Hot Posts

6/recent/ticker-posts

समस्याओं और चुनोतियों से ग्रस्त गोस्वामी समाज


 प्रस्तुतिकरण - आदित्य रमेश भारती नीमच

समस्याएं और चुनौतियां तो हर पंथ , सम्प्रदाय , जाति और समाज के आगे होती हैं जिनसे जूझना पड़ता है लेकिन गोस्वामी समाज इनको जानबूझकर अनदेखा कर रहा है और संकट के दौर से गुज़र रहा है । आओ , इन समस्याओं और चुनौतियों को जानें :-----

असहयोग :- गोस्वामियों में सहयोग की भावना नहीं है । अपने भाइयों की समस्याओं और कष्टों से अनभिज्ञ बने हुए हैं । स्वयं तो कुछ नहीं करते लेकिन कोई दूसरा अच्छे काम करना चाहता है तो उसे करने नहीं देते , उसकी टांग खींचते हैं । ऐसी दशा में कुछ कार्य करनेवाला हताश होकर अपने घर बैठ जाता है। इज़्ज़त सबको प्यारी होती है ।

ईर्ष्या और द्वेष :- देशभर में गोस्वामियों के अनेक संगठन बने हुए हैं जिनमें आपस में ईर्ष्या , द्वेष और वितृष्णा का भाव है । एक-दूसरे के प्रति शत्रुता बनाए हुए हैं और एक दूसरे को नीचा दिखाने पर तुले हुए हैं । उदाहरण प्रस्तुत है-- गोस्वामी समाज के एक सम्मेलन    में मैं दिल्ली से राजस्थान गया । आयोजकों ने मीटिंग पर पर्याप्त धन व्यय किया था और अच्छी व्यवस्था कर रखी थी  लेकिन गोस्वामियों की उपस्थिति कम थी । कारण पता चला कि विरोधी संगठन ने अपने अनुयायियों को आदेश दे रखा था कि कोई सहयोग न करे और चंदा लेने आयें तो जूते मारो।" सुनकर मैं तो सन्न रह गया।

राजनीति में नगण्य :- देश की आज़ादी के बाद हर समाज , हर जाति ने राजनीति में तरक्की की है , केवल गोस्वामी समाज को छोड़कर । हम अपनी जनसंख्या करोड़ों में बताते हैं लेकिन हमारे लिए यह एक बड़े शर्म की बात है कि आज देश में  अपनी जाति का कोई भी केंद्र या प्रदेश में  मंत्री नहीं है , हां , दो विधायक और दो सांसद अवश्य हैं --- श्री अरविंद गिरि ( बीजेपी विधायक , गोलागोकर्णनाथ , लखीमपुर - खीरी , उत्तर प्रदेश ) , श्री राकेश गिरि ( बीजेपी विधायक , टीकमगढ़ , मध्य प्रदेश ) , श्री दुलाल चंद्र गोस्वामी ( जेडीयू लोकसभा सांसद , कटिहार , बिहार ) , श्रीमती इंदु गोस्वामी ( बीजेपी राज्यसभा सांसद , हिमाचल प्रदेश ) ।

मृत्यु भोज पर अपव्यय :- गोस्वामी लोग मृत्युभोज पर अनापसनाप धन खर्च करना अपनी शान समझते हैं भले ही उनपर भारी कर्ज़ हो जाये या खेत , खलिहान , दुकान , मकान बिक जायें । उदाहरण-- मेरे एक रिश्तेदार के पिता गुज़र गये । उन्होंने कई गांवों को भोज कराया लेकिन इस चक्कर में उनके खेत बिक गये । थोड़े दिनों बाद उनकी मां चल बसी , फिर शान से उसी तरह से भोज । इस बार उनका मकान बिक गया ।  परिणाम ? उन्हें गांव छोड़कर शहर में मेहनत - मजदूरी करनी पड़ी ।

बेटियों के प्रति भेदभाव :- वैसे तो  यह सभी समाजों की समस्या है और गोस्वामी समाज भी इससे अछूता नहीं है । बेटियों को बेटों से हीन माना जाता है । उनके प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है । कुछ भ्रूण हत्या की बलि चढ़ा दी जाती हैं । लेकिन बेटियों का प्रेम व लगाव अपने माता - पिताओं से अपने भाइयों से कम नहीं होता । ऐसे उदाहरण भी देखने को मिल जाते हैं कि मां या बाप की मृत्यु पर बेटों की आंखों में आंसू तक नहीं आते और बेटियाँ ससुराल से ही दहाड़ मारकर रोती चली आती हैं ।

