Hot Posts

6/recent/ticker-posts

गोस्वामियों के कार्यो ओर बलिदानों के बारे में सरकार को ज्ञापन भेजें

 

संकलन - आदित्य भारती मोरवन
गोस्वामी भाइयो और बहनो , ओइम नमो नारायण !
 गोस्वामियों का अतीत बहुत शानदार और गौरवशाली रहा है ।  प्राचीन काल में गोस्वामियों को शैव संन्यासी कहा जाता था । सनातन धर्म ( अर्थात हिन्दू धर्म ) के हम अर्थात संन्यासी अर्थात गोस्वामी लोग  रक्षक रहे हैं । देश की सभ्यता एवं संस्कृति के हम रखवाले रहे हैं । देश की अखंडता के हम पोषक रहे हैं । देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक हमने भगवा ध्वज फहराया भले ही ऐसा करते हुए हमारे प्राणों पर बन आई हो । हमने कभी भी देश को तोड़ने की बात नहीं की  , सदैव अखंड भारत की बात की । 
                         भारत के इतिहास में एक ऐसा समय भी आया जब सारा देश बौद्धमय हो गया था और और सनातन धर्म ( अर्थात हिंदू धर्म ) प्रायः समाप्त होने को था । ऐसे विकट समय में आदि शंकराचार्य ने हम संन्यासियों ( अर्थात गोस्वामियों ) के एक हाथ में शास्त्र और दूसरे हाथ में शस्त्र थमा दिये और सनातन धर्म को बचाने का आवाहन किया । हमने  आदि शंकराचार्य के आदेश को शिरोधार्य मानकर अपने प्राणों को हथेली पर रखकर सनातन धर्म की रक्षा की , सनातन धर्म को बचाया , उसका सम्बर्धन किया । 
                             पृथ्वीराज चौहान के समय तक हिंदुओं का झंडा ( ध्वज ) भगवा होता था । जब दो हिंदू राजा आपस में लड़ते थे तो जीतनेवाले का ध्वज भी भगवा होता और हारनेवाले का भी । लेकिन पृथ्वीराज चौहान का मानना था कि भगवा धर्मध्वज मुस्लिम आक्रांताओं के आगे झुकना नहीं चाहिए । अत: उन्होंने भगवा ध्वज को दो हिस्सों में बांट दिया था -- राज्यध्वज और धर्मध्वज । पृथ्वीराज चौहान का कहना था कि राज्यध्वज तो झुक सकता था लेकिन धर्मध्वज कभी झुकना नहीं चाहिए । धर्मध्वज की रक्षा का दायित्व उन्होंने संन्यासियों को सौंप दिया था । संन्यासियों ने पृथ्वीराज चौहान को जो आश्वासन दिया था उसका सदैव पालन किया और भगवा धर्मध्वज को कभी भी झुकने नहीं दिया ।  
  हमने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी । बंगाल का संन्यासी विद्रोह ( सन् 1769 - 70 ) इसका ज्वलंत उदाहरण है । बंगाली उपन्यासकार बंकिमचंद्र चटर्जी के उपन्यास "आनंद मठ" में इसका जिक्र है । "आनंद मठ" एक फिल्म भी है । बंगाल में  हमने  कई स्थानों पर अपनी स्वतंत्र सत्ता भी स्थापित कर ली थी । बाद में भी हम कहीं न कहीं स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे और बलिदान देते रहे । हमने "वंदे मातरम्"  गीत और नारे का आविष्कार किया जिसका उद्घोष करते हुए अनगिनत लोग शहीद हो गये । आज भी यह गीत और नारा सरकारी समारोह की आन -बान - शान बना हुआ है लेकिन अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं है कि यह गीत और नारा हमने ( अर्थात संन्यासियों अर्थात गोस्वामियों ) ने उन्हें दिया है । 
 यवतमाल निवासी श्री पृथ्वी गिरि हरि गिरि गोसावी के एक लेख से चिढ़कर अंग्रेजी सरकार ने उनकी पत्रिका "हरिकिशोर" और प्रैस को जब्त करके उन्हें जेल में डाल दिया था जहाँ उनको बैल मानकर तेल का  कोल्हू चलवाया जाता था । वहाँ उनका 29 किलो वजन कम हो गया था और सदैव के लिए उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था । कालांतर में उनकी टीबी से मौत हो गई । 
                                        देश की आजादी से पूर्व भारत में बड़ी छूआछूत थी । निचले तबकों को इसे झेलना पड़ता था । नागपुर निवासी श्री महेश पुरी गोस्वामी ने महादुला गांव में हरिजनों के लिए एक कुंए का निर्माण कराया था जिसका उदघाटन मध्य भारत के तत्कालीन गवर्नर सर मॉन्टेग्यू बटलर ने 13 जनवरी 1927 ई. को किया था । 
                     बिहार निवासी श्री इंदिरा रमण गिरि शास्त्री देश की आजादी के लिए पांच बार जेल गये । सन् 1932 ई. में अछूतोद्धार आन्दोलन में श्री गिरि ने गांधी जी का भरपूर समर्थन किया ।  सन् 1933 ई. में वैजनाथ धाम में हुई सभा में अपने तर्कों से अछूत विरोधियों को हरा दिया। तब गांधी जी को कहना पड़ा था -- " आज आपने भारत को बचा लिया है ।" 
