प्रस्तुतिकरण - आदित्य रमेश भारती नीमच
नदियों में गंगा और तीर्थों में पुष्कर को श्रेष्ठतम माना गया है। पुष्कर को ब्रह्मा जी की तपस्थली और आठवां बैकुंठ माना जाता है । पुराणों में इसका जिक्र है ।
हिंदू धर्म में त्रिदेव ( ब्रह्मा , विष्णु , महेश ) की बड़ी मान्यता है । पुष्कर का सम्बंध ब्रह्मा से है । पुष्कर का शाब्दिक अर्थ है "सरोवर जिसका निर्माण पुष्पों से हुआ हो ।"
पद्म पुराण के अनुसार, वज्रनाश राक्षस ने भूलोक पर भारी कोहराम ( उत्पात ) मचा रखा था । ब्रह्मा ने उसका वध किया । वध करते हुए उनके तीन कमल पुष्प तीन स्थानों पर गिरे जिनसे तीन झीलों का निर्माण हुआ -- ज्येष्ठ झील , मध्य झील , कनिष्ठ झील । जगत के कल्याण के लिए ब्रह्मा पृथ्वी पर यज्ञ करना चाहते थे । वे पुष्कर पहुंचे । वे यज्ञ करने जा रहे थे लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वहाँ नहीं पहुंच पाई जबकि मुहूर्त निकला जा रहा था । अत: उन्होंने एक ग्वालबाला से विवाह कर लिया और यज्ञ आरम्भ कर दिया । ग्वालबाला को गायत्री के नाम से जाना गया । जब सावित्री वहाँ पहुंची तो वह सब देखकर उसने अपने पति ब्रह्मा को शाप दे दिया कि --" संसार में कहीं भी ब्रह्मा को नहीं पूजा जायेगा और जो भी व्यक्ति ब्रह्मा के मंदिर का निर्माण करवायेगा उसका कभी भी भला नहीं होगा ।" जब सावित्री को परिस्थितियों की सही जानकारी दी गई कि मुहूर्त के कारण ऐसा करना पड़ा तो उसका गुस्सा शांत हुआ और उसने शाप में परिवर्तन किया कि ब्रह्मा की पूजा पुष्कर में हो सकेगी । लेकिन अब कलियुग है । इसलिए लोगों उस बात को भुलाकर भारत में अनेक स्थानों पर ब्रह्मा के मंदिर बना लिये हैं ।
राजस्थान के जिले अजमेर में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर पुष्कर तीर्थस्थल विद्यमान है । कहते हैं कि कुरूक्षेत्र में सरस्वती नदी के सूख जाने पर भगवान श्रीकृष्ण पुष्कर में स्नान करने आये थे । यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य भी यहाँ आये थे और यहाँ मंदिर का निर्माण किया था । पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में बताया जाता है । पुष्कर में हज़ारों मंदिर थे जिन्हें मुगल बादशाह औरंगजेब ने नष्ट कर दिये थे । औरंगजेब के पतन के बाद हजारों मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ । आज भी पुष्कर में हज़ारों मंदिर विद्यमान हैं जिनमें ब्रह्मा का मंदिर विश्वप्रसिद्ध है । मंदिर में ब्रह्मा की चारमुखी प्रतिमा है जिसके बायीं ओर गायत्री की प्रतिमा है और दायीं ओर सावित्री की प्रतिमा है । कार्तिक मास की पूर्णिमा पर पुष्कर में मेला लगता है जिसमें देश-विदेश के लोग सम्मिलित होते हैं । राजस्थानी संस्कृति की पूरी छटा वहाँ देखने को मिलती है । ऊंटों और पशुओं का मेला भी लगता है । मैं सन् 1977 ई० में अजमेर कॉलेज में पढ़ता था तब मैं पुष्कर का मेला देखने गया था ।
ब्रह्मा मंदिर से सदियों से दशनाम गोसाईं समाज का सम्बंध रहा है । मंदिर पर जो चढ़ावा आता था उसका बंटवारा पीठाधीश्वर महंत और गोसाईं समाज में होता था । अब से लगभग 150 वर्ष पूर्व तत्कालीन महंत मानपुरी गोसाईं द्वारा इस अधिकार को छीनने का प्रयास किया तो दशनाम गोसाईं समाज ने अजमेर के सहायक कमिश्नर के समक्ष सप्रमाण वाद पेश किया । 22 जुलाई 1868 ई. को दोनों पक्षों में समझौता हो गया तथा पहली स्थिति को बहाल किया गया । महंत केसरपुरी तक यह व्यवस्था रही कि दशनाम गोस्वामी कुलोत्पन्न महापुरुष ही दशनाम गोस्वामी समाज की अनुशंसा से गद्दीपति बनता रहा । दशनाम गोस्वामियों की "पुरी" शाखा के लोग ही इसपर विराजमान रहे हैं । लेकिन महंत केसरपुरी के बाद गौड़ ब्राह्मण कुलोत्पन्न व्यक्ति "पुरी" उपनाम लगाकर विभूति पुरी नाम से इस गद्दी पर विराजमान हो गया । उसने गोस्वामी समाज को दरकिनार करने के तरीक़े अपनाये । गद्दीपति महंत प्रकाशानंद पुरी , परमेश्वरानंद पुरी तथा लहरपुरी ने गोस्वामियों के "पुरी" उपनाम का तो प्रयोग किया लेकिन गोस्वामी समाज से वितृष्णा का भाव रखा । 6 अक्टूबर 2013 को 86 वर्ष की आयु में महंत लहरपुरी परलोक सिधार गये । दशनाम गोस्वामी कुलोत्पन्न सोमपुरी गोस्वामी को नया पीठाधीश्वर बनाया गया । लेकिन एक सड़क दुर्घटना में महंत सोमपुरी की भी मृत्यु हो गई । मंदिर के महंत के लिए कई पक्ष सामने आ गये । एक पक्ष के रूप में दशनाम गोस्वामियों का महानिर्वाणी अखाड़ा है , दूसरा पक्ष गौड़ ब्राह्मणों का है और तीसरा पक्ष दशनाम गोस्वामी समाज का है जो किसी गोस्वामी कुलोत्पन्न व्यक्ति को पीठाधीश्वर बनवाना चाहता है । फिलहाल सरकार ने व्यवस्था संभाल रखी है जब तक कि कोई अंतिम फैसला नहीं आ जाता है।
©महाग्रंथ "गोस्वामीनामा" से। गिरिवर गिरि गोस्वामी निर्मोही , नयी दिल्ली , 9818461932
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