दहेज प्रथा :- अन्य समाजों की भांति गोस्वामी समाज भी इस समस्या से पीड़ित है । दहेज न होने के कारण सुंदर , सुशील , गुणवंती कन्याएं उज्जड , अनपढ़ , गंवार लड़कों को सौंपनी पड़ जाती हैं जिनमें ज़िन्दगीभर कलह बनी रहती है । मेरा यह कहना कि बेटी को इतना शिक्षित और काबिल बना दो कि दहेज की ज़रूरत ही न पड़े । राजा का अनुकरण प्रजा करती है । गोस्वामी संगठनों के पदाधिकारियों को इस मामले में पहल करनी चाहिए । उन्हें अपने बच्चों की शादियाँ दहेजरहित करनी चाहिए । उनको देखकर अन्य लोग उनका अनुसरण अवश्य करेंगे । जो व्यक्ति दहेजरहित विवाह करे उसको मंचों और सम्मेलनों में  सम्मानित किया जाना चाहिए । सामूहिक विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिनमें कम खर्च आता है परंतु सभी का आशीर्वाद थोक में मिलता है । मुझे  राजस्थान , गुजरात , मध्य प्रदेश के कई सामूहिक विवाहों में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । अच्छी व्यवस्थाएं देखने को मिली हैं । सभी जोड़ों  को एक जैसे परिधान पहनाये जाते हैं और घर - गृहस्थी के एक जैसे सामान प्रदान किये जाते हैं । बड़ी हंसी - खुशी का माहौल होता है । लोग दिल खोलकर दान देते हैं । कुछ गोस्वामी संगठन इस क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं । उनकी जितनी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है । गुजरात के खेड़ा आनंद के एक  सामूहिक विवाह सम्मेलन  में मुझे एक नई बात देखने को मिली । वहां सैंकड़ों जोड़ों के विवाह कराये जा रहे थे और कई हज़ार व्यक्तियों का भोज था । उस भोज का व्यय का भार एक गोस्वामी ने उठाया था । उस गोस्वामी को मंच पर सम्मानित किया गया और उसी पल एक ऐसे गोस्वामी को सम्मानित किया गया जो अगले साल का खर्च वहन करेगा । मैं तो देखकर दंग रह गया कि गुजराती लोग कितने एडवांस हैं ! हमें इस मामले में  गुजरातियों से सीखने की आवश्यकता है । 

पर्दा प्रथा :- पर्दा प्रथा समाज पर एक कलंक है । यह हिंदुओं की प्रथा नहीं है , मुसलमानों ने इसे चलाया था ।  हमारी पार्वती , सीता , राधा , दमयंती कोई पर्दे में नहीं रहती थी । मुस्लिमकाल में नवाब और दबंग लोग सुंदर हिंदू लड़कियों को छीन लेते थे और उनसे जबरन विवाह रचा लेते थे , अत: लड़कियों को दब - ढककर रखा जाता था । तभी से यह प्रथा चली । अब वैसी परिस्थितियां नहीं हैं , इसलिए इस प्रथा को छोड़ने में ही भलाई है । मैं जानता हूँ कि  कुछ लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे । ऐसे लोगों से मेरा यह कहना है कि मानो कोई बहू जज बन जाती है तो क्या वह लम्बा घूंघट करके अदालत में बैठकर न्याय करे ? या कोई बहू जिलाधीश बन जाती है तो क्या वह पर्दे में बैठकर जिले का शासन संभाले ? या कोई बहू पायलट बन जाती है तो क्या वह घूंघट करके ही जहाज उड़ाये ?  बहू को बेटी की तरह मानो ,  समस्या ही खत्म हो जायेगी । 

लड़ाई में  काल्पनिक सहयोग :- आज डिजिटल दुनिया का ज़माना है । हर आदमी के हाथ में मोबाइल है । मोबाइल पर लम्बी - लम्बी डींगें हैं और लम्बे - चौड़े आश्वासन हैं । ज़रा सी कोई घटना हो जाती है तो उस पर लम्बे- चौड़े कमेंट्स आ जाते हैं लेकिन ऐसे लोग असल मैदान में नहीं उतरते । गोस्वामी समाज में अनेक हादसे हो चुके हैं लेकिन उनमें से किसी का भी आशातीत समाधान आज तक नहीं निकल पाया है -- चाहे वो लातूर ( महाराष्ट्र ) की कल्पना गोस्वामी के कत्ल का मामला हो या दिल्ली के कुलदीप गिरि के कत्ल का मामला हो । ऐसे सैंकड़ों मामले हैं जब गोस्वामियों पर अत्याचार हुए हैं । लोग घर बैठे - बैठे फोनों से समर्थन देते रहते हैं लेकिन असली लड़ाई के लिए मैदान में नहीं उतरते । उदाहरण पेश है -- हरियाणा निवासी माउंट एवरेस्ट विजेता पर्वतारोही कु० सीमा गोस्वामी और दिल्ली के कुलदीप गिरि की हत्या के मामलों को लेकर  दिल्ली के रामलीला मैदान में 10 से 12 फरवरी 2019 तक आंदोलन जारी था । सभी गोस्वामियों से वहाँ पहुंचने की अपील की गई थी लेकिन वहाँ कुछ गिने- चुने लोग ही पहुंचे । हद तो उस समय हो गई जब 12 फरवरी को हम वहाँ केवल 20 - 25 लोग ही रह गए । पुलिस ने मौका देखकर हम लोगों को धर दबोचा । पुलिस इंस्पेक्टर ने धक्का देकर मुझे नीचे गिरा दिया । हम चीखते - चिल्लाते रहे और आंदोलन खत्म । यह लड़ाई लोगों ने घर बैठे हुए फेसबुक और वाटसएप पर लड़ी । हे भगवान ! शुक्र है कि जब देश को आज़ाद करने के लिए संघर्ष या संग्राम चल रहा था तब ये मोबाइल नहीं थे वरना सारी लड़ाई फेसबुक और वाटसएप ही लड़ी जाती और कोई भी आदमी लड़ने के लिए मैदान में नहीं उतरता , किसी को कोई चोट नहीं आती, कोई गोली से नहीं मारा जाता , किसी को फांसी नहीं होती । 

