बंगाल के महान संत गौरांग चैतन्य महाप्रभु दो दशनाम शैव संन्यासी ईश्वर पुरी और केशव भारती के शिष्य थे । चैतन्य महाप्रभु का बचपन में नाम गौरांग था जो कि उनके गोरे रंग के कारण था। ईश्वर पुरी उन्हें अपना चेला बनाकर इनका नाम "कृष्ण चैतन्य पुरी" रखा था। जैसा कि ज्ञात होना चाहिए कि शैव संन्यासियों ( अर्थात दशनाम गोस्वामियों ) की दस शाखाएँ हैं --- वन , अरण्य , तीर्थ , आश्रम , गिरि , पर्वत , सागर , सरस्वती , भारती और पुरी । "पुरी" दशनाम गोस्वामियों की एक शाखा का नाम है। |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था । वे लुधियाना मठ के दशनाम नागा शैव संन्यासी तोता पुरी के शिष्य थे । तोतापुरी ने उनका नाम बदलकर "रामकृष्ण पुरी " रखा था । "पुरी" उपनाम इसलिए क्योंकि वे दशनाम गोस्वामियों की "पुरी" शाखा में दीक्षित हुए थे । लेकिन बाद में वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए । परमहंस तो संन्यास की सबसे बड़ी पदवी मानी जाती है । |
स्वामी विवेकानंद तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे । उनका असली नाम नरेन्द्र नाथ था । स्वामी रामकृष्ण ने उन्हें अपना चेला बना कर उनका नाम "विवेकानंद पुरी" रखा था जो कि कालांतर में स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्वविख्यात संत बने । इस लिहाज से स्वामी विवेकानंद तो दशनाम संन्यासी तोता पुरी के शिष्य के शिष्य हुए। |
स्वामी दयानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूलशंकर था । उन्होंने दण्डी संन्यासी पूर्णानंद सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ली थी । उनके गुरू ने उनका नाम दयानंद सरस्वती रखा । "सरस्वती" उपनाम दशनाम गोस्वामियों की एक शाखा का नाम है । उन्होंने व्याकरण की शिक्षा दण्डी स्वामी विरजानन्द सरस्वती से ली थी । इस प्रकार स्वामी दयानंद सरस्वती के संन्यास गुरू और व्याकरण गुरु दोनों ही दशनाम शैव संन्यासी थे । उन्होंने योगिक क्रियाओं का ज्ञान शिवानंद गिरि , ज्वालानंद पुरी , भवानी पुरी , गंगा पुरी इत्यादि दशनाम संन्यासियों के सानिध्य में प्राप्त किया था। |
स्वामी युक्तेश्वर गिरि ( सन् 1855 - 1936 ई.) बंगाल के एक महान संत थे जिनको क्रिया योग में महारत हासिल थी । वे एक जगह बैठकर दूर घटित घटनाओं को जान लेते थे । |
स्वामी युक्तेश्वर गिरि के शिष्य का नाम परमहंस योगानंद गिरि (सन् 1893 - 1952 ई. ) था जिन्होंने देश - विदेश में योग को प्रचारित किया । स्वामी विवेकानंद के बाद अमेरिका एवं पाश्चात्य देशों में स्वामी रामतीर्थ और योगानंद गिरि को ही सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है। |
दशनाम शैव संन्यासी गोस्वामी प्राण पुरी कन्नौज के रहनेवाले थे । नौ वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास ले लिया था । वे धर्म का प्रचार करने के लिए भारत के बहुत से नगरों में गये , साथ ही वे नेपाल, चीन , लंका , ईरान , ईराक , रूस , मक्का - मदीना भी गये और वहां जाकर भारतीय धर्म का प्रचार - प्रसार किया । |
आदि शंकराचार्य की श्रृंखला में अनेक संत - महंत हुए हैं । दशनाम संन्यासी विद्यारण्य के आशीर्वाद से हरिहर और बुक्का - दो वीरों ने दक्षिण भारत में हिंदू राज्य की स्थापना करके सन् 1336 ई. में विजयनगर ( विद्यानगर ) शहर की नींव रखी थी । गिरि बाला बंगाल की एक निराहार संन्यासिन थी । बचपन में वह बड़ी भुक्कड़ थी। शादी होने के बाद ससुराल चली गई लेकिन सास के ताने मारने पर उसने भोजन-पानी का आजीवन परित्याग किया। वह विधवा और नि:संतान थी । योगानंद गिरि ने उसकी ससुराल में जाकर उससे भेंट की थी और उसकी दिव्य दिनचर्या को जाना था । उसके फोटो भी खींचे थे। |
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