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दशनाम गोस्वामी हैं संतों के संत

 


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आधुनिक भारत में जितने भी महान संत हुए हैं वे या तो दशनाम परम्परा में हुए हैं या वे दशनाम परम्परा में दीक्षित हुए हैं या दशनाम परम्परा से प्रभावित हुए हैं । ऐसे अनेकों उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं । तभी तो कहा जाता है कि "दशनाम गोस्वामी तो संतों के संत हैं । उदाहरण प्रस्तुत हैं :--
बंगाल के महान संत गौरांग चैतन्य महाप्रभु दो दशनाम शैव संन्यासी ईश्वर पुरी और केशव भारती के शिष्य थे । चैतन्य महाप्रभु का बचपन में नाम गौरांग था जो कि उनके गोरे रंग के कारण था। ईश्वर पुरी उन्हें अपना चेला बनाकर इनका नाम "कृष्ण चैतन्य पुरी" रखा था। जैसा कि ज्ञात होना चाहिए कि शैव संन्यासियों ( अर्थात दशनाम गोस्वामियों ) की दस शाखाएँ हैं --- वन , अरण्य , तीर्थ , आश्रम , गिरि , पर्वत , सागर , सरस्वती , भारती और पुरी । "पुरी" दशनाम गोस्वामियों की एक शाखा का नाम है।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था । वे लुधियाना मठ के दशनाम नागा शैव संन्यासी तोता पुरी के शिष्य थे । तोतापुरी ने उनका नाम बदलकर "रामकृष्ण पुरी " रखा था । "पुरी" उपनाम इसलिए क्योंकि वे दशनाम गोस्वामियों की "पुरी" शाखा में दीक्षित हुए थे । लेकिन बाद में वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए । परमहंस तो संन्यास की सबसे बड़ी पदवी मानी जाती है ।
स्वामी विवेकानंद तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे । उनका असली नाम नरेन्द्र नाथ था । स्वामी रामकृष्ण ने उन्हें अपना चेला बना कर उनका नाम "विवेकानंद पुरी" रखा था जो कि कालांतर में स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्वविख्यात संत बने । इस लिहाज से स्वामी विवेकानंद तो दशनाम संन्यासी तोता पुरी के शिष्य के शिष्य हुए।
स्वामी दयानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूलशंकर था । उन्होंने दण्डी संन्यासी पूर्णानंद सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ली थी । उनके गुरू ने उनका नाम दयानंद सरस्वती रखा । "सरस्वती" उपनाम दशनाम गोस्वामियों की एक शाखा का नाम है । उन्होंने व्याकरण की शिक्षा दण्डी स्वामी विरजानन्द सरस्वती से ली थी । इस प्रकार स्वामी दयानंद सरस्वती के संन्यास गुरू और व्याकरण गुरु दोनों ही दशनाम शैव संन्यासी थे । उन्होंने योगिक क्रियाओं का ज्ञान शिवानंद गिरि , ज्वालानंद पुरी , भवानी पुरी , गंगा पुरी इत्यादि दशनाम संन्यासियों के सानिध्य में प्राप्त किया था।
स्वामी युक्तेश्वर गिरि ( सन् 1855 - 1936 ई.) बंगाल के एक महान संत थे जिनको क्रिया योग में महारत हासिल थी । वे एक जगह बैठकर दूर घटित घटनाओं को जान लेते थे ।
स्वामी युक्तेश्वर गिरि के शिष्य का नाम परमहंस योगानंद गिरि (सन् 1893 - 1952 ई. ) था जिन्होंने देश - विदेश में योग को प्रचारित किया । स्वामी विवेकानंद के बाद अमेरिका एवं पाश्चात्य देशों में स्वामी रामतीर्थ और योगानंद गिरि को ही सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है।
दशनाम शैव संन्यासी गोस्वामी प्राण पुरी कन्नौज के रहनेवाले थे । नौ वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास ले लिया था । वे धर्म का प्रचार करने के लिए भारत के बहुत से नगरों में गये , साथ ही वे नेपाल, चीन , लंका , ईरान , ईराक , रूस , मक्का - मदीना भी गये और वहां जाकर भारतीय धर्म का प्रचार - प्रसार किया ।
