दशनाम गोस्वामी राम कृष्ण पुरी जो कोसा के बड़े व्यापारी थे उन्नीसवीं शताब्दी में आकर नागपुर में बस गये थे । उनके साथ अन्य गोस्वामी लोग भी थे जैसे -- खुशाल पुरी , पदम पुरी इत्यादि । वे ढाका से कोसा और रेशम लाकर बेचते थे । उनका व्यापार चल निकला । वे रूपयों का लेन - देन भी करने लगे । लक्ष्मी उन पर मेहरबान हो गई । उन्होंने मकान, दुकान , खेत , खलिहान खरीदे और बड़ी - बड़ी जायदादें खरीदीं ।
निहंग बाबा राम कृष्ण पुरी गोस्वामी नागपुर के प्रसिद्ध महंत एवं रियासतदार थे । उनकी रियासत में 75 गाँव थे । वे निहंग ( विरक्त ) थे तो वे विवाह नहीं कर सकते थे क्योंकि हिंदू धर्म में विरक्त संन्यासी को विवाह करने और संतान उत्पन्न करने की आज्ञा नहीं होती है । अतः सन् 1924 ई० में उन्होंने ब्राह्मणकुलोत्पन्न महेश तिवारी को "महेश पुरी" नाम देकर अपना शिष्य बनाकर अपनी सारी जायदाद उनके नाम कर दी । ऐसा करते समय महंत राम कृष्ण पुरी ने महेश पुरी ( महेश तिवारी ) के पालकों को उनकी एवज में एक गांव दिया था । सन् 1924 ई० में महंत राम कृष्ण पुरी का देहांत हो गया।
महंत महेश पुरी गोस्वामी अत्यंत सुंदर , स्वस्थ , दूरदर्शी , प्रभावशाली और सुलझे हुए व्यक्ति थे । वे आलीशान भवन में रहते थे जिसे "गार्डन हाउस" कहा जाता था । उनके राजसी ठाटबाट थे । अनेक नौकर एवं द्वारपाल थे । वे मध्य प्रांत ( सी. पी. ) के विधायक ( एम. एल. ए. ) थे । नागपुर के महाराज भौंसले से उनके प्रगाढ़ सम्बंध थे । वे अनेक संस्थाओं एवं संगठनों से जुड़े हुए थे । वे गरीबों के मसीहा थे । दीन - दुखियों की हमेशा मदद करते थे । उन्होंने हरिजनों के लिए महादुला गांव में कुआं बनवाया था जिसका उदघाटन मध्य प्रांत के गवर्नर सर मान्टेग्यू बटलर ने 13 जनवरी 1927 ई० को किया था । अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बना रखा था । सरकार ने उन्हें "दरबारी" एवं "खास मुलाकाती" का दर्जा दे रखा था । उन्होंने हिंदी भाषा के विस्तार के कार्य किये ।
महंत महेश पुरी ने निहंग जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया । महंत को विवाह करने की अनुमति नहीं होती है लेकिन महंत होते हुए भी महेश पुरी ने दो विवाह किये और दोनों पत्नियों से बच्चे थे ।
18 अप्रैल 1942 ई० को उनके पुत्र मधुकर पुरी का विवाह हैदराबाद ( दक्षिण ) निवासी राजा वीरभान गिरि के शिष्य गोस्वामी मुकुंद गिरि की बेटी उर्मिला देवी के साथ हुआ था । एक ग्रुप फोटो भी हुआ था जिसमें राजा बहादुर धनराज गिरि , राजा बहादुर प्रताप गिरि एवं महंत महेश पुरी के चित्र थे ।
वे हमेशा गोस्वामी समाज से जुड़े रहे । वे बीमार थे फिर भी उन्होंने यू० पी० के जिले मुरादाबाद में गोस्वामी रियासत - "सलेमपुर गोसाईं" में अखिल भारतीय गोस्वामी महासभा की सन् 1943 ई० में अध्यक्षता की थी ।
महंत एवं रियासतदार गोस्वामी महेश पुरी को संग्रहणी बीमारी ने घेर लिया था । 5 जून 1943 ई० को अटैक पड़ा । अपना अंतिम समय देखकर 30-07-1943 ई० को उन्होंने अपने भतीजे को "रमेश पुरी" नाम देकर अपना शिष्य बनाया और उसे मठ का महंत बनाया। अपने शिष्य और पुत्रों में सम्पति का बंटवारा एक वसीयतनामे के द्वारा किया ।