 होशंगाबाद ज़िले के इंदर गिरि गोस्वामी को भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 10 अक्टूबर 1942 ई. को गिरफ्तार किया गया । जेल में अन्न-जल का त्याग कर दिया । जेल के अधिकारी नली द्वारा जबरन उन्हें दलिया पिलाते थे लेकिन वे उल्टी कर देते थे । 19 मार्च 1943 ई.को वे होशंगाबाद जेल में ही शहीद हो गये । वहीं उनकी समाधि बना दी गई ।
                           गोस्वामी दल बहादुर गिरि ने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व पूर्वी भारत में किया । उन्हें "पूर्वोत्तर भारत का सीमांत गांधी" कहा जाता था । सन्  1921 ई.से लेकर सन् 1924 ई. तक वे तीन बार जेल गये । वे बहुत ही गरीब थे ।  आर्थिक अभाव में उनकी मृत्यु हो गई । उनकी असहाय विधवा पत्नी इस संसार में अकेली रह गई ।  जब गांधी जी को उस हृदयविदारक घटना का पता चला तो उन्होंने उनकी पत्नी को उन्होंने अपने आश्रम में शरण दी । 
सन् 1942 ई० में गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ "भारत छोड़ो " आंदोलन छेड़ दिया था ।  बिहार के एक ही परिवार के तीन ( चाचा - भतीजों )  गोस्वामियों --  छोठूगिरि , फग्गू गिरि और कामता गिरि --   को अंग्रेजी सरकार ने आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए 13 अगस्त 1942 ई० को  गोलियों से भून डाला था जिनका स्मारक बिहार में दाउदपुर रेलवे लाइन के पास बना हुआ है । वहां हर वर्ष 13 अगस्त को शहीदी दिवस मनाया जाता है ।  13 अगस्त सन् 2019 ई.  को दिल्ली से जाकर मुझे भी वहां दर्शन करने का सौभाग्य मिला । मेरे साथ श्री नागेन्द्र कुमार भारती, डा. पी. एस. दयाल यति और कवि विजय गिरि बारूद भी थे । कवि विजय गिरि बारूद तो स्मारक को देखकर इतने भावुक हो गए कि वे फूट- फूटकर रो पड़े थे ।  समारोह में भोजपुरी गायक ने अपनी संगीत मंडली के साथ समां बांध रखा था । उस क्षेत्र की जेडीयू सांसद श्रीमती कविता सिंह भी वहां उपस्थित थीं । 
 ऐसे ही अनेक उदाहरण हैं । इतिहास को गम्भीरता से खोजने की आवश्यकता है ।
कहने का मतलब यह है कि गोस्वामियों ने इस देश को अपना सब कुछ दिया लेकिन अब सवाल यह है कि इस देश से गोस्वामियों को क्या मिला ? हमारे बलिदान को तो भुला दिया गया है । इतिहास या पाठ्यपुस्तकों में हमारा जिक्र तक नहीं है। जिन्होंने इस देश के लिए कुछ नहीं किया केवल प्रचार के बल पर सत्ता पर काबिज हो गए क्योंकि उनके पास शक्ति है , एकता है और झूठा प्रचार है । आपसे विनती है कि अपने महापुरुषों और स्वतंत्रतासेनानियों के बारे में केंद्र सरकार तथा सभी सम्बंधित राज्य सरकारों को ज्ञापन सौंपें । आदिशंकराचार्य और दत्तात्रेय के नामों को आगे बढ़ायें । आदि शंकराचार्य के बारे में सरकारी पुस्तकों में स्थान दिलाने का मुद्दा इंदौर से बीजेपी सांसद श्री शंकर लालवानी जी ने संसद में उठाया है । आशा की जाती है कि आदि शंकराचार्य के जीवन और कार्यों को पाठ्यम में शामिल होने से दशनाम गोस्वामियों के बारे में भी कक्षाओं में पढ़ाया जायेगा क्योंकि दशनाम पंथ का उद्भव आदि शंकराचार्य से माना जाता है । 
 अपने मठ-मंदिरों और समाधिस्थलों की चारदीवारी करके भगवा रंग से पुतवायें ।  समाधियों के लिए जगह उपलब्ध कराने हेतु सरकारों से मांग करें ।  जब मुसलमानों और ईसाइयों के लिए कब्रिस्तानों के लिए जगह मिल सकती है तो गोस्वामियों के लिए क्यों नहीं ?  मुसलमान और ईसाई तो बाहर से आकर इस देश में बसे हैं जबकि हम तो भारत के असली एवं मूल निवासी हैं । 
                               साथ ही सरकार को बतायें कि मठों और शिवालयों के पुजारी केवल गोस्वामी ही हो सकते हैं, अन्य कोई नहीं क्योंकि ऐसी प्राचीन मान्यता है ।
मेरे लेख का निचोड़ यह है कि कुछ न कुछ सरकार को लिखते रहिए ताकि सरकार का ध्यान हमारी ओर आकर्षित हो । यहां चुप रहने वालों को कोई नहीं पूछता है । चुपचाप रहनेवाले बच्चे को तो मां भी दूध नहीं पिलाती । जो बच्चा ज्यादा रोना - चिल्लाना करता है , मां सब काम छोड़कर सबसे पहले उसे ही दूध पिलाती है । 

 महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से उद्धृत । लेखक : गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली , 9818461932

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