आदि शंकराचार्य की श्रृंखला में अनेक संत - महंत हुए हैं । दशनाम संन्यासी विद्यारण्य के आशीर्वाद से हरिहर और बुक्का - दो वीरों ने दक्षिण भारत में हिंदू राज्य की स्थापना करके सन् 1336 ई. में विजयनगर ( विद्यानगर ) शहर की नींव रखी थी । गिरि बाला बंगाल की एक निराहार संन्यासिन थी । बचपन में वह बड़ी भुक्कड़ थी। शादी होने के बाद ससुराल चली गई लेकिन सास के ताने मारने पर उसने भोजन-पानी का आजीवन परित्याग किया। वह विधवा और नि:संतान थी । योगानंद गिरि ने उसकी ससुराल में जाकर उससे भेंट की थी और उसकी दिव्य दिनचर्या को जाना था । उसके फोटो भी खींचे थे।
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आजकल दो संन्यासी संतों के नाम हिंदू धर्म के शिखर पर हैं -- स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि और स्वामी अवधेशानंद गिरि । स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का अब स्वर्गवास हो चुका है । वे हरिद्वार में भारत माता मंदिर के संस्थापक थे । जहाँ तक स्वामी अवधेशानंद गिरि का प्रश्न है , ये जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं । महामंडलेश्वर को धर्म सेनापति या धर्म सेनाध्यक्ष कह सकते हैं । अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे अधिक लोकप्रिय एवं शक्तिशाली है ।
भारत के चार कोनों में चार महामठ अवस्थित हैं जिनकी गद्दियों पर तीन शंकराचार्य विराजमान हैं -- पूर्व में पुरी ( उड़ीसा ) में गोवर्धन महामठ पर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती , पश्चिम में द्वारका ( गुजरात ) में शारदा महामठ पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती , उत्तर में ज्योतिर्महामठ ( उत्तराखंड ) पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और दक्षिण में श्रृंगेरी महामठ ( मैसूर / कर्नाटक ) पर स्वामी भारती तीर्थ । भारत में जितने भी शैव मठ और शिवालय हैं उनके अधिकांश पुजारी या महंत दशनाम गोस्वामी ही हैं ।
शैव संन्यासियों के सात अखाड़े हैं --- जूना अखाड़ा , अग्नि अखाड़ा , आवाह्न अखाड़ा , महानिर्वाणी अखाड़ा , अटल अखाड़ा , निरंजनी अखाड़ा , आनंद अखाड़ा । इनके सभी साधु केवल दशनाम शैव संन्यासी ( दशनाम गोस्वामी ) ही हो सकते हैं । अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी नरेन्द्र गिरि रहे जिनका अब देहावसान हो चुका है । अब उनके स्थान पर हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर के महंत को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है । प्रयागराज में बाघम्बरी मठ के मठ पर स्वामी नरेन्द्र गिरि के स्थान पर श्री बलवीर गिरि को वहां का महंत बनाया गया है । जूना अखाड़े के महासचिव का नाम स्वामी हरि गिरि महाराज हैं जिनको अब अखाड़ा परिषद का महासचिव बनाया गया है । इनके अलावा भी अनेकों गोस्वामी संत हैं। इंग्लैंड , मारीशस , फिजी , अफ्रीका , म्यानमार , श्रीलंका इत्यादि देशों में शैव मठों और शिवालयों पर दशनाम गोस्वामी लोग ही वहां पुजारी या महंत हैं । स्थानाभाव के कारण सभी के बारे में लिखना सम्भव नहीं है ।
5 नवम्बर 2021 ई. को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केदारघाटी में दशनाम पंथ के जनक आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया है जिस पर दशनाम गोस्वामी समाज गौरव , हर्ष और आनंद का अनुभव कर रहा है ।

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