23-08-1943 ई० को नागपुर के मेयो अस्पताल में महंत महेश पुरी का देहावसान हो गया । उनकी मृत्यु का समाचार शहर में बिजली की तेजी से फैल गया। सब दफ्तर और संस्थान बंद हो गए । उनकी शव यात्रा में पूरा शहर उमड़ पड़ा । शहर के राजा बहादुर रघुपतिराव भौंसले , कुंवर फतह सिंह राव , कुंवर जयसिंह राव भी शामिल हुए । कहते हैं कि किसी शव यात्रा में पहले इतनी भीड़ कभी इकट्ठा नहीं हुई थी । नागपुर के मेंहदी बाग में उनको दशनाम गोस्वामी परम्परा के अनुसार उनको समाधि दी गई ।
नोट :- महंत गोस्वामी महेश पुरी ने अपनी सम्पत्ति का लम्बा - चौड़ा वसीयतनामा लिखवाया था जिसका वर्णन अन्यत्र किया जायेगा ।
अब से 77 साल पहले
स्व. श्री महेश पुरी का ऐतिहासिक भाषण
स्थान : सलेमपुर गोसाईं ( सन् 1943 )
दशनाम गोस्वामी श्री महेश पुरी नागपुर के एक बड़े रियासतदार थे । उनकी रियासत में 75 गांव थे । वे मध्य प्रांत ( सी. पी. ) की विधायिका के सदस्य ( एम. एल. ए. ) थे और अनेक संगठनों से सम्बद्ध थे । उनकी आन, बान , शान देखने लायक थी । उनके राजसी ठाटबाट थे ।
अखिल भारतीय गोस्वामी महासभा का द्वितीय अधिवेशन सन् 1943 ई० में यू. पी. के जिले मुरादाबाद में स्थित गोसाईं रियासत - सलेमपुर गोसाईं - में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री महेश पुरी ने की । उनका अध्यक्षीय भाषण नीचे दे रखा है :---
"हमारी जाति गोस्वामी कहलाती है । गोस्वामी पृथ्वी गिरि के कथनानुसार हमारी जाति द्विज ब्राह्मणों से है या अन्यों के मत से श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य से -- इस पचड़े में पड़ना मैं उचित नहीं समझता हूँ । सच तो यह है कि हम अपनी जाति के महत्त्व को ही भूल गये हैं और इसी से कल्पनाएं उठ रही हैं । "गोस्वामी" -- यह पद बड़ा महत्त्व रखता है । "गोस्वामी" शब्द यौगिक है । यह "गो" और "स्वामी" से बना है । महात्मा नन्ददास जी अपने अनेकार्थ ग्रंथ में "गो" शब्द के 12 अर्थ लिखते हैं :-
"गो इन्द्रिय ,वाक् , जल , स्वर्ग, वज्र , खग, छंद ।
गोधर , गोतरू , गोकिरण , गोपालक , गोविंद ।।"
इससे स्पष्ट है कि "गोस्वामी" उपर्युक्त वस्तुओं का स्वामी कहलाता है । प्रधानतया जो विद्याधन , धराधन , गोधनादि का स्वामी होता है , वही "गोस्वामी" है । इधर की बातें छोड़ दीजिए । महंत श्री कैलाश गिरि जी के मतानुसार गोस्वामी जाति अवश्य ही बड़ी प्राचीन है । श्री दत्तात्रेयादि जितने भी सिद्ध प्राचीन काल में हुए हैं वे सभी इसी जाति के नररत्नों में से हैं । किंतु बंधुओ ! उसी दर्शनीया गोस्वामी देवजाति की आज क्या दशा हो रही है , वह दिन पर दिन किस रूप में बदलती जा रही है , उस पर चारों ओर से बौछारें बरस रही हैं --- यह देखकर दिल दहल जाता है । इसी के प्रतीकारार्थ हमें आज हिलमिलकर विचार करना है कि
"हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी ।
आओ, सकल मिलकर विचारें , ये समस्याएं सभी।।"
