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गोस्वामियों का धर्म के क्षेत्र में योगदान

प्रस्तुतीकरण - आदित्य रमेश भारती मोरवन नीमच 

धर्म और गोस्वामियों में एक घनिष्ठ सम्बंध रहा है । धर्म नहीं तो गोस्वामी नहीं । सच बात तो यह है कि गोस्वामियों का उद्भव धर्म से ही हुआ है । हिंदू धर्म ( सनातन धर्म ) को गोस्वामियों ने सजाया है, संवारा है, रक्षण किया है और सम्बर्द्धन किया है । धर्म पर संकट आने पर शास्त्रों को छोड़कर शस्त्र उठाए, सिर काटे और कटवाये । 

प्राचीनकाल में सनातन धर्म ( हिंदू धर्म ) अपने पूरे यौवन पर था परंतु इतिहास में ऐसा समय भी आया जब बौद्ध धर्म सनातन धर्म को लील गया। जनता के साथ- साथ सम्राट भी बौद्ध बन गये । मौर्य सम्राट अशोक , कुषाण सम्राट कनिष्क ,  वर्धन सम्राट हर्षवर्धन बौद्ध धर्म के कट्टर अनुयायी थे ।  हिंदू मठ-मंदिरों पर बौद्धों का कब्जा हो गया । ऐसे विकट समय में आदिशंकराचार्य ( 788- 820 ई०) ने दशनाम संन्यासियों ( तीर्थ , आश्रम, वन,अरण्य, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती, भारती और पुरी नामधारक गोसाइयों ) को संगठित करके उनके हाथों में शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्र भी थमा दिये । सीधे-सादे साधु-संत एकदम वीर लड़ाकू धर्म सैनिकों में परिवर्तित हो गए। संन्यासी  अखाड़े रेजीमेंटों में बदल गए। वे धर्म की रक्षा के लिए मरने-मारने पर आमादा हो गये ।उन्होंने बौद्ध धर्म को भारत से मिटाकर ही दम लिया। बौद्ध मठों और स्तूपों पर सनातनियों का कब्जा हो गया ।  आजकल जो बौद्ध धर्म भारत में दिखाई दे रहा है वह श्रीलंका , जापान और चीन की देन है । इन देशों ने ही भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया है वरना भारत से बौद्ध धर्म का अस्तित्व ही मिट गया था । भारत में बहुत से  हिंदू खिन्न होकर बौद्ध बने हैं ।

आरम्भिक तुर्क आक्रमणकारियों (जैसे महमूद गजनवी तथा मौहम्मद गौरी ) का उद्देश्य भारत की भूमि पर कब्जा करना नहीं था , बल्कि उनका उद्देश्य भारत की अथाह सम्पत्ति को लूटना और मूर्तिपूजकों को मुसलमान बनाना था । उन्हें वह सम्पत्ति मठ-मंदिरों में दिखलाई पड़ती थी । अत: उन्होंने राजाओं और राजधानियों को अपने निशाने पर नहीं लिया बल्कि उनके निशाने पर मठ-मंदिर आये । अत: उन्होंने मठ-मंदिरों को खूब लूटा और भारी कत्लेआम मचाया ।मठ-मंदिरों के पुजारी या अधिपति गोसाईं महंत होते थे । अत: अनगिनत गोसाइयों  को मौत के घाट उतार दिया गया । सोमनाथ का मंदिर इसका जीता -जागता उदाहरण है ।

मुस्लिमकाल में अनेक उन्मादी मुस्लिम बादशाहों और नवाबों ने हज़ारों मंदिरों को तहस - नहस करके उनके ऊपर मस्जिदें बना दीं । अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर , मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर  और भगवान शिव की नगरी में काशी विश्वनाथ मंदिर की यही कहानी है , त्रासदी है । मुस्लिम शासक हिंदू जनता पर तरह - तरह के अत्याचार करते थे । पवित्र नदियों में स्नान करने और प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करने के लिए हिंदुओं से टैक्स ( जजिया कर ) वसूला जाता था । हिंदुओं को लालच देकर या बहला-फुसलाकर मुसलमान बनाया जाता था । जो हिंदू उनके ऐसे झांसों में नहीं आते थे उनको जबरन मुसलमान बनाया जाता था । जो हिंदू अपने धर्म पर अडिग रहते थे उनकी गरदनें धड़ों से अलग कर दी जाती थीं । साधारण जनता तो उनके अत्याचारों को सहन करती रही लेकिन संन्यासियों ( अर्थात गोस्वामियों ) ने उनका जबरदस्त प्रतिकार किया । इसका उदाहरण बंगाल का संन्यासी विद्रोह ( 1769-1770 ई० ) था जिसके द्वारा संन्यासियों ने मुसलमानों और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करके बंगाल में कई स्थानों पर अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। उसी दौरान "वंदे मातरम"का उदघोष संन्यासियों द्वारा बंगाल में गूंजा था। "वंदे मातरम" के जनक और आविष्कारक बंगाल के गोसाईं संन्यासी थे।

आज भी जितने भी महान साधु- संत भारत में कार्यरत हैं उनमें से अधिकांश दशनाम परम्परा से हैं । कुंभ पर दशनाम संन्यासियों का दबदबा रहता है और वे ही सबसे पहले स्नान करते हैं । यदि कोई और व्यक्ति या सम्प्रदाय ऐसा करने का दुस्साहस करता है तो उसको प्राणों से हाथ धोना पड़ सकता है।

हिंदू धर्म को बचाने में संन्यासियों ( दशनाम गोस्वामियों ) की अहम भूमिका रही है लेकिन पाठ्यपुस्तकों में इस बात को नहीं पढ़ाया जाता है ।


©महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से। लेखक-गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही, नयी दिल्ली ।

9818461932

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