार्गवच्यावनाप्नवानौर्वजामदग्नेति भार्गवौर्वजामदग्न्येति । भरद्वाज गोत्र का प्रवर है -- आंगिरस बार्हस्यपत्य भारद्वाजेति । ब्राह्मणों के 52 ऋषि गोत्र हैं । ध्यान रहे कि कुछ ऐसे ऋषि गोत्र हैं जो कि ब्राह्मणों और गोस्वामियों में समान ( Common ) हैं । कुछ गोस्वामियों को अपने ऋषि गोत्रों का ज्ञान नहीं है । वे ब्राह्मणों के गोत्रों को अपना गोत्र बता रहे हैं । ऐसा करना सरासर गलत है । ब्राह्मणों और गोस्वामियों के ऋषि गोत्र अलग - अलग हैं जिनकी जानकारी अनिवार्य है । |
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मढ़ी क्या है ? आदि शंकराचार्य ने तो केवल संन्यासियों की दस शाखाओं को संगठित किया था जिनके नाम हैं -- वन , अरण्य , तीर्थ , आश्रम , गिरि, पर्वत , सागर , सरस्वती , भारती और पुरी । लेकिन कालांतर में उन दस शाखाओं में से गिरि , पुरी , वन और भारती ने अपनी उप शाखाएँ स्थापित कर लीं जिन्हें "मढ़ियों" के नाम से जाना जाता है । पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में मढ़ी को "मठिया" बोला जाता है । मढ़ी या मठिया को उप मठ भी कह सकते हैं । आदि शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार महामठ स्थापित किये थे -- पूर्व दिशा में पुरी में गोवर्धन महामठ , पश्चिम दिशा में द्वारका महामठ , उत्तर दिशा में ज्योतिर्महामठ , दक्षिण में श्रृंगेरी महामठ । दस शाखाओं को उनसे सम्बद्ध कर दिया था । वन और शाखाओं को गोवर्धन महामठ से , तीर्थ और आश्रम को द्वारका महामठ से , गिरि , पर्वत एवं सागर को ज्योतिर्महामठ से और सरस्वती , भारती एवं पुरी को श्रृंगेरी महामठ से सम्बद्ध किया था । आदि शंकराचार्य परम्परा के संन्यासियों ने कालांतर में अपने मठ या उप मठ स्थापित किये जहाँ पर दीक्षा देकर लोगों को दशनाम गोसाईं / गोस्वामी बनाया जाता था । लोग जिस मठ या उप मठ पर दीक्षित होते थे तो उस मठ या उप मठ का महंत या पीठाधीश उन्हें अपना नाम प्रदान करता था । बस, उसको ही मढ़ी कहते हैं । इस लिहाज से देखें तो मढ़ी एक प्रकार से एक भर्ती दफ्तर ( Recruiting Office ) होता था । मढ़ी को "कुलगोत्र" भी कह सकते हैं । ध्यान रहे कि ऋषि गोत्र और कुलगोत्र में अंतर है । मठ या उप मठ के पीठाधीश को "महंत" कहा जाता है । महंत अपने क्षेत्र का सर्वोच्च धर्माधिकारी माना जाता है । उदाहरण के लिए, मेरी मढ़ी ( कुलगोत्र ) "रामदत्ती" है । इसका मतलब यह हुआ कि मेरा कोई पूर्वज दशनाम संन्यासी रामदत्त के मठ या उप मठ पर दीक्षित हुआ होगा । मेरे खानदान का यही कुलगोत्र ( मढ़ी ) अनंतकाल तक चलता रहेगा । गोस्वामी परम्परा में यह बात सभी को जाननी चाहिए कि ऋषि गोत्र में शादी हो सकती है लेकिन एक कुलगोत्र अर्थात मढ़ी में नहीं । एक मढ़ी के लोग आपस में भाई- भाई या भाई- बहन माने जाते हैं जिनकी आपस में शादी वर्जित है । ऐसी शादी मान्य नहीं है । पूरे देश में दशनाम गोस्वामियों की कुल 52 मढ़ियां ( कुलगोत्र ) हैं । अरण्य , तीर्थ , आश्रम , पर्वत , सागर और सरस्वती शाखाओं ने अपनी उप शाखाएं अर्थात मढ़ियां स्थापित नहीं कीं लेकिन गिरि , पुरी , वन और भारती शाखाओं ने अपनी उप शाखाएं अर्थात मढ़ियां स्थापित की थीं जिनकी संख्या 52 है । तिब्बती लामा गुरू की एक मढ़ी है जिसे वेद गिरि ने स्थापित किया था । लामा मढ़ी सहित गिरि शाखा की 28 मढ़ियां हैं । पुरी शाखा की 16 , वन शाखा की 4 और भारती शाखा की 4 मढ़ियां हैं । एक और महत्त्वपूर्ण बात --- शास्त्रों को धारण करके अरण्य , आश्रम , पर्वत , सागर और सरस्वती धार्मिक पीठों अर्थात मठों में बैठकर धर्म के प्रचार - प्रसार में लगे रहे वहीं दूसरी ओर धर्म की रक्षा करने के लिए हाथों में शस्त्र धारण करके और प्राणों को हथेली पर रखकर गिरि, पुरी , वन , भारती उपनामधारक संन्यासी रणमैदान में उतर गए । आओ, इन्हीं बातों को दूसरे कोण से देखें जिससे समझने में आसानी हो :--- |
"तीर्थाश्रम वनारण्य गिरि पर्वत सागरा : । सरस्वती भारती च पुरीनामानि वै दश ।।” |
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तीर्थ :- तीर्थ का ऋषि गोत्र अधिगत ( अविगत ) है और इसकी कोई मढ़ी नहीं है। इसका मुख्यालय गुजरात के द्वारका में स्थित शारदा मठ है । |
आश्रम :- आश्रम का ऋषि गोत्र अधिगत ( अविगत ) है और इसकी कोई मढ़ी नहीं है। इसका मुख्यालय गुजरात के द्वारका में स्थित शारदा मठ है । |
वन :- वन का ऋषि गोत्र कश्यप है और 4 मढ़ियां हैं--1- श्याम सुंदर वन, 2 - गंगा वन ( बलभद्र वन ), 3 - गोपाल वन ( शंखधारी वन ), 4 - भगवंत वन ( रामचंद्र वन ) । इसका मुख्यालय उड़ीसा के पुरी में स्थित गोवर्धन मठ है। |
अरण्य :- अरण्य का ऋषि गोत्र कश्यप है और इसकी कोई मढ़ी नहीं है । इसका मुख्यालय उड़ीसा के पुरी में स्थित गोवर्धन मठ है । |
गिरि :- गिरि का ऋषि गोत्र भृगु है । इसका मुख्यालय उत्तराखंड में स्थित ज्योतिर्मठ है । वेदगिरि की लामा मढ़ी को मिलाकर गिरि की 28 मढ़ियां हैं--1- ऋद्धिनाथी, 2- संजानाथी, 3- दुर्गानाथी, 4- ब्रह्मांडनाथी, 5- बैकुंठनाथी, 6- ब्रह्मनाथी, 7- रामदत्ती, 8- श्रृयभृंगनाथी, 9-ज्ञाननाथी, 10- माननाथी ,11- बलभद्रनाथी , 12- अपारनाथी, 13- पाटम्बरनाथी, 14- सागरबोदला , 15- ओंकारी, 16- सिंह श्याम यति, 17-चंदननाथी, 18- नागेंद्रनाथी, 19- सहजनाथी, 20- मोहननाथी,21- बालेंद्रनाथी, 22- रुद्रनाथी, 23- कुमुस्थनाथी, 24- परमानंदी, 25-सागरनाथी, 26- बाघनाथी, 27- रतननाथी, 28- वेदगिरि की लामा मढ़ी। |
पर्वत :- पर्वत का ऋषि गोत्र भृगु है और इसकी कोई मढ़ी नहीं है। इसका मुख्यालय उत्तराखंड में स्थित ज्योतिर्मठ है। |
सागर:- सागर का ऋषि गोत्र भृगु है और इसकी कोई मढ़ी नहीं है। इसका मुख्यालय उत्तराखंड में स्थित ज्योतिर्मठ है। |
सरस्वती :- सरस्वती का ऋषि गोत्र भूर्भुवः है और इसकी कोई मढ़ी नहीं है। इसका मुख्यालय कर्नाटक में स्थित श्रृंगेरी मठ है। |
भारती:- भारती का ऋषि गोत्र भूर्भुवः है और इसका मुख्यालय कर्नाटक में स्थित श्रृंगेरी मठ है। इसकी 4 मढ़ियां हैं--1- नृसिंह भारती, 2-मनमुकुंद भारती, 3- विश्वम्भर भारती, 4- मनमहेश भारती । |
पुरी:- पुरी का ऋषि गोत्र भूर्भुवः है और इसका मुख्यालय कर्नाटक में स्थित श्रृंगेरी मठ है। इसकी 16 मढ़ियां हैं--1-केवल पुरी, 2- अचिंत्य पुरी, 3-मथुरा पुरी, 4- माधव पुरी, 5- हृषिकेश पुरी, 6- जगदेव पुरी ,7-रामचंद्र पुरी, 8- व्यंकट पुरी, 9- श्याम सुंदर पुरी ,10-जड़भरत पुरी, 11-गंगा दर्याव पुरी, 12- सिंह दर्याव पुरी,13- भगवान पुरी,14- भगवंत पुरी,15- सहज पुरी, 16-मेघनाथ पुरी । |
विशेष :- कई गोस्वामियों को उपरोक्त सूचियों से आपत्ति हो सकती है कि उनकी मढ़ियों के नाम इन सूचियों में नहीं हैं । क्षेत्रीय उच्चारणों के कारण नामों में अंतर आ गये हैं । मैंने कई बार सुझाव भी दिया है कि ऐसी विसंगतियों को दूर करने के लिए गोस्वामी विद्वानों का एक महासम्मेलन आयोजित होना चाहिए । |
आप देख रहे हें, गोस्वामी चेतना |
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