आज हमें अपनी देवोपम गोस्वामी जाति के उत्थानार्थ विचार ही नहीं करना है बल्कि उसके लिए हम सबको अविलम्ब इस सत्कार्य में लग जाना है । हम देख रहे हैं कि वर्तमान परिस्थिति नितांत गिरी हुई है । न परस्पर प्रेम है और न अपना संगठन ही है । लाखों की संख्या में होते हुए भी हम निर्बल की तरह इधर - उधर ताकते रहते हैं किंतु कुछ भी नहीं कर पाते हैं । दिन - प्रतिदिन हमारा आदर्श गिरता जा रहा है । देवोपम होते हुए भी आज हमारी गणना नीचों में की जा रही है । सामाजिक संकीर्णता तथा मानसिक दुर्बलता ने तो हमें इतना चौपट कर डाला है कि हमें कुछ सूझ ही नहीं रहा है । लज्जा की बात है कि आज हमारे घर पर दूसरे परवरिश पा रहे हैं और घर के बच्चे भूख के मारे इधर - उधर धक्के खा रहे हैं । भाई को भाई हर तरह से नीचा दिखाने पर तुला हुआ है । अपने भाई की दीनदशा को देखकर भी उस दीन की तरफ धनवान भाई ध्यान तक नहीं देते हैं । उल्टे हंसने और उसकी खिल्लियां उड़ाने में ही अपनी शान समझते हैं । क्या निहंग और क्या घरबारी -- इन सभी की दशा ऐसी हो रही है कि कहते हुए संकोच होता है क्योंकि :-
"गर मुंह से कहता हूँ तो मज़ा उलफत का जाता है ।
दीगर चुप मैं रहता हूँ तो कलेजा मुंह को आता है ।।"
तिस पर भी तुर्रा यह है कि हम अपनी झूठी शान बघारने में कोई कमी नहीं करते हैं । सारांश यह है कि ऐसी गिरी दशा से भी हमारे कानों पर जूं नहीं रेंगती है । आज नीच से नीच जाति तक को देखिये वह उठ रही है । अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए आवाज़ उठी रही है । यह देखते हुए भी हम में कुम्भकर्णी निद्रा छा रही है । फूट राक्षसी हमें दिन - रात नाच नचा रही है ।
कदाचित कहीं पर जातीय भाइयों द्वारा सुधार मार्ग प्रशस्त करने का उद्योग किया जाता है तो कइयों द्वारा उसमें रोड़े अटकाए जाते हैं । पारस्परिक निन्दा और फूट के सिवाय हमें कुछ भी फल नहीं मिल पाते हैं ।"
नोट :- यह भाषण अति महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ है जिसे मैं बड़ी मुश्किल से खोजकर कहीं से लाया हूँ और इसे मैंने अपने महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" में स्थान दिया है ताकि आगे आनेवाली पीढ़ियाँ इसका लाभ उठा सकें।
गोस्वामी महेश पुरी के कार्य
[ सन् 1924 ई० - सन् 1943 ई० तक ]
■्््््््गोस्वामी महेश पुरी नागपुर के एक बड़े रियासतदार थे । वे सन् 1924 ई० में महंत राम कृष्ण पुरी के शिष्य बनकर मठ के महंत बने । वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे । उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में अनेक कार्य किये । आओ, उनके कार्यों को जानें :--
सामाजिक कार्य -
मंडला रिलीफ फंड :-- मध्य प्रांत ( सी. पी. ) के मंडला नगर को नर्मदा की बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी । लोगों की सहायतार्थ महेश पुरी ने मंडला रिलीफ फंड के लिए भारी रकम इकट्ठा की ।
कंसोलेशन बोर्ड का सदस्य :- हिंदू - मुस्लिम दंगों के समय सरकार द्वारा दोनों समुदायों को समझाने के लि 3 से 6 सदस्यों की एक समिति बनाई गई थी । सरकार ने महेश पुरी को उस समिति का सदस्य बनाया। महेश पुरी को दोनों समुदायों के अध्ययन और सेवा का सुअवसर मिला ।
धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के अध्यक्ष :-- महेश पुरी को छ: - सात धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं का अध्यक्ष बनने का मौका मिला । उनको कुछ लिमिटेड कम्पनियों का डायरेक्टर भी बनाया गया था ।
