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दत्तात्रेय परिचय

                                        

आप देख रहे हे गोस्वामी चेतना समाचार
दत्तात्रेय श्री मद भागवत में जिन चौबीस अवतारों की कथा हैं उनमें योगिराज दत्तात्रेय का अवतार छटा माना गया है। कहते हैं भगवान दत्तात्रेय अजर अमर हैं इसलिये इन्हें अविनाशी भी कहा जाता हैं। इनका नाम सिद्धराज बहुश्रुत हैं। क्योंकि ये समस्त सिद्वो के राजा हैं योग विद्या की विलक्षणता के कारण चुकी अपने योग चातुर्थ से भगवान दत्तात्रेय देवताओं का संरक्षण भी करते रहे हैं। इसलिए इन्हें देवदेवेश्वर नाम से भी पुकारा जाता रहा है। कथा है कि अत्रि ऋषि ने एकनिष्ठ भाव से घोर तपस्या की। उन्होंने ऋषि से मनचाहा वरदान मांगने को कहा। ऋषि अत्रि ने कर जोड़ विनत भाव से प्रार्थना की। मुझे प्राणियों का दुःख निवारण करने वाला पुत्र प्राप्त हो। भगवान विष्णु उनके विनत भाव से अतिप्रसन्न हुए। चूंकि भगवान स्वंय ने अपने को दान स्वरूप दिया,इसलिए दत्त नाम विख्यात हुआ। अत्रि ऋषि के पुत्र होने से उन्हें 'अत्रेय' नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार दत्त और 'अत्रेय' इन दोनों के सामंजस्य संयोग से इनको 'दत्तात्रेय' नाम से जाना जाने लगा। कहते हैं योगिराज दत्तात्रेय ने चौबीस गुरु बनाये। वे इस प्रकार है। 1.पृथ्वी 2.वायु 3.भगन 4.जल 5.यमराज 6.अग्नि 7.सूर्य 8.चन्द्र 9.कबूतर 10.अजगर 11.समुद्र 12.पतंग 13.मधुमक्खी 14.हाथी 15.भौरा 16.हिरण 17.पिंगला 18.काग 19.बालक 20.स्त्री 21.लुहार 22.मकड़ी 23.मृंग भगवान दत्तात्रेय ने चौबीस गुरुओं से जो कुछ सीखा उसका उल्लेख भी किया। ओर साथ ही यह भी दी कि यदि ग्राह्ययता हो तो किसी से भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्रश्न यह है कि भगवान दत्तात्रेय से 'दशनाम गोस्वामियों' का सम्बंध हैं? यह सवाल इसलिये भी प्रासंगिक हैं क्योंकि बहुत स्थानों पर गोस्वामी समाज द्वारा दत्तात्रेय जयन्ती मनाई जाती हैं और बहुत स्थानों पर तो भगवान दत्तात्रेय के मंदिर बनवाने गये हैं और बनवाये जा रहे है। वास्तविकता तो यह है कि योगीराज दत्तात्रेय अवधूतों के इष्ट देव हैं। फिर नागाओ की वीर सेनाएं बन गई तब उन्हें क्षेत्र रक्षार्थ प्रयाण के लिये अलग अलग क्षेत्र दिए गए। इस तरह गुजरात मालवा ओर राजपुताने का क्षेत्र - रक्षण जिन वीर जमातों को दिया गया, उनके इष्ट देव भगवान दत्तात्रेय थे। लेकिन यह पूजा अवधूतों की निजी आराधना तक सीमित रही। अवधूत समाधि पूजन के अवसर पर भी दत्तात्रेय स्तुति की जाती रही। लेकिन जैसा कि स्तुति की भाषा से स्पष्ट है, इस स्तुति की भाषा से स्पष्ट है, इस स्तुति की रचना भी कालांतर में इसी क्षेत्र में हुई। सारत:दशनामी गोस्वामी, जिनमें सन्यासी गृहस्थी दोनो शामिल हैं,इनके आराध्य देव तो अलख निरंजन भगवान शिव ही हैं, लेकिन इष्ट रूप भगवान दत्तात्रेय भी वंदनीय है। दशनामी गोस्वामियों को मुख्य मंदिर तो भगवान शिव का ही बनवाना श्रेष्ठ हैं। इष्ट रूप दत्तात्रेय की मूर्ति शिव मंदिर परिसर में स्थापित की जा सकती हैं।

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