स्व. श्री वी.वी. गिरि का पूरा नाम वाराह गिरि व्यंकट गिरि था। उनका जन्म 10 अगस्त , 1894 ई. को उड़ीसा प्रांत के गंजाम ज़िले के बहरामपुर गांव में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री वी.वी. जोगयया पांतुलु था जो कि एक जाने - माने वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सक्रिय राजनेता थे । उनकी माता का नाम श्रीमती सुभद्राम्मा था जिन्होंने महात्मा गांधी द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था । श्री गिरि की प्रारंभिक शिक्षा एवं कॉलेज स्तर की शिक्षा बहरामपुर के खाल्लिकोटे कॉलेज में हुई । कानून की पढ़ाई के लिए वे सन् 1913 ई. में आयरलैंड गये जहाँ उन्होंने सन् 1916 ई.तक डबलिन में शिक्षा प्राप्त की । उन दिनों आयरलैंड पर इंग्लैंड का कब्जा था । वहाँ के लोगों में इंग्लैंड के खिलाफ बहुत घृणा थी , आक्रोश था । वे लोग आयरलैंड को इंग्लैंड से मुक्त कराना चाहते थे और जिसके लिए वहाँ बाकायदा आंदोलन चल रहा था । पढ़ते - पढ़ते उनका सम्बंध वहाँ की क्रांतिकारी संस्था 'सिन फोन' तथा उसके क्रांतिकारी नेता 'ऐमोन द वालोरा' से हो गया । उनसे प्रभावित होकर श्री गिरि ने आयरलैंड में पढ़नेवाले विद्यार्थियों का एक क्रांतिकारी संगठन स्थापित कर लिया । जैसे ही अंग्रेजी सरकार को इस बात की भनक लगी वैसे ही सन् 1916 ई. में श्री गिरि को आयरलैंड से निष्कासित कर दिया। भारत में आकर श्री गिरि ने सन् 1916 ई. में मद्रास में वकालत शुरू कर दी । वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने और उन्होंने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया । वे आयरिश महिला श्रीमती एनी बेसेन्ट के 'होम रूल मूवमेंट' से जुड़े । महात्मा गांधी के आवाहन पर उन्होंने वकालत छोड़कर असहयोग आंदोलन ( सन् 1920 ई. ) में भाग लिया । जब वे शराब की दुकानों की बिक्री के विरुद्ध आंदोलन कर रहे तो उनको गिरफ्तार कर लिया गया ( 1922 ई. ) । सन् 1935 ई. में अंग्रेजों ने संघीय एवं प्रांतीय सभाओं के चुनाव कराये गये । श्री गिरि ने मद्रास विधानसभा का चुनाव जीता । सन् 1936 ई. में वे श्री राजगोपालाचारी के नेतृत्व में बनी सरकार में श्रम , उद्योग , सहकारिता , वाणिज्य एवं हरिजन उत्थान मंत्री बने । वे सन् 1937 ई. तक उस पद पर रहे । सन् 1937 ई. में संघीय एवं प्रांतीय सभाओं के पुन: चुनाव हुए । छ: प्रांतों में कांग्रेस की सरकारें बनीं और बाद में पश्चिमोत्तर प्रांत में भी कांग्रेस को बहुमत मिल गया । सन् 1938 ई. में उनको भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की योजना समिति का गवर्नर बनाया गया । 3 सितंबर ,1939 ई. को द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया । भारत के लोगों को विश्वास में लिए बिना ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी विश्व युद्ध शामिल कर दिया । कांग्रेस को यह बात बुरी लगी और कांग्रेस ने विरोधस्वरूप कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दे दिये । मुस्लिम लीग को बहुत खुशी हुई । जिन्नाह के आवाहन पर मुसलमानों ने "मुक्ति दिवस" मनाया ( 22 सितंबर, 1939 ई. ) । सन् 1940 ई. में लाहौर में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग का प्रस्ताव किया । सन् 1941 ई. में श्री गिरि को गिरफ्तार कर लिया गया और वे पंद्रह महीनों तक जेल में रहे । "भारत छोड़ो आंदोलन" ( 1942 ई. ) के दौरान उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और सन् 1945 ई. में छोड़ा गया । सन् 1946 ई. में पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में केन्द्र में एक अंतरिम सरकार बनी । सन् 1946 ई. के आम चुनावों में श्री गिरि मद्रास विधानसभा के लिए दोबारा चुन लिए गये और वे श्री