इरविन वैल समर्पित :-- 23 जुलाई 1926 को भारत के वायरस लार्ड इरविन ( 1926- 31 ) नागपुर पहुंचे । वे ग्राम्यजीवन की जानकारी लेना चाहते थे । पिछड़ी जातियों के लिए महेश पुरी महादुला गांव में एक कुआं खुदवाया । उस कुएं का नाम "इरविन वैल" रखा गया । उस कुएं का संस्थापन शुभारंभ सर मान्टेग्यू बटलर ( सी. पी. के तत्कालीन गवर्नर ) के हाथों 13 जनवरी 1927 ई० को हुआ । शुभारंभ के समय एक बड़ी पार्टी ( ग्रांड पार्टी ) हुई ।
विदाई पार्टी के उप मंत्री :- सन् 1933 ई० में मध्य प्रांत ( सी. पी. ) के गवर्नर सर मान्टेग्यू बटलर ने महेश पुरी को विदाई पार्टी समिति का ऑनरेरी उप मंत्री बनाया ।
सार्वजनिक कार्य -
सन् 1924 ई० में अंग्रेजी सरकार ने महेश पुरी को तृतीय श्रेणी ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बनाया था । सन् 1927 ई० को उनका दर्जा बढ़ाकर द्वितीय श्रेणी का ऑनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया ।
सन् 1924 ई० में अंग्रेजी सरकार ने महेश पुरी को "दरबारी" एवं "खास मुलाकाती" नियुक्त किया ।
नागपुर की लेपर रिलीफ कमेटी के वे उप मंत्री रहे । उसके लिए महेश पुरी ने सम्पूर्ण सी. पी. ( मध्य प्रांत ) में सबसे अधिक रकम इकट्ठा की ।
सन् 1924 ई० में वे बजाज कमेटी के अध्यक्ष रहे । वह नागपुर की वाणिज्य - व्यापार की सबसे प्रमुख कमेटी थी ।
सन् 1929 ई० में वे रेड क्रॉस सोसायटी के सदस्य रहे तथा एक वर्ष के लिए उपाध्यक्ष भी रहे ।
सी. पी. और बरार की दोषमुक्त ( Discharged ) राजबंदियों की सहायक समिति के वे 1930 ई० में सदस्य रहे ।
वे नागपुर म्युनिसिपल कमेटी के दो बार सदस्य चुने गए ( सन् 1924 ई० , 1934 ई० ) ।
वे डिस्ट्रिक्ट कॉन्सिल के 1925 ई० से 1934 ई० तक तथा फिर 1937 ई० से सदस्य रहे ।
वे डिस्ट्रिक्ट कॉन्सिल द्वारा नियुक्त ग्राम पंचायत कमेटी के अध्यक्ष रहे । सन् 1926 ई० से लेकर 1929 ई० तक -- तीन सालों में उन्होंने 30 ग्राम पंचायतों की स्थापना की ।
वे रेल मेल सर्विस ( R. M. S. ) तथा पोस्टल यूनियन सेंट्रल सर्कल एफ - डिवीजन के 1931 ई० तक प्रेसिडेंट रहे ।
सन् 1929 ई० से लेकर 1934 ई० तक वे मध्य प्रांत ( सी. पी. ) के जमींदार चुनावक्षेत्र ( Landholders Constituency ) की ओर से इम्पिरियल लेजिस्लेटिव असम्बेली के दो बार सदस्य रहे।
सन् 1930 ई० से 1934 ई० तक वे जमींदारों की विधायिका ( Land owners group in Assembly ) में स्वर्गीय वासुदेव राजा , कोलोन्गोड के नेतृत्व में उप मंत्री रहे ।
दिल्ली की कंट्री लीग की सामान्य एवं अधिशासी समिति ( General & Executive body of the Country League ) के 1930 ई० से 1933 ई० तक सदस्य एवं खजांची रहे ।
सन् 1930 ई० से 1933 ई० तक वे नागपुर लोकल बोर्ड के सदस्य एवं अध्यक्ष रहे ।
सन् 1931 ई० में स्टेंडिंग सड़क अर्थ समिति असेम्बली के सदस्य रहे ।
सन् 1933 ई० में वे विधायिका सभा ( Legislative Assembly ) के रेलवे उपदेशक मंडल ( Advisory Committee of Railways ) के सदस्य रहे ।
