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सत्ता और भाषा की सापेक्षता

सत्ता और भाषा का शुरू से गहरा सम्बंध रहा है । सत्ता की एक भाषा होती है और जो उस भाषा को सीख लेता है वह उतना ही सबल और सम्पन्न हो जाता है और जो उसको नहीं सीखता है वह उतना ही दुर्बल और विपन्न बन जाता है । यह एक ऐतिहासिक सत्य है । भारत की प्राचीनतम सभ्यता का नाम सिंधु घाटी की सभ्यता है । उसकी भाषा को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है । फिर आई आर्य सभ्यता जिसकी भाषा संस्कृत थी । उस युग में जो लोग संस्कृत जान गये वे सत्ता के निकट हो गये और सम्पन्न एवं प्रभावशाली हो गये । संस्कृत को ब्राह्मणों की भाषा माना जाता है । इसलिए आर्य युग में ब्राह्मणों का बोलबाला रहा । उस समय आम बोलचाल की भाषा भी संस्कृत थी और राजकाज की भाषा भी संस्कृत थी । जिनकी संस्कृत पर अच्छी पकड़ थी वे समाज और दरबार में उच्च पद पा गए और जो ऐसा नहीं कर सके वो सम्पन्नता एवं विकास की दौड़ में पीछे रह गए ।

               आर्य युग के बाद बौद्ध युग आया जिसकी भाषा ब्राह्मी थी , पाली थी । उस युग में संस्कृत का तिरस्कार हुआ । जो ब्राह्मी को जान गया वही सत्ता में भागीदार हो गया अथवा सत्ताधारियों का सलाहकार हो गया । सम्राट अशोक, सम्राट कनिष्क और सम्राट हर्षवर्धन के शासनकालों में  ऐसा ही हुआ ।

                        मुस्लिम युग में अरबी , फारसी और उर्दू भाषाओं को मान्यता मिली और संस्कृत को दरकिनार कर दिया गया । अरबी, फारसी और उर्दू दरबार और अदालतों की भाषाएं बनीं । संस्कृत और फारसी के मिलन से उर्दू का निर्माण हुआ था । मुस्लिम युग में मुसलमान ही सम्पन्न और शक्तिशाली बने क्योंकि वे अरबी, फारसी और उर्दू में माहिर थे। वे हिंदू भी सम्पन्न और प्रभावशाली बने जो इन भाषाओं में माहिर हो गए । 

 अंग्रेजी युग में अंग्रेजी भाषा सिरमौर बनी , हालांकि उर्दू भी अदालती भाषा बनी रही । ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत में आने के साथ ही अंग्रेजी भाषा भारत में आ गई थी , लेकिन लार्ड मैकाले ने अंग्रेजी को भारत में सुदृढ़ बनाया । अंग्रेजी जाननेवालों को उच्च पदों पर आसीन किया गया । ब्राह्मणों ने इस सच्चाई को जाना । उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी और वे सरकारी नौकरियां प्राप्त कर सके ।

 देश की आज़ादी के साथ "हिंदी, हिंदू ,हिंदुस्तान" का नारा गूंजा । उर्दू का स्थान हिन्दी ने ले लिया । हिंदी को राष्ट्र भाषा की मान्यता मिली लेकिन यह मान्यता काग़ज़ी है । दक्षिण भारत के लोगों ने उत्तर भारतीयों की अपेक्षा अंग्रेजी में अधिक रूचि ली । संसद के अंदर जो बहसें होती थी उनमें अंग्रेजी जाननेवाले लोग बाज़ी मार लेते थे । अतः सरकारी नौकरियों में उत्तर भारतीय लोग पिछड़ गये । बड़े - बड़े और उच्च पदों पर दक्षिण भारत के लोग आसीन हो गये ।  असलियत में अभी भी अंग्रेजी हावी है । हिंदी के बारे में सब सरकारी आदेश अंग्रेजी में आते हैं । सब उच्चतम पद अंग्रेजी जाननेवाले प्राप्त कर रहे हैं हालांकि हिंदी जाननेवालों को भी मौका मिल रहा है । अब काफी बदलाव आया है । प्रशासनिक सेवाओं में हिंदी और संस्कृत को जाननेवाले लोगों को भी अब मौका मिल रहा है । 

हालांकि हिंदी हमारी मातृभाषा है लेकिन अंग्रेजी अभी भी सरकारी और अदालती भाषा है। जो अंग्रेजी जानता है उसको अधिक शिष्ट माना जाता है। आज छोटे से छोटा आदमी अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है । यह एक मानसिकता बन गई है । 

हर गोस्वामी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बच्चों को हिन्दी सिखाये या संस्कृत लेकिन अंग्रेजी भी  सिखवानी जरूरी  है । यही समय की मांग है । अंग्रेजी जाननेवाले के लिए देश में ही नहीं विदेश में भी नौकरी के द्वार खुल जाते हैं । 

 गिरिवर गिरि गोस्वामी  निर्मोही , नयी दिल्ली ,  9818461932


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