प्रस्तुतिकरण :- आदित्य रमेश भारती नीमच
कु. सीमा गोस्वामी का जन्म हरियाणा के ज़िला कैथल के गांव सीवन ( Siwan ) में 10 मार्च सन् 1988 ई.को हुआ था । इनके पिता एक कृषक हैं और उनका नाम श्री ओइम प्रकाश गोस्वामी है । इनकी माता पिता का नाम श्रीमती विमला देवी है । इन्होंने सन् 2012 ई. में योगा थेरेपी में डिप्लोमा किया । इनकी शिक्षा एम. ए. ( फिजिकल ) बी.पी. एड. है । इनके अलावा माउंटेनियरिंग की बेसिक तथा एडवांस की ट्रेनिंग भी ली ।बैडमिंटन और एथलेटिक्स में भी हाथ आजमाये। सीमा को रीडिंग , ट्रेवलिंग , गार्डनिंग और माउंटेनियरिंग का शौक रहा । ये शुरू से ही निडर और साहसी रही हैं । कॉलेज में शरारती लड़के इनसे कन्नी काटते थे । पर्वत पर चढ़ने के लिए उसका मन मचलता रहता था । दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट को फतह करना उसका सपना था । पर्वत पर चढ़ने का मौका उसे उस समय उसको मिला जब वह एन.सी.सी.के दल में शामिल होकर 2009 ई. में भारत की लमखागा पर्वत चोटी पर विजय प्राप्त की । पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते इनकी हिम्मत जवाब दे गई और इन्होंने अपने कान पकड़कर स्वयं से माफी मांगी । ये अपने घर वापस लौट आईं । लेकिन पर्वत पर चढ़ने की उसकी चाहत मरी नहीं ।
2013 में फिर प्रशिक्षण लिया ओर DKD 2 पे विजय प्राप्त की लेकिन उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आ गई । सीमा ने 2014 में फिर से अभ्यास शुरू कर दिया। ये लड़कियों को पीठ पर लादकर चढ़ाई का अभ्यास करने लगीं । ये फिर से पहाड़ पर जाना चाहती थीं लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी । फिर भी मां-बाप ने बेटी के सपने को टूटने नहीं दिया। कुछ चंदा , कुछ सरकारी मदद और कुछ ब्याज पर राशि लेकर 2015 में सीमा एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए नेपाल में बेस कैंप में पहुंच गईं । तभी नेपाल में जबरदस्त भूकम्प आ गया जिससे वहां भारी तबाही मच गई । मजबूरन सीमा को वापस लौटना पड़ा । हार उनकी होती है जो हिम्मत हार जाते हैं । सीमा ने हिम्मत नहीं हारी । 7अप्रैल 2016 को दादा खेड़ा की पूजा करके सीमा शेरनी की तरह पहाड़ पर चढ़ने के लिए निकल पड़ीं । 8अप्रैल को भूकंप के झटके पर झटके आये । अत: चढ़ाई का काम स्थगित करना पड़ा । 17 मई 2016 को चढ़ाई शुरू हो गई । 20 मई 2016 की सुबह 7 बजकर 53 मिनट पर कु० सीमा गोस्वामी ने माउंट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा झंडा फहराया दिया और ये पर्वतारोहण के इतिहास में एवरेस्ट विजेता बन गईं ।
लौटते हुए इनका सामना मौत से हुआ । इनका ऑक्सीजन का सिलेंडर खत्म हो गया। किसी का वहाँ टूटा हुआ सिलेंडर इनको मिला जिसमें कुछ ऑक्सीजन थी। उसीसे काम चलाया । सारा शरीर ठंड से जम गया । 21 मई को बचाव दल ने इनको ढ़ूंढ़ निकाला । इनको काठमांडू के अस्पताल में दस दिनों तक रखा गया । सीने में संक्रमण और पैरों में सूजन थी । इस प्रकार से माउंट एवरेस्ट शिखर को फतह करके सीमा ने सिद्ध कर दिया है कि "हरियाणा की म्हारी छोरी छोरों से कम हैं के ?"
हमें सीमा के मां-बाप की भी तारीफ करनी पड़ेगी कि आर्थिक तंगी होते हुए भी उन्होंने अपनी बेटी के सपने को पूरा किया । उन्होंने "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे को भी साकार किया है । हमें ऐसी बेटी और ऐसे मां-बाप पर नाज़ है । लेकिन हमें यह देखकर अत्यंत दुख होता है कि राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार की ओर से सीमा को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला है जिसकी ये ह़कदार हैं । जब महिला पहलवानों और क्रिकेटरों को करोड़ों-करोड़ों रूपये दिये जाते हैं और बड़ी-बड़ी नौकरियां दी जाती हैं तो सीमा को ऐसा क्यों नहीं मिला ? हमारी मांग है कि कु०सीमा गोस्वामी की सेहत , शिक्षा और उपलब्धियों को देखते हुए उसे पुलिस में कम से कम डी.एस.पी. की नौकरी मिलनी चाहिए और इनकी उचित आर्थिक सहायता भी मिलनी चाहिए ।
इन्हीं मांगों को लेकर सीमा ने कई बार हरियाणा सरकार को ज्ञापन दिये हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला । दिल्ली में जन्तर मन्तर और रामलीला मैदान में भी धरना - प्रदर्शन हुए हैं जिसमें गोस्वामी समाज ने भी भाग लिया था । मैं भी ऐसे धरने - प्रदर्शनों में शामिल रहा हूँ । रामलीला मैदान में तो मेरी पुलिस से भिड़ंत भी हो गई थी । पुलिस इंस्पेक्टर ने धक्का देकर मुझे जमीन पर गिरा दिया था । आजतक परिणाम कुछ नहीं निकला है । सीमा को ना सरकारी नौकरी मिली है और ना सरकारी आर्थिक सहायता । सीमा आज भी न्याय के लिए इधर - उधर भटक रही हैं ।
मैंनै दो-तीन जगहों पर कु० सीमा गोस्वामी के साथ मंचों को साझा किया है । इनमें नेतृत्व के गुण हैं और इनका बोलने का तरीका बहुत अच्छा है । ये नारी सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं । मेरा आशीर्वाद इनके साथ है और इनकी मांगों को हर मंच पर उठाता रहूँगा ।
प्रस्तुतकर्ता - गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली, 9818461932
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