वे मध्य प्रांत एवं बरार के भूमालिकों के संगठन ( Land Owners ' Association ) के सन् 1932 ई० मंत्री रहे ।
वे सन् 1932 ई० नागपुर जिला शेतकरी संघ के उपाध्यक्ष रहे ।
★्वे सन् 1933 ई० में सी. पी. एवं बरार की ऑनरेरी मजिस्ट्रेट्स एसोशिएशन के उप मंत्री रहे ।
वे सी. पी. और बरार की म्युनिसिपल मुलाजिमों की एसोसिएशन के सन् 1932 ई० से 1937 ई० तक उप मंत्री रहे ।
वे सन् 1926 ई० से 1933 ई० तक डागा मेमोरियल अस्पताल की प्रबंध कारिणी समिति के सदस्य रहे ।
वे सन् 1933 ई० से 1936 ई० तक आबकारी विभाग उपनिदेशक मंडल ( Advisory Committee Of Exise ) के सदस्य रहे ।
सन् 1936 ई० में मध्य प्रांत बरार कोष्टी कॉपरेटिव सोसायटी लिमिटेड बनी थी जिसका उद्देश हथकरघा उद्योग की सहायता करना था । डायरेक्टर ऑफ इंडस्ट्रीज ने महेश पुरी को उक्त सोसायटी का अध्यक्ष नियुक्त किया ।
सन् 1935 ई० में उनको नागपुर जिले के सिल्वर जुबली फंड का उप मंत्री नियुक्त किया गया ।
सन् 1935 ई० में वे नागपुर जिला ग्रामोद्योग कमेटी के उप मंत्री चुने गये ।
सन् 1926 ई० में उनको सिल्वर जुबली पदक प्राप्त हुआ।
वे कोष्टी हितकारी मंडल नागपुर के अध्यक्ष रहे । उस संस्था के सदस्यों की संख्या लगभग 6, 000 थी ।
उनको राज्याभिषेक पदक ( Coronation Award ) मिला ।
वे पॉयोनियर इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के महानिदेशक ( Managing Director ) रहे ।
वे सन् 1940 ई० में प्रांतीय युद्ध कमेटी के सदस्य रहे ।
वे जिला युद्ध कमेटी के सदस्य रहे ।
वे विस्थापितों की रिलीफ समिति ( Evacuees Relief Committee ) के सदस्य रहे।
वे कपास मंडल के उप निदेशक रहे ।
वे सन् 1942 ई० में संरक्षण समिति ( Defence Council ) के सदस्य रहे ।
सन् 1942 ई० में वे मध्य प्रांत जूरी एवं ऑफिसर्स एसोसिएशन के सदस्य रहे ।
शैक्षिक कार्य -
वे सन् 1927 ई० में हिन्दी भाषा संघ हाई स्कूल नागपुर के प्रेसिडेंट रहे ।
सन् 1931 ई० में वे अखिल भारतीय सामंतीय शिक्षा एसोशिएशन ( All India Feudatories Education Association ) के सदस्य रहे।
सन् 1933 ई० में वे न्यू इंग्लिश हाई स्कूल की प्रबंध कारिणी समिति के सदस्य रहे।
सन् 1934 ई० से वे इतवारी हाई स्कूल नागपुर के प्रेसिडेंट रहे।
सन् 1934 ई० से वे हिन्दी भाषा संघ नागपुर के प्रेसिडेंट रहे।
सन् 1937 ई० से वे नागपुर डिस्ट्रिक्ट कॉन्सिल स्कूल बोर्ड के सदस्य रहे ।
वसीयतनामा -
गोस्वामी मंहत महेश पुरी नागपुर के बड़े रियासतदार थे । उनके राजसी ठाटबाट थे । वे सन् 1924 ई० में गोस्वामी महंत राम कृष्ण पुरी के शिष्य बनकर मठ के महंत की गद्दी पर आसीन हुए थे । 23-08-1943 को नागपुर के मेयो अस्पताल में उनका निधन हुआ था । मरने से पहले अस्पताल में ही उनकी वसीयत ( Last Will ) लिखी गई ताकि आगे चलकर कोई दिक्कत न आये । वे लम्बी - चौड़ी जायदाद के मालिक थे , अतः उनकी वसीयत भी बड़ी लम्बी - चौड़ी थी जिसको बताते हुए मैं थक जाऊंगा । अतः उनकी वसीयत को कम शब्दों में बताने की कोशिश करूँगा । उनका वसीयतनामा मराठी में था जिसे मैं हिन्दी में बताऊंगा । उनका वसीयतनामा इस प्रकार था :-
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