दिखावा करना :- कुछ गोस्वामी ऐसे हैं जो गोस्वामी समस्याओं और गतिविधियों से सरोकार नहीं रखते हैं । बस, जिस दिन चुनाव होता है उस दिन गले में मोटी सी सोने की चैन या हाथों में सोने की अंगूठियां पहनकर और लम्बी- चौड़ी कार में बैठकर मीटिंग में पहुंच जाते हैं । वहाँ अपने कारोबार का बखान करते हैं और  वहाँ अपने को बड़ा आदमी प्रदर्शित करते हैं । मैं ऐसे लोगों को बड़ा नहीं मानता हूँ । मैं ऐसे व्यक्ति को बड़ा मानता हूँ जो कहे -- "आज की मीटिंग का खर्च मैं वहन करूंगा " या "आज का भोज मेरी ओर से " या "टैंट का खर्चा मैं उठाऊंगा " । अपने घर पर पर तो कोई भी बड़ा हो सकता है लेकिन समाज में वह बड़ा है जो समाज के लिए बड़े काम करे , समाज की भलाई करे , जो समाज के लिए जिये और जो समाज के लिए मरे ।

पद पर कुंडली मारकर बैठना :- बताते हैं कि वर्तमान में गोस्वामियों के 167 संगठन हैं । हर गली , मोहल्ले में कोई न कोई अध्यक्ष या सचिव मिल जायेगा । अच्छी बात है , कोई बुराई नहीं है । यह जागरूकता का प्रमाण है । लेकिन कुछ संगठन ही ठीक से कार्य कर रहे हैं , बाकी ज्यादातर काग़ज़ी हैं । कुछ ऐसे अध्यक्ष भी हैं जो एक बार अध्यक्ष बने थे लेकिन उसके बाद कभी अपने पद से नहीं हटे । कभी चुनाव कराये ही नहीं और यदि चुनाव कराने की नौबत आ भी गई तो सभी को सूचना नहीं दी । केवल अपने चहेतों को बुलाया । उन्होंने फिर नाम प्रस्तावित किया और फिर अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान । ना समाज के लिए कोई काम किया और न किसी को मौका दिया । ऐसे स्वम्भू अध्यक्षों का क्या किया जाये, इस पर समाज को सोचना चाहिए । 

निंदा एवं आलोचना में लिप्त रहना :- कुछ गोस्वामी ऐसे हैं जो जीवन में कुछ नहीं बने लेकिन जो कुछ बन गए हैं उनकी बखिया उधेड़ने में लगे रहते हैं । कोई आई. ए. एस. या आई . पी. एस. या प्रतिष्ठित पद पर पहुंच गया है तो अक्सर  लोगों को कहते हुए सुना होगा -- "इसने हमारे लिए क्या किया है जो इसे मानें ?" हमें ऐसी सोच से बचना चाहिए । भले ही वह हमें कुछ नहीं दे रहा है लेकिन है तो वह हमारा स्वजातीय बंधु । हमें उस पर गर्व करना चाहिए और हमारी कोशिश होनी चाहिये कि हम और हमारे बच्चे भी उस जैसे बनें । पद पर रहकर अनेक प्रोटोकोलों का पालन करना पड़ता है । जरा सी गलती पर नौकरी जा सकती है । नौकरी लगना मुश्किल है लेकिन नौकरी छूटना बड़ा आसान है । अब हर आदमी के हाथ में मोबाइल है । पता नहीं वह कब ऑडियो - वीडियो बनाकर किसी को भेज दे । अतः अपने स्वजातीय बंधु पदाधिकारियों की निंदा न कीजिए, आलोचना न कीजिए । उनका सम्मान कीजिए । 

®  गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली ।

9818461932

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