टी. प्रकाशम् के नेतृत्व वाली मद्रास की प्रांतीय सरकार में श्रम मंत्री रहे । सन् 1947 ई. से लेकर सन् 1951 ई. तक वे श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त ( राजदूत ) रहे । सन् 1952 ई. में स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनाव हुए । वे पट्टनम लोकसभा क्षेत्र ( मद्रास स्टेट ) से जीतकर लोकसभा पहुंचे । पं. जवाहर लाल नेहरू की सरकार में वे श्रम मंत्री रहे ( 1952 - 1954 ई. )। श्रम कानूनों पर मतभेद होने के कारण उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया ( 1954 ई. ) । सन् 1957 ई. में भारत में द्वितीय आम चुनाव हुए । वे पार्वतीपुरम् से चुनाव लड़े लेकिन वे हार गए । सन् 1957 ई. से लेकर सन् 1960 ई. तक वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे । सन् 1960 ई. से लेकर सन् 1965 ई. तक वे केरल के राज्यपाल रहे । सन् 1965 ई. से लेकर सन् 1967 ई. तक कर्नाटक के राज्यपाल रहे । वे भारत के तृतीय उप राष्ट्रपति रहे ( 1967 - 1969 ई. ) । राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु के पश्चात वे भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे ( 3 मई 1969 - 20 जुलाई 1969 ) । कार्यवाहक राष्ट्रपति के काल के दौरान अध्यादेश द्वारा 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ । सन् 1969 ई. में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुआ । कांग्रेस की ओर से नीलम संजीवा रेड्डी अधिकृत उम्मीदवार बनाये गए । श्री गिरि स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे । उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं । वे नहीं चाहती थीं कि नीलम संजीवा रेड्डी की जीत हो । श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोगों से "अंतरात्मा की आवाज़" पर वोट डालने का आवाहन किया । इशारा पर्याप्त था । परिणामस्वरुप रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा । श्री गिरि नीलम संजीवा रेड्डी को हराकर राष्ट्रपति बने । वे पांच वर्षों तक अपने पद पर रहे ( 24 अगस्त 1969 - 24 अगस्त 1974 ई. ) । सन् 1975 ई. में उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न" दिया गया । हृदय गति रुक जाने के कारण 24 जून सन् 1980 ई. को उनका देहावसान हो गया । श्री गिरि की पत्नी का नाम सरस्वती देवी था जिनकी 14 संतानें थीं । उनके अधूरे काम को उनके पुत्र श्री शंकर गिरि ने आगे बढ़ाया । वे सांसद बनकर लोकसभा भी पहुंचे थे किन्तु उनका आकस्मिक निधन हो गया । उनके काम को उनकी पत्नी श्रीमती मोहिनी गिरि ने कार्य को आगे बढ़ाया । वे भारतीय महिला आयोग की अध्यक्षा रहीं । अब वे एनजीओ चलाकर कल्याणकारी कार्यों में लगी हुई हैं । श्रीमती मोहिनी गिरि को "गिरि समाज" ( गोस्वामी समाज ) से बहुत लगाव है । वे गोस्वामी समाज के कार्यक्रमों में आती रही हैं । एक उदाहरण प्रस्तुत है - - - 14-05-1995 ई. को गोस्वामी समाज दिल्ली ( रजिस्टर्ड ) के आम चुनाव नयी दिल्ली में हिंदू महासभा भवन में हुए । गोस्वामी समाज दिल्ली की आठवीं केंद्रीय कार्यकारिणी अस्तित्व में आई जिसका कार्यकाल सन् 1995 - 1996 ई. था । श्री राजकुमार गोस्वामी खलीफा अध्यक्ष , गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही महासचिव और श्री मोहन पुरी कोषाध्यक्ष बने । उसी कार्यकारिणी ने रविवार 29-10-1995 ई. को "गोस्वामी परिवार मंगल मिलन" का आयोजन नयी दिल्ली में हिंदू महासभा भवन में किया था जिसमें बीकानेर के राजगुरू स्वामी विशोकानंद भारती और स्व. श्री वी. वी. गिरि की पुत्रवधू श्रीमती वी. मोहिनी गिरि मